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Draupadi Murmur: द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmur) ने आज देश के 15वें राष्ट्रपति पद के रुप में शपथ लेकर इतिहास रच दिया है। आदिवासी समाज से उठकर देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने वाली द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmur) पहली और इकलौती महिला हैं। भले ही द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmur) ने अपनी जिंदगी में कई बड़े मुकाम हासिल किए हो लेकिन उन्होंने अपनी जड़े कभी नहीं भूली।
दिल्ली से दो हजार किलोमीटर के फासले पर स्थित ओडिशा के मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के छोटे से गांव उपरवाड़ा से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmur) ने अपनी जिंदगी में बहुत सी मुसीबतें देखी लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। मुर्मू अपने गांव की पहली ऐसी लड़की रहीं जो पढ़ने के लिए कॉलेज में गईं। मुर्मू बचपन से ही दृढ़ और सच के साथ मजबूती से डटे रहने वाली रहीं। वो अपनी क्लॉस में हमेशा सबसे ज्यादा नंबर लाती थीं।
द्रौपदी मुर्मू को फिर पहाड़पुर के रहने वाले श्याम चरण मुर्मू से प्यार हो गया। जब उनके पिता को ये बात पता चली पहले तो वो इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हुए। लेकिन द्रौपदी और श्याम दोनों ने मन बना लिया था कि दोनों शादी करके ही रहेंगे। श्याम चरण मुर्मू ने अपने रिश्तेदारों के साथ तीन-चार दिन के लिए उपरवाड़ा गांव में डेरा डाल लिया था।अंत में परिवारवालों ने दोनों की शादी करवा दी।
शादी के बाद द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmur) के चार बच्चे दो बेटे और बेटी हुईं। पहली बेटी जन्म के तीन साल बाद ही गुजर गई। इसके बाद बड़ा बेटे की मौत साल 2010 में हो गई थी। जब बड़े बेटे की मौत हुई तो द्रौपदी 6 महीने तक डिप्रेशन से उबर नहीं पाईं थीं। उन्हें संभालना मुश्किल हो रहा था। तब उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया। शायद उसी ने उन्हें पहाड़ जैसे दुखों को सहने की शक्ति दी।
छोटे बेटे की मौत साल 2013 में एक सड़क दुर्घटना के दौरान हो गई। अभी दो बड़े हादसों से द्रौपदी मुर्मू उभर भी नहीं पाई थीं कि एक साल बाद ही साल 2014 में 55 साल की उम्र में उनके पति श्याम चरण मुर्मू की मौत हो गई। इतने हादसों के बाद भी मुर्मू ने कभी जिंदगी से हार नहीं मानी। उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहती हैं।
दैनिक दिनचर्या-
द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmur) हर सुबह साढ़े तीन बजे उठ जाती हैं। इसके बाद करीब एक घंटे मॉर्निंग वॉक और योग करती हैं। फिर खुद से मंदिर साफ करती हैं। मंदिर को पानी से धुलती हैं और पूजा करती हैं। करीब एक घंटे तक रोज मुर्मू ध्यान लगाती हैं। बेटों और पति को खोने के बाद मुर्मू ब्रह्मकुमारी संस्थान से जुड़ गईं। वो हमेशा अपने साथ शिव बाबा के ध्यान के लिए ट्रांसलाइट और एक छोटी सी पुस्तिका हमेशा रहती है। वह जहां-जहां रहने जाती हैं, वहां पूजा के लिए मंदिर जरूर बनाती हैं। बता दें कि मुर्मू शुद्ध शाकाहारी हैं। यहां तक की प्याज और लहसुन भी नहीं खाती हैं। उन्हें ओडिशा की मिठाई चेन्ना पोड़ा बहुत पसंद है। इसके अलावा पखाल यानी पानी का भात और सजना यानी सहजन का साग भी खाने में पसंद करती हैं। मुर्मू के घर में सहजन का पेड़ भी लगा है। दोपहर में उनका खाना भी सामान्य होता है। चावल, साग-सब्जी और रोटी खाती हैं। रात में फल के साथ हल्दी वाला दूध जरूर लेती हैं।
राजनीतिक सफर
साल 1997 में उन्होंने रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। साल 2009 में उन्हें बीजेपी ने मयूरभंज लोकसभा सीट से मैदान में उतारा लेकिन सफलता नहीं मिली। द्रौपदी मुर्मू तीसरे नंबर पर रही। इसके बाद 2014 में वो रायरंगपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़ी लेकिन यहां भी उन्हें करीब 15 हजार वोट से हार मिली। द्रौपदी मुर्मू बतौर विधायक 2 चुनाव जीती और एक में उन्हें हार मिली। विधायक के तौर पर भी उनके काम का डंका बजा। साल 2007 में उन्हें सर्वेश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ अवॉर्ड (Neelkanth Award) से सम्मानित किया गया, ये अवॉर्ड उन्हें ओडिशा विधानसभा की तरफ से मिला। साल 2015 से लेकर 2021 तक द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के 9वें राज्यपाल और पहली महिला राज्यपाल के रुप में कार्यभार संभाला।