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महात्मा गांधी के सिद्धांतों और जीवनशैली को आज भी जी रहे टाना भगत

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स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर झारखंड के टाना भगत चले थे। आज भी टाना भगत महात्मा गांधी के बताए मार्ग पर चल रहे हैं। वे महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों और उनकी जीवनशैली को अपना रहे हैं। टाना भगतों की सादगी ही उनकी पहचान है। उनकी परंपरा बेहद सहज, सरल व्यक्तित्व और सफेद धोती, कुर्ता, सिर पर टोपी, गमछा टाना भगतों की पहचान बन गई है। टाना भगत महिलाएं आज भी सफेद साड़ी ही पहनती हैं। टाना भगत आज भी घर से बाहर निकलने पर दूसरे के हाथों का बना खाना नहीं खाते हैं। झूठ नहीं बोलते हैं। बड़े, बुजुर्ग कतली से सूत कातते हैं। इसी सूत से वे लोग जनेऊ बनाते हैं। हर तीन महीने पर वे इसे बदलते भी हैं। साथ ही घर के दरवाजे पर गड़ा बांस और चरखा छाप तिंरगा भी बदलते हैं, जिसकी वे हर सुबह पूजा करते हैं। कोई भी टाना भगत बिना स्रान और प्रार्थना के भोजना ग्रहण नहीं करता है। हालांकि, अब इन नियमों में थोड़ी ढील दी जाने लगी है, पर आज भी बहुत लोग इसे निभा रहे हैं। कुल मिलाकर टाना भगत आज भी महात्मा गांधी को शिद्दत से जीते हैं।

सुबह चरखे वाले तिरंगे के नीचे खड़े होते हैं टाना भगत

टाना भगत

टाना भगतों के दिन की शुरुआत चरखे वाले तिरंगे के नीचे खड़े होकर होती है। गांधी टोपी पहने पुरुष और सफेद साड़ी में महिलाओं को गीत गाते देखना नया अनुभव होता है। जिस लगन और जोश से गाते हैं, सुनकर पूरे शरीर में सिहरन हो जाती है। महादेव व एतवा टाना भगत ने बताया कि हम लोग प्रत्येक दिन धरती मां के साथ-साथ तिरंगा की भी पूजा करते हैं। महिला टाना भगत का कहना है कि हम लोग झंडा की पूजा वर्षों से कर रहे हैं। हमारे पूर्वज भी तिरंगे झंडे की पूजा करते थे। राष्ट्रीय ध्वज के प्रति अद्भुत सम्मान करने वाले टाना भगत पूरे राष्ट्र को नई सीख देते हैं।

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महात्मा गांधी के आह्वान पर सत्याग्रह में कूदे थे टाना भगत

टाना भगतों की देश की आजाद में अहम योगदान रहा है। टाना भगत महात्मा गांधी के कहने पर सत्याग्रह आंदोलन में कूदे थे और अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। अखिल भारतीय टाना भगत परिषद के सदस्य सह पूर्व विधायक गंगा टाना भगत ने कहा कि महात्मा गांधी के आह्वान पर सत्याग्रह में कूदने वाले टाना भगतों ने मालगुजारी देना बंद कर दिया था। इस पर अंग्रेजी हुकूमत ने इनकी जमीन नीलाम कर दी थी। इसके बाद ये अपनी ही जमीन पर भूमिहीन हो गए। आजादी के बाद लंबी लड़ाई के बाद 30 अगस्त 2010 को टाना भगतों को मालिकाना हक मिला। इसे लेकर टाना भगतों द्वारा इस दिन को मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने ने कहा कि आजादी के 76वर्ष बीत जाने के बावजूद टाना भगतों का अभी तक विकास नहीं हुआ है। गंगा टाना भगत ने कहा कि कभी दो अक्टूबर गांधी जयंती या 30 अगस्त टाना भगत मुक्ति दिवस पर झारखंड की राजधानी रांची जिले के बेड़ो प्रखंड के खक्सी टोली गांव आइए, यहां टाना भगतों के पूर्वजों का स्मारक स्थल, किसी पर्यटन स्थल से कम नहीं लगेगा।

आजादी के बाद भी नहीं सुधरे हालात

आजादी के सात दशक बाद भी टाना भगतों के हालात नहीं सुधरे हैं। ये अपने अधिकार के लिए आज भी अहिंसक आंदोलन करते रहते हैं। हालांकि, कुछ दिन पूर्व झारखंड के लातेहार जिले में हुआ इनका आंदोलन हिंसक हो गया था। बाद में प्रशासनिक पहल पर शांत हुआ था। वहीं, रांची जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर बेड़ो प्रखंड का खक्सी टोली गांव में वर्तमान में लगभग 40 टाना भगतों का परिवार रहता है। पर टाना भगतों के गांव में मूलभूत सुविधाएं नदारत है। गांव के टाना भगत रोटी, कपड़ा और मकान के लिए आज भी तरस रहे हैं। इनके बच्चों को पढ़ने के लिए गांव में प्रारंभिक शिक्षा तक कीमुक्कमल व्यवस्था नहीं है। टाना भगतों के रांची अध्यक्ष खेड़या टाना भगत का कहना है कि गांव और हम टाना भगतों की वास्तविक स्थिति दयनीय है। यहां के लोग अब भी सरकार की नजरे के इंतजार में है।

 

  • सुनिल पाण्डेय

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