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Karakat PC: काराकाट में अंतिम चरण में 1 जून को मतदान, उपेंद्र कुशवाहा, राजाराम और पवन सिंह में त्रिकोणीय मुक़ाबला
Karakat PC: इस लोकसभा क्षेत्र का पहला चुनाव चुनाव 2009 में हुआ था, तब जेडीयू के महाबली सिंह साँसद बने थे
Karakat PC: लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण में काराकाट में 1 जून को मतदान होगा। यहां उपेंद्र कुशवाहा, राजाराम और पवन सिंह में त्रिकोणीय मुक़ाबला है।
काराकाट लोकसभा क्षेत्र: काराकाट में अंतिम चरण में चुनाव है। इस चुनाव क्षेत्र का गठन 2008 में हुआ था, जिसमें पूर्ववर्ती बिक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र को समाप्त कर दिया गया और उसके अधिकांश हिस्से तथा कुछ अन्य क्षेत्रों को मिलाकर इस लोकसभा क्षेत्र का निर्माण किया गया था ।
इतिवृत्त (Chronology )
इस लोकसभा क्षेत्र का पहला चुनाव चुनाव 2009 में हुआ था, तब जेडीयू के महाबली सिंह को पहला सांसद बनने का मौका मिला था।
2014 के आम चुनाव में आर एल एस पी उपेंद्र कुशवाहा ने आरजेडी की कांति सिंह को एक लाख से अधिक मतों से शिकस्त दी थी। लेकिन उपेंद्र कुशवाहा को 2019 में पराजय का सामना करना पड़ा , तब उन्हे जेडीयू के महाबली सिंह ने हराया था। इस तरह यहां के निवर्तमान सांसद जेडीयू के महाबली सिंह हैं।
लेकिन इस चुनाव में जेडीयू और और उपेंद्र कुशवाहा दोनों के भाजपा के साथ यानि एनडीए में होने की वजह से महाबली सिंह को टिकट नहीं मिला और इस तरह उपेंद्र कुशवाहा फिर से यहां से उम्मीदवार हैं और इस बार वे एनडीए में यानि भाजपा और जदयू दोनो के साथ हैं।
Karakat PC: इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग में काराकाट सीपीआई एम एल को मिला है और उसने राजाराम सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। राजाराम सिंह माले के जाने माने चेहरा हैं और उन्होंने एक बार यहां से चुनाव भी लड़ा है, उन्हें बहुत ही कम वोट मिले थे। लेकिन इस बार वे इंडिया गठबंधन में है और इंडिया गठबंधन के गच के घटक CPI-ML से के उम्मीदवार हैं . राजा राम सिंह जब इंजीनियरिंग के छात्र थे तब उन्होंने एक युवा संगठन का निर्माण किया था जो बाद में सीपीआई एमएल के द्वारा निर्मित ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आयशा) का अंश बन गया था।
राजा राम सिंह मृदुभाषी और पक्के व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हैं। मा होने के बाद जब उन्होंने सेट गवा दी थी तब पुलिस दमन का शिकार होना पड़ा और वह काफी समय तक पीएमसीएच में भर्ती थे।
राजाराम सिंह अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव हैं । राजाराम सिंह ने किसान आंदोलन के लंबे दौर में बिहार से लगातार प्रतिनिधित्व किया है। इसके साथ ही राजाराम सिंह पहले ओबरा विधानसभा क्षेत्र से दो बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
पार्टी में इनका कद ऊंचा है और पार्टी स्रोतों के अनुसार सीपीआईएमएल के तीन उम्मीदवारों में से सबसे ज्यादा पक्की जीत संभावना वाले उम्मीदवार हैं। इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा अपने गठबंधन से अकेले उम्मीदवार है ।
एनडीए के प्रतिनिधि के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा के संदर्भ में राजनीतिक गलियारों में दबी जुबान से यह बात होती है की शासन खेमा किसी एक उम्मीदवार से पीछा छुड़ाना चाहता है तो वह है उपेंद्र कुशवाहा। ऐसा कहने वाले लोग तर्क यह देते हैं कि पहले भी लोकसभा 2014 19 में वह जीते हुए प्रतिनिधि थे और अकेले एमपी होकर के भी एनडीए को हमेशा ही परेशान रखते थे।
उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ दिया था और आगे चलकर कार्यक्रम से उपेंद्र कुशवाहा ने जदयू के साथ रिश्ता बनाया और इस तरह उनकी एंट्री एनडीए में हुई। हाल की टिकट तय होने तक उन्होंने जदयू से अलग हटकर मोर्चा का निर्माण कर लिया था। राजद और कांग्रेस के साथ साथ मुकेश सहनी के वोट भी मिलने की उम्मीद है।
काराकाट से तीसरे महत्वपूर्ण प्रत्याशी हैं भोजपुरी फिल्मों के पावर स्टार माने जाने वाले निर्दलीय उम्मीदवार पवन सिंह। पवन सिंह ने यहां के चुनाव को त्रिकोणात्मक बना दिया है। पवन सिंह हाल तक भाजपा में थे, लेकिन उनके यहां निर्दलीय चुनाव लडने की संभावना है।
काराकाट लोकसभा क्षेत्र में कुल छः विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं – नोखा , डेहरी, काराकाट, गोह, ओबरा और नवीनगर। नोखा, डेहरी और काराकाट रोहतास जिले में पड़ता है, जबकि गोह , ओबरा और नवीनगर औरंगाबाद जिले में।
अभी नोखा से आरजेडी की अनिता देवी, डेहरी से आरजेडी के फतेह बहादुर कुशवाहा, काराकाट से माले के अरुण कुशवाहा, गोह् से आरजेडी के भीम यादव , ओबरा से आरजेडी के रिषि यादव और नवीनगर से आरजेडी के विजय कुमार सिंह विधायक हैं। इस तरह से यहां की सभी छः विधानसभा सीटों पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है और इस लिहाज से वह यहां मजबूत है।
Karakat PC: काराकाट लोकसभा क्षेत्र कुशवाहा बहुल क्षेत्र है और अभी तक यहां के सभी सांसद इसी जाति से हुए हैं। इस चुनाव में भी उपेंद्र कुशवाहा और राजाराम सिंह दोनों कुशवाहा जाति से ही हैं, इसलिए कुशवाहा मतों में विभाजन की संभावना जताई जा रही है। कुशवाहा के अतिरिक्त यहां राजपूत और यादव वोटर भी बड़ी संख्या में हैं। यही कारण है कि पवन सिंह के उम्मीदवार बनने से राजपूत मतों का झुकाव उनकी ओर होने की संभावना है ।
दूसरी बात यह है कि यह क्षेत्र भोजपुरी भाषा के प्रभाव वाला है और खासकर भोजपुरी युवाओं का वोट भी पवन सिंह को मिलने की संभावना है। इस तरह पवन सिंह जीते या नहीं, वे एनडीए को क्षति पहुंचा तो सकते ही हैं, क्योंकि उनका राजपूत आधार राजपूत वोट तो एनडीए का ही है।
पवन सिंह की उम्मीदवारी के संदर्भ में शासन के गलियारे में कहा जाता है कि वह उपेंद्र कुशवाहा को चुनाव से बाहर करने के लिए सत्ता पक्ष द्वारा ही प्लांटेड उम्मीदवार हैं। यह प्रयास तो चलते रहेंगे परंतु जमीनी हकीकत यह है कि यहां मुकाबला उपेंद्र कुशवाहा और राजाराम सिंह में है।
- मनोज कुमार सहाय