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बानो मुस्ताक एक संघर्ष की कहानी

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कौन हैं बानो मुश्ताक?

बानो मुश्ताक का नाम सुनते ही एक तस्वीर आंखों के सामने आ जाती है- कौन हैं आखिर कौन हैं बानो मुश्ताक, एक शांत मगर ज्वलंत महिला, जिसके भीतर की लड़ाई हर समय चल रही हो। उन्होंने अपनी चुप्पियों को शब्दों में बदला, जैसे वह कोई उपदेश दे रही हो। वे उन गलियों की आवाज थीं, जहां महिलाओं को दबाया जाता है। उनकी लेखनी सिर्फ स्याही नहीं, वह जख्म भी थी- उनके, और उन लाखों महिलाओं के, जिन्हें समाज ने बोलने से पहले ही खामोशी में बंद कर दिया था।

बानो मुस्ताक एक संघर्ष की कहानी

1948 में कर्नाटक के हासन जिले में जन्मीं बानो एक मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ीं। पर जिस परंपरा में उनको ढाला गया, वह उन्हें चुप रहने का सिखाती थी। लेकिन उन्होंने तय किया कि वे कभी चुप नहीं रहेंगी। उनका जीवन बाहर से सामान्य दिखता है, कहानियों की तरह अंदर से मजबूत हिम्मत से भरा है। उन्होंने कानून की पढ़ाई की, पर उनके लिए न्याय सिर्फ अदालत का मामला नहीं- यह हर रोज की जागरूकता का हिस्सा था।

जहां दर्द की भाषा बन जाती है

बानो की कहानियां जीवन के अनुभवों से बनती हैं। वे किसी कला से ज्यादा अपने अनुभवों को शब्द देती हैं। वे जटिल शब्दों का इस्तेमाल नहीं करतीं, सीधे-सादे शब्दों में कहानियां कहती हैं। उनकी कहानियों में जो औरत है, वह आपकी मां हो सकती है, बहन हो सकती है, या आप खुद भी। इन कहानियों का सबसे बड़ा फायदा है- वे हर किसी को छू जाती हैं।

उनकी प्रसिद्ध कहानी “करी नगरगालु” (काली चट्टानें) पर बनी फिल्म हसीना समाज की एक मजबूत तस्वीर दिखाती है। यह कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है। जब तक हम इससे मिल नहीं लेते, यह समझ नहीं पाते।

एक महिला जो डरती नहीं थी

बानो सिर्फ लिखने वाली नहीं थीं, वह सवालों का सामना करने वाली महिला थीं। वह महिलाओं को मस्जिद जाने का समर्थन करती थीं। उन्होंने तीन तलाक और कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। उनको फतवे मिले और बहिष्कृत भी किया गया। लेकिन उन्होंने कभी झिझक कर सच बोलने से नहीं हिचकी। उनका तरीका आसान था- सच्चाई बोलो, तो समाज बदल सकता है। उनका मानना था, “अगर हम चुप रहेंगे, तो अंधेरा और गहरा हो जाएगा।”

जब दुनिया ने उनकी बात सुनी

2025 में बानो मुश्ताक की किताब “हार्ट लैंप” को इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार मिला। यह सिर्फ उनकी जीत नहीं, बल्कि उन लाखों महिलाओं की भी जीत थी, जो खामोशी में जी रही हैं। यह उन कहानीकारों की जीत है, जिन्हें अक्सर भुला दिया जाता है। पर अब उन्हें वह सम्मान मिला, जिसकी वे हकदार थीं।

बानो क्यों पढ़ें यह जरूरी है

आज समाज फिर से धर्म, जाति और लिंग की दीवारों में फंस रहा है। इन कहानियों में हमें इंसान बनना सिखाती हैं। ये कहानियां हमें हिला देती हैं, कभी दुख दिलाती हैं, और सबसे जरूरी—हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं।

एक आखिरी बात

बानो मुश्ताक का नाम सिर्फ एक लेखिका के रूप में ही नहीं, बल्कि एक महिला के रूप में भी याद किया जाएगा। ऐसी महिला, जिसने अपने शब्दों से हजारों आवाजें जगा दीं। उन्होंने दिखाया कि लिखना सिर्फ कला नहीं, यह जिम्मेदारी भी है। जब कोई महिला सच्चाई लिखती है, पूरा समाज कांपने लगता है।

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