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Sushil Kumar Modi: वर्तमान में सुशील मोदी के स्तर का कोई नेता नहीं रहा

Sushil Kumar Modi: सुशील कुमार मोदी बिहार आंदोलन के दरमियान और इमरजेंसी के दरमियान कई दफा जेल भी गए

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Sushil Kumar Modi: बिहार आंदोलन में सुशील मोदी ने इसके सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों को महत्व दिया था . आंदोलन के बाद भी इन्होंने जेपी द्वारा बनाए निर्दलीय संगठन के सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों पर अपनी नजर बनाकर रखी थी और उससे सीख लेने की चेष्टा भी करते थेl
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय राजनीति के बाद कुछ समय तक वह कुछ व्यवसाय भी करते थे। परंतु उन्होंने यह पाया कि बिहार जैसे प्रदेश में उसे समय तक प्रति महीना ₹30000 की भी व्यवस्था करनी है तो उसके लिए पूर्णकालिक व्यवसाय होना पड़ेगा। जल्द ही फिर भारतीय जनता पार्टी के साथ सक्रिय होकर सुशील मोदी पूर्णकालिक हो गए।

सुशील मोदी का निधन सोमवार की रात 9:30 पर दिल्ली एम्स में हुआ। 3 अप्रैल को गले में कैंसर की पहचान हुई थी . उनका इलाज दिल्ली एम्स में चल रहा था.

1974 आंदोलन में छात्र संघर्ष समिति से अलग रहकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपनी उपस्थिति बना रखी थी। उस समय भी संघ और जनसंघ का अपना स्वतंत्र और समानांतर तथा अलग एजेंडा था।

इस तरह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद बिहार आंदोलन का एक हिस्सा भी था और अलग भी था। और इस तरह अपनी दीर्घकालीन योजना के तहत विद्यार्थी परिषद के लोग बिहार आंदोलन में कभी साथ के और कभी अलग कार्यक्रम के साथ सक्रिय थे।

सुशील कुमार मोदी बिहार आंदोलन के दरमियान और इमरजेंसी के दरमियान कई दफा गिरफ्तार किए गए और जेल भी गए.

विद्यार्थी परिषद का नेतृत्व गोविंदाचार्य करते थेl. सुशील कुमार मोदी एबीवीपी के शीर्ष के नेता थे।

पटना यूनिवर्सिटी कैंपस के साथ-साथ बिहार के विभिन्न यूनिवर्सिटी कैंपस में जब गैरकांग्रेसी वादी कोशिश चल रही थी तब सुशील मोदी पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन में महासचिव थे।

लालू प्रसाद यादव के साथ साझेदारी में महासचिव पद पर उम्मीदवार थे और जीते थे।

लालू प्रसाद यादव तब पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष थे। उस समय स्टूडेंट यूनियन ने बिहार में खासतौर पर महंगाई , बढ़ती बेरोजगारी और भ्रष्टाचारके खिलाफ साथ ही साथ शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए आंदोलन चलाया था। जिसके नेतृत्व लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण कर रहे थे। और जयप्रकाश नारायण की वजह से यह एक व्यापक जन आंदोलन में बदल गया तथा बिहार के इस आंदोलन का अखिल भारतीय प्रभाव पड़ा। सोमवार 13 जून की रात सुशील मोदी का दिल्ली एम्स में निधन हो गया।

विद्यार्थी परिषद के बाद कुछ दिनों तक उन्होंने व्यवसाय करने की सोची परंतु बाद में आडवाणी और गोविंदाचार्य के सौजन्य से वह बीजेपी में आए और पटना से विधायक बने। आगे 1991 के बाद ऐसा लगता था कि लालू प्रसाद यादव खुद भी अपनी राजनीति के भविष्य के हिसाब से. सुशील मोदी के जीत को पसंद करते हैं और पटना से डमी कैंडिडेट दिया करते हैं .

जब लालू से अलग होकर नीतीश ने पार्टी बनाई और पहले समता पार्टी और बाद में जेडीयू के माध्यम से राजनीति में अपनी दावेदारी करने लगे तब भाजपा और जेडीयू साथ में थी।

सरकार में भाजपा के पक्ष से शुरू से ही सुशील मोदी नेतृत्व करते आए और जब तक बिहार में थे सुशील कुमार मोदी उपमुख्यमंत्री तथा वित्त मंत्री रहते थे.

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विगत 5 दशक में वित्त मंत्री के रूप में बिहार का केंद्र में सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व करते हुए सुशील मोदी को ही देखा गया है . नवंबर 2005 से 2020 तक सुशील मोदी कई दफा बिहार के वित्त मंत्री और उपमुख्यमंत्री रहे हैं .

इसके पहले उन्होंने पटना से विधायक की दावेदारी को छोड़कर– भागलपुर से लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया। बिहार में दो दफा एमएलसी रहते हुए सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री बने थे

इसके बाद राज्यसभा में रहे . अभी जब दोबारा उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत नहीं किया गया, तब उन्हें उनकी बीमारी का भी अंदाजा हो गया था। जीवन के इस उत्तरार्ध में लगातार सभी सदनों में जाने का मौका पार्टी ने सुशील मोदी को दिया था. पार्टी के प्रति उनका सबसे अंतिम वक्तव्य आभार व्यक्त करने वाला ही था।

सामाजिक और सुधार के मसलों पर सुशील मोदी के जीवन के कुछ प्रसंग है। विद्यार्थी परिषद के दिनों में वह यह जानते थे कि बिहार आंदोलन से युवाओं के लिए जो मैसेज गया , उसमें एक मैसेज यह है कि बिना तिलक दहेज के शादियां हो l

सुशील मोदी जयप्रकाश नारायण के बनाए संगठन छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से भी सबक लेते थे. जहां अंतरजातीय विवाह और बिना धर्म ढकोसला के शादियों को प्रोत्साहन दिया जाता था. जहां जाति व्यवस्था को तोड़ने के कार्यक्रम थे। सुशील मोदी अपने संगठन में यह कहते थे , कि वाहिनी से अंतरजातीय विवाह के अनुभवों को तो वह नहीं सीख सकते , .

तिलक दहेज बिना शादी का: यह अनुभव विद्यार्थी परिषद के लिए भी लिए जाने लायक है .

शादियों में दहेज धर्म और ढकोसला नहीं हो। आंदोलन के उन दिनों के कई दशकों के बाद उन्होंने अपने पुत्र के विवाह में , उन्होंने अपने समय के सरकार के कई सहकर्मीमंत्रियों के मुकाबले भी बहुत ही सादगी रखी थी। बहुत ज्यादा लोगों को शादी समारोह में आमंत्रित करने से परहेज किया .

हिंदुत्व के नारे के सक्रिय नेता होते हुए भी उन्होंने अपने लिए क्रिश्चियन महिला को अपना पार्टनर चुना l. इस पर बहुत चर्चा नहीं होती कि सुशील मोदी ने एक ईसाई महिला के साथ विवाह किया।

निजी जीवन में वह अपने पत्नी के धार्मिक आस्थाओं के लिए उदार व्यक्ति थे।

उनके पुत्र को उन्होंने कभी भी राजनीति में प्रोत्साहित नहीं किया और पुत्र ने भी पढ़ाई लिखाई के बाद सुशील मोदी के प्रभावों का इस्तेमाल कर आगे का रास्ता नहीं चुना .

कहना नहीं होगा कि पिछले चार दशक से बिहार बीजेपी में सुशील मोदी सबसे समर्थ नेता थे।

  • चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी (C. A. Priyadarshi)

    priyadarshi
    प्रियदर्शी,  जानेमाने समाजसेवी और लेखक

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