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Loksabha Election 2024: धीरे-धीरे यहां का चुनावी मौसम बदलने लगा है…जब लोग हताश थे कि युवकों का उन्मादी समर्थन मोदी को है, तब भूल गए थे, कि यह जमीन खिसक सकती है। आगे जारी यह लेख ….
धीरे-धीरे मौसम बदलने लगा है। पुलवामा जैसा कोई प्लॉट इस साल नहीं चलेगा , यह यह समझदारी मोदी कैंप की समझ भी थी…. मजबूरी भी। यह तो संतोष का विषय है।
यह तय था कि युवा वर्ग झूठ दोहराकर और उन्मादी स्लोगन को लगाने के बाद फिर से अपनी जीवन स्थितियों और भविष्य के बारे में अपने को ठगा हुआ पाएगा। रोजगार के बारे में कोई घोषणा कर नहीं सकते थे। यह अपने ही खिलाफ जाता । यह प्रति उत्पादक होता। क्योंकि रोजगार की समस्या सर्वेक्षण के सभी स्रोतों से बहुत साफ रूप से उभर कर आई है। यह मोदी सरकार के द्वारा बढ़ा दी गई बीमारी है।
महंगाई के खिलाफ कोई आश्वासन दे नहीं सकते थे, क्योंकि इन्होंने सरकार के द्वारा नियंत्रित पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को बेतुका बढ़ाया। हर क्षेत्र में महंगाई बढ़ने के मूल में यह समस्या थी। संगठित पेट्रोलियम उद्योग ने सभी उत्पादों को मालूम के धुलाई को वितरण और आवाजाही को बूस्ट किया।
क्लासिकल इकोनॉमिक्स में जब रोजगार बढ़ता है तब कीमत बढ़ती हैं। परंतु नए तरह की समस्या आज देखी जा रही है जिसे इकोनॉमिक्स में स्टैगफ्लेशन कहते हैं । गतिरोध युक्त महंगाई। बेरोजगारी भी बड़ी और महंगाई भी बड़ी तीसरी बात यह है कि वह फिर से युवकों को कोई कोरा झूठ आश्वासन दे नहीं सकते थे। युवकों का युवतियों का आह्वान कर नहीं सकते थे।
जब से विरोध में यह हताशा थी कि नरेंद्र मोदी को युवा वर्ग का पक्का समर्थन मिल रहा है, तब से यह बात भी तय थी कि इस समर्थन को पक्का करने के लिए उनके कैंप में आश्वासन नहीं है। जिस तरह के विनिर्माण या मैन्युफैक्चरिंग को 10 साल तक प्रोत्साहन दिया गया उसमें विकास या उत्पादन या बाजार में लेनदेन या जीएसटी का संकलन तो बढ़ सकता है पर रोजगार नहीं बढ़ सकता।
बिहार और उत्तर प्रदेश में बहुत सारे निर्माण कम हुए पुल पुलिया सड़क ब्रिज अनेको निर्माण का काम सिविल इंजीनियर की बेरोजगारी को मिटाने वाला नहीं था सिविल इंजीनियर पदों पर भाली नहीं हुई और ना प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनियों में सिविल इंजीनियर के लिए किसी तरह रोजगार के अवसर का बूस्ट नहीं आया।
इस लेख में हम महंगाई बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को ही सामने लेंगे और शिक्षा तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में आगे विश्लेषण करेंगे। शिक्षण संस्थानों को बहुत ज्यादा फैट करने का काम किया है मोदी सरकार ने और संघ प्रेरित संस्थानों में। इनमें विद्यार्थी परिषद भी शिक्षण संस्थानों के परिवेश को बिगड़ने के लिए बहुत आगे आई है।
हेल्थ के सेक्टर में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई नए एम्स का शिलान्यास या उद्घाटन हुआ है। इसी तरह आयुष्मान कार्ड का भी वितरण बढ़ गया है । निश्चित तौर पर पहले अटल बिहारी वाजपेई की सरकार को और बाद में नरेंद्र मोदी सरकार को इसका श्रेय जाता है। परंतु पूरे हेल्थ सिस्टम में केंद्र सरकार या जिन राज्यों में बीजेपी सरकार है खास कुछ उल्लेखनीय बात सामने नहीं आई है।
स्वास्थ्य और शिक्षा का मूल्यांकन आगे जारी रहेगा। बेरोजगारी एक ज्वलंत समस्या बन गई है। यह समस्या अब इंफ्लेम्ड है।
जिन लोगों को उनकी अपनी जमीन पर और अपने उनके खेत पर अधिकार और समर्थन दिया जाना था उसमें लापरवाही की वजह से गांव से बड़े पैमाने पर लोगों को पलायन करना पड़ रहा है। आर्थिक विकास की जो दिशा है उसमें दैनिक और मौसमी मजदूरी या रोजगार के जो मौके हैं वह बाढ़ नहीं पा रहे हैं। इस बारे में स्पष्ट आंकड़ा आया है कि 6 करोड लोग वापस खेती के क्षेत्र में अवसर ढूंढने के लिए लौट गए हैं। यह आकलन भारत सरकार के संस्थान का है।
इसी तरह मैट्रिक या हाई स्कूल पास युवक युवतियों में पहले जहां 35% बेरोजगारी थी वह अब बढ़कर 67% हो गई है। यह आंकड़ा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन आईएलओ का है। यह इतना स्पष्ट आकलन है की बेरोजगारी के मसले पर आम असंतोष को समझा जा सकता है। समझा जा सकता है की एक से सवा करोड लोग रेलवे के प्रारंभिक परीक्षा को पास करते हैं और हर 100 में 99 व्यक्ति को अगली परीक्षा में हटा दिया जाना है।
इस तरह युवा वर्ग के बारे में पहले से ही यह पक्का था कि यह वर्ग नरेंद्र मोदी के लिए जारपेसगी जमीन ( बंधक ) बनकर नहीं रहने वाला था। यह तय था कि युवा वर्ग झूठ दोहराकर और उन्मादी स्लोगन को लगाने के बाद फिर से अपनी जीवन स्थितियों और भविष्य के बारे में अपने को ठगा हुआ पाएगा।
इस तरह युवक युवतियों की बदौलत ही देश में वातावरण वापस लौटा है। यह नाकामियों के मूल्यांकन का वातावरण है और जनतंत्र में निहित परिवर्तन के लिए बूस्टर है।
- प्रियदर्शी