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Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी की लड़ाई में महिलाओं की रही अहम भूमिका, किसी ने छोड़ा घर तो किसी ने कर दिया अपना सर्वोच्च जीवन न्यौछावर
Azadi Ka Amrit Mahotsav:देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। देश की 75वें आजादी के जश्न में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। इस मौके पर उन वीर सुपूतों को याद किया जा रहा है जिन्होंने अपने देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलवाने के लिए अपने प्राणों तक न्यौछावर कर दिए। इस लड़ाई में केवल देश के वीर सुपूत ही नहीं बल्कि देश की बेटियां वीरांगनाओं ने भी बहुत बड़ा योगदान दिया।
कई महिलाएं अपने घर-परिवार को छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी थीं। आइए जानते हैं उन वीरगंनाओं के बारें में जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गईं।
शकुंतला त्रिवेदी : अपने पति भूपेंद्र नाथ त्रिवेदी के साथ रतलाम और बांसवाड़ा क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की ललक जगाने में शकुंतला त्रिवेदी का बड़ा योगदान रहा। भूपेंद्र नाथ उस वक्त के मशहूर क्रांतिकारी और पत्रकार थे, जो मुंबई से संग्राम नामक समाचार पत्र का संपादन करते थे। अपने पति के मजबूत इरादों के साथ खुद शकुंतला त्रिवेदी कदम से कदम मिलाकर साथ रहीं और क्रांतिकारियों को बंदूक-बम पहुंचाना, सूचनाओं का आदान-प्रदान करना और उन्हें शरण देने का काम किया।
विजयलक्ष्मी पंडित: जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी भी देश के विकास के लिए तमाम गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थीं। बता दें कि विजया लक्ष्मी ने कई सालों तक देश की सेवा की और बाद में संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंब्ली की पहली महिला प्रेज़िडेंट भी बनीं। वे डिप्लोमैट, राजनेता के अलावा लेखिका भी थीं।
स्नेहा लता वर्मा : स्वतंत्रता सेनानी माणिक्य लाल वर्मा की पुत्री स्नेह लता ने अपनी दादी के साथ मिलकर बिजोलिया किसान आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस वजह से उन्हें बहुत छोटी सी उम्र में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा। स्नेहा लता को मिर्च की कोठरी में बंद कर दिया गया था। देश को स्वतंत्र कराने और मेवाड़ के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष और काम किया था।
सावित्रिभाई फुले : महिलाओं को शिक्षित करने के महत्व को उन्होंने जन जन में फैलाने का जिम्मा उठाया था। सावित्री फूले ने कहा था कि अगर आप किसी लड़के को शिक्षित करते हैं तो आप अकेले एक शख्स को शिक्षित कर रहे हैं, लेकिन अगर आप एक लड़की को शिक्षा देते हैं तो पूरे परिवार को शिक्षित कर रहे हैं। उन्होंने अपने समय में महिला उत्पीड़न के कई पहलू देखे थे और लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित होते देखा था। ऐसे में तमाम विरोध झेलने और अपमानित होने के बावजूद उन्होंने लड़कियों को मुख्य धारा में लाने के लिए उन्हें आधारभूत शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी उठाई थी।