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Pitra Paksha 2022: पितृ पक्ष शुरू, पितरों को नमन करने का समय

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Pitra Paksha 2022: पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म भाद्र पद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को 10 सितंबर से शुरू हो गया। अबकी बार ये शनिवार 10 सितंबर को महालय की शुरुआत हो गई है।

Pitra Paksha 2022: परंपरा और ज्योतिष के मुताबिक, पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म भाद्र पद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को ही किया जाता है, जो अबकी बार 10 सितंबर, शनिवार को शुरू हो गया है। इसलिए महालय का आरम्भ 10 सितंबर से हो गया है। शास्त्रों के मत के अनुसार देवकार्यों में शिथिलता क्षम्य है, किन्तु पितृ पक्ष में श्राद्ध तर्पण कर अपने पितरों के प्रति श्रद्धा निवेदन करना जरूरी है। पितृगण प्रसन्न होकर अपना शुभ आशीर्वाद और जीवन मे शुभ फल प्रदान करते हैं और परिवार में सुख-शांति प्रदान करते हैं।

Pitra Paksha 2022: शास्त्रों के अनुसार, जिस प्रकार पिता का कमाया हुआ धन पुत्र को प्राप्त हो जाता है, उसी प्रकार पुत्र द्वारा श्राद्ध पक्ष में दिया हुआ अन्न-जल पिता को प्राप्त होता है। श्रद्धा भाव से पितृ पक्ष में किया गया श्राद्ध कर्म ही पुत्र को अपने पिता की सम्पत्ति का अधिकारी सिद्ध करता है।

Pitra Paksha 2022: शास्त्रों के अनुसार अपना तथा अपने संतान का कल्याण के लिए श्राद्ध पक्ष के दौरान श्रद्धा भाव से पितरों को याद करते हुए श्राद्ध कर्म और तर्पण अवश्य करना चाहिए। साथ ही इस समयावधि में कुछ नियमों का पालन करना श्रेष्ठ फल देता है। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर देव किसी न किसी रूप में अपने वंशजों को खोजते हुए घर के दरवाजे पर आ सकते हैं। इसीलिए पितृ पक्ष में दरवाजे पर आने वाले किसी भी जीव का निरादर नहीं करना चाहिए।

श्राद्ध पक्ष अर्थात पितृ पक्ष में भूल से भी कुत्ते, बिल्ली, गायों समेत किसी भी जानवर को मारना या सताना नहीं चाहिए |

पितृ पक्ष में कौओं, पशु-पक्षियों को अन्न-जल देना उत्तम फलदायी होता है। इन्हें भोजन देने से पितृगण संतुष्ट होते हैं।

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जो व्यक्ति पितरों का श्राद्ध करता है, उन्हें पितृ पक्ष में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। खानपान में सात्विकता बरतनी चाहिए। मांस-मछली, मदिरा इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए।

Pitra Paksha 2022: पितृ पक्ष की अवधि में चना, मसूर, सरसों का साग, सत्तू,जीरा, मूली, काला नमक, लौकी, खीरा और बांसी भोजन का त्याग करना चाहिए।

श्राद्ध कर्म में स्थान का विशेष महत्त्व है। शास्त्रों के अनुसार गया, प्रयागराज, बद्रीनाथ आदि तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध एवं पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। परन्तु जो लोग इन स्थानों पर किसी रखोंकारण बस नहीं जा पाते है वे लोग अपने घर के आँगन अथवा अपनी जमीन पर कही भी तर्पण कर सकते हैं। दूसरे की जमीन पर तर्पण करने से पितर तर्पण स्वीकार नहीं करते।

श्राद्ध एवं तर्पण क्रिया में काले तिल का बड़ा महत्त्व है। श्राद्ध करने वालों को पितृ कर्म में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए। लाल एवं सफ़ेद तिल का प्रयोग वर्जित है।

पितृ पक्ष में पुरखों को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाने का नियम है। भोजन पूर्ण सात्विक एवं धार्मिंक विचारों वाले ब्राह्मण को ही करवाना चाहिए।

पितृ पक्ष में भोजन करने वाले ब्राह्मण के लिए भी नियम है कि श्राद्ध का अन्न ग्रहण करने के बाद कुछ न खाये। मान्यता है कि इस दिन ब्राह्मण को अपने घर में भी भोजन नहीं खाना चाहिए। ऐसे में जो ब्राह्मण नियम का पालन नहीं करता, वह प्रेत योनि में जाता है।

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