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RJD_JDU Merger: आरजेडी-जेडीयू के विलय की तैयारी पूरी! तेजस्वी बनेंगे मुख्यमंत्री, जानिए नीतीश और लालू को क्या मिलेगी जिम्मेदारी

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RJD_JDU Merger: बिहार से बड़ी खबर आ रही है. अगर सबकुछ ठीक रहा तो जल्द आरजेडी और जेडीयू का विलय हो जाएगा. आरजेडी और जेडीयू के विलय की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है. नीतीश के तरफ से हरी झंडी दे दी गई है. सूत्रों के मुताबिक आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव इसे एक रणनीति के तहत लोकसभा चुनाव के बाद अंजाम देने के पक्ष में हैं. यही वजह है कि इन दिनों लालू और नीतीश एक दूसरे के आवास पर अक्सर आते-जाते देखे जा सकते हैं. दोनों नेताओं का मकसद लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग के फॉर्मूले को तैयार करने के अलावा पार्टी के विलय को सुचारू रूप से लागू करने की है.

आरजेडी सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार के वोट बैंक को हर हाल में इंडिया गठबंधन के पक्ष में लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से जाते हुए देखना चाहते हैं. लालू प्रसाद जानते हैं कि नीतीश कुमार के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा आरजेडी को वोट देने से परहेज करता है. लेकिन नीतीश कुमार के पक्ष में वो मतदाता वोट इस उम्मीद में तब तक करता रहेगा जब तक नीतीश की पार्टी जेडीयू से अलग पहचान कायम रखेगी. ऐसे मतदाताओं को लालू प्रसाद यादव, लोकसभा चुनाव तक इंडिया गठबंधन के पक्ष में ही रखना चाहते हैं, जिससे लोकसभा चुनाव में उनके पलटी मारने की संभावना न के बराबर हो.

सूत्रों के मुताबिक लालू प्रसाद का मानना है कि ऐसे मतदाताओं के एक बड़े समूह का विलय के बाद नीतीश से मोहभंग हो सकता है. ऐसे में लोकसभा चुनाव के दौरान ये लोग बीजेपी के पक्ष में मतदान कर सकते हैं. लालू प्रसाद इसलिए लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश,लेफ्ट और कांग्रेस के वोटों को भरपूर रूप से इंडिया गठबंधन के पक्ष में समेटे रखना चाहते हैं.

दरअसल नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर आने के बाद छह महीने के भीतर ही दोनों पार्टियों के विलय की बात होने लगी थी. लेकिन जेडीयू में अशोक चौधरी सरीखे नेताओं के विरोध की वजह से इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. इतना ही नहीं महागठबंधन की सरकार बनने के छह महीने के भीतर ही आरजेडी कोटे के सुधाकर सिंह सरीखे नेताओं के विरोध का स्वर भी नीतीश कुमार के मन में कई संशय को जन्म दे रहा है. इसलिए नीतीश कुमार ने बड़ी ही चतुराई से आरजेडी के दबाव और जेडीयू के भीतर मचे असंतोष को दबाने के लिए साल 2025 में तेजस्वी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कह पार्टी के भीतर और बाहर संतुलन बैठाने का दांव खेला था.

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जेडीयू पर दबाव तब भी आरजेडी की तरफ से लगातार बना हुआ था लेकिन अगस्त महीने में तेजस्वी यादव का नाम सीबीआई के एक मामले में आने के बाद इस मसले को लोकसभा चुनाव तक टालने में ही आरजेडी और जेडीयू के बीच एकतरह की सहमति बन चुकी है.

आरजेडी और जेडीयू का विलय लोकसभा चुनाव के बाद तय माना जा रहा है. तेजस्वी यादव को पार्टी की कमान सौंपने के बाद नीतीश कुमार एकीकृत दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर काम करेंगे वहीं लालू प्रसाद की भूमिका पार्टी के संरक्षक के तौर पर तय की गई है. इस कवायद में नीतीश कुमार के साथ जेडीयू के पुराने सभी नेता साथ हैं, जिनमें नीतीश कुमार, विजयेन्द्र यादव, राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह,दिनेश चंद यादव शामिल हैं जो मूल जेडीयू के संस्थापकों में शरद यादव के साथ रहे थे. दरअसल समता पार्टी का विलय शरद यादव की जनता दल में हुआ था. इसलिए वो पुराने सभी नेता समाजवादियों को एकजुट कर बिहार में तेजस्वी के हाथों सत्ता सौंपने के पक्षधर हैं.

इस बाबत कर्नाटक में एच डी देवगौंड़ा से भी नीतीश कुमार की बात हुई थी. वहीं देवेन्द्र यादव की पार्टी समेत एचडीदेवगौड़ा की जेडी(एस) को इसमें शामिल होने की योजना थी. लेकिन कर्नाटक की राजनीतिक स्थितियों को भांपकर देवगौड़ा ने बीजेपी के साथ तालमेल करने में भलाई समझी और कर्नाटक में अपने खिसकते जनाधार को बचाने के लिए बीजेपी का दामन थाम लिया. इस बात का खुलासा देवेगौड़ा खुद कर चुके हैं और नीतीश कुमार के साथ होने वाली बातचीत के प्रमुख अंश को वो सार्वजनिक भी कर चुके हैं.

नीतीश दो बार पाला बदल चुके हैं. उनकी विश्वसनियता दांव पर है. नीतीश अब बिहार की सियासत में अलग भूमिका तलाश रहे हैं ये किसी से छिपा नहीं है. उनकी केन्द्र की राजनीति करने की इच्छा भी किसी से छिपी नहीं है. बिहार की सत्ता तेजस्वी के हाथों स्थानांतरित करने की बात महागठबंधन सरकार बनने के बाद ही बिहार के सियासी गलियारों में सुनी जाती रही है. लेकिन अलग-अलग वजहों से ये टलता रहा है लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद तेजस्वी यादव की ताजपोशी तय मानी जा रही है.

कहा जा रहा है कि जातीय जनगणना के बाद पैदा हुई परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए चार उपमुख्यमंत्री बनाने की योजना है. चार उपमुख्यमंत्रियों में एक दलित, दूसरा अतिपिछड़ा, तीसरा मुसलमान और चौथा अगड़ी जाति से बनाए जाने की बात है. ज़ाहिर है ऐसा साल 2025 की विधानसभा चुनाव को देखते हुए किया जाएगा. इसलिए लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में कैबिनेट एक्सपेंशन की गुंजाइश नहीं के बराबर है. ज़ाहिर है इसी वजह से लोकसभा चुनाव का इंतजार किया जा रहा है. इसमें बीजेपी को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाकर आगे की रणनीति को अंजाम देने की योजना है.

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