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Rahul Gandhi: नेता प्रतिपक्ष को संविधान के बारे में बोलने का हक़ क्यों नहीं ?

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Rahul Gandhi: नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस नेता राहुल गांधी को संविधान के बारे में बोलने का हक़ क्यों नहीं ? जदयू के ललन सिंह ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जो जवाब दिया था, उसमें वह 1974 आंदोलन के नेता के रूप में अपने को प्रोजेक्ट कर रहे थे।

1974 आंदोलन में ललन सिंह को लोग लगभग नहीं जानते थे। राजनीति में उनकी शुरुआत दूसरी जगह से हुई है। लोग तो उसके बहुत बाद तक भी ललन सिंह को नहीं जानते थे।
संसद में उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को संविधान के बारे में बोलने का कोई हक़ नहीं है।

वह बहुत ऊंची जुबान में बोल रहे थे और कह रहे थे कि नेता प्रतिपक्ष यानी राहुल गांधी को संविधान के बारे में बोलने का कोई हक़ नहीं है। वे लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के जवाब में काफी लंबा बोले थे। लंबे वक्तव्य में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रति चाटुकारिता भरी हुई थी।

कुछ दिनों पहले ललन सिंह जिस तरह से अमित शाह को लोकसभा के अंदर परेशान करते हुए नज़र आए थे, उससे एकदम भिन्न व्यक्ति के रूप में लोगों ने लल्लन सिंह को संसद में सुना।

इसके पक्ष में जो तर्क ललन सिंह दे रहे थे , वह बीजेपी के पक्ष में चाटुकारिता के ही तर्क थे।

ललन सिंह ने इमरजेंसी कॉल का बढ़ चढ़कर उल्लेख किया। संविधान के ढांचे को मन मुताबिक बदलने की इंदिरा गांधी की कोशिश पर , अपने को केंद्रित रखा।

उन्होंने नेहरू तक को भी समेट लिया और आरोप लगाया कि संविधान का सम्मान कांग्रेसी नहीं कर सकता।

इसके साथ ही उन्होंने मोदी की वंदना करते हुए कहा की संविधान सभा में पहुंच कर मोदी ने सबसे पहले संविधान का नमन किया और तब सरकार बनाए।

परंतु यह सत्य है की दोनों ने संविधान को अपने मतलब के हिसाब से तोड़ने की कुछ कोशिश की है।

नरेंद्र मोदी की सरकार और उनकी पार्टी में अनेक लोग हैं , जो संविधान के इस ढांचे को समाप्त कर हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं।हिंदू राष्ट्र के अलंबदार हैं।

हिंदू नियमों से देश को चलाना और जिन्हें वह हिंदू मानें , उन्हें प्रथम दर्जे का नागरिक और अन्य लोगों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनना चाहते हैं।

बाबा साहब का नमन करने या संस्थानों में संविधान का नमन करने से इस विचारधारा का संविधान के प्रति विश्वास जाहिर नहीं होता। कांग्रेस ने इमरजेंसी आरोपित करने के लिए अपनी निंदा पहले से कर ली है।

हालांकि कांग्रेस में वह वातावरण नहीं है , कि उनका कोई लीडर इमरजेंसी कॉल के ज्यादतियों के बारे में विस्तार से अपने मन की बात कर सके।

1974 के बिहार आंदोलन के जो लोग कालका क्रम में कांग्रेस में चले गए उनकी अपनी कुछ मजबूरियां हैं । वे लोग समझते हैं कि इमरजेंसी पर बहुत कुछ बोलेंगे तो राहुल गांधी और उनके आसपास के लगुओं-भगुओं की निगाह पर चढ़ जाएंगे।

हालांकि यह मानकर चलना चाहिए कि राहुल गांधी कांग्रेस के समय की कुछ अतिरंजित दोनों के विरोध के आगे अब बहुत अधिक खड़े होने वाले नहीं हैं। कांग्रेस पर लगने वाले कई लक्षण से राहुल ने कांग्रेस को बाहर निकालने की सफल या असफल कोशिश की है।

ललन सिंह इन सब बातों के खिलाफ कोई नैतिक जजमेंट देने की स्थिति में कतई नहीं है।

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राहुल गांधी ने इंदिरा गांधी के बनाए हुए कई गतिरोध को दूर करने के लिए कोशिशें की थी। मशहूर लालडेंगा समझौता, मिजोरम में सत्ता के हठ को छोड़कर हुआ था।

लोगोंवाल समझौता करके राजीव गांधी ने पंजाब के खालिस्तान आंदोलन संबंधी गतिरोध को कमजोर किया था। इंदिरा गांधी के मुकाबले उन्होंने दिल्ली को पंजाब ब्लॉक के लोगों के प्रति उदार बनाया था।

असम में इंदिरा का जो सत्ता हठ था, उस वजह से असमिया पहचान को सदमा लग रहा था। राजीव गांधी ने असम समझौता किया।

राहुल गांधी ने संविधान में संशोधन किया तो उनका सबसे प्रमुख योगदान 73 वा और 74वा संविधान संशोधन माना जाता है। जो स्वशासन की इकाइयों को मजबूत करने के लिए बनाया गया था।

कांग्रेस ने वन अधिकारों की मान्यता के लिए वन अधिकार कानून 2006 बनाया था।

संविधान संशोधन तो कई बार हुए हैं और उसमें हर बार संविधान के मूल ढांचे को कमजोर करने के लिए नहीं बल्कि ज्यादातर जनतांत्रिक आधारों को मजबूत करने के लिए संविधान संशोधन हुए हैं।

परंतु कांग्रेस के ऊपर 42 वां संविधान संशोधन का आरोप अब तक बनता है। इसके लिए कांग्रेस की आत्मलोचना को बार-बार रखे जाने की जरूरत है।
इमरजेंसी लगाई जाने और उसे समय कानून संस्थाओं का दुरुपयोग करने के बारे में इंदिरा कला के प्रयासों की बार-बार आत्मालोचना की जानी चाहिए। जैसा कि सिख विरोधी दंगा में कांग्रेसियों की भूमिका के लिए कांग्रेस ने बार-बार माफी मांगी है।

42 वां संविधान संशोधन के अनुसार भारत के सांसद और विधानसभाओं का कार्यकाल एक तरफ बदल दिया गया।
जनप्रतिनिधि कानून को प्रधानमंत्री के लिए बदल दिया गया।

संविधान के ढांचे को बदलने के लिए अन्य कई को शीशे की गई । इनमें कई को कांग्रेस इमरजेंसी के काल में पूरा नहीं कर पाई थी।

संविधान के ढांचे में कांग्रेस की भूमिका की समीक्षा करते हुए इन सब बातों का ध्यान रखा जाएगा।

परंतु बीजेपी की मंशा या आरएसएस के घोषित लक्ष्य पर ध्यान दिए बगैर संविधान के बारे में RSS या BJP को संदेह के दायरे से बाहर नहीं लाया जा सकता।

आप अपने तर्क जाल बाना लें , और उसके साथ-साथ आप चारण राग अलापने मैं लग जाए। यह सब संसदीय राजनीति में बहुत नई बात नहीं है।

परंतु संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद देते हुए, ललन सिंह जितना ऊंचा बोल रहे थे , उसको बहुत गंभीरता से नहीं लिया जा सकता है।

जेडीयू पार्टी के कई ऐसे वरिष्ठ लोग हैं। जो ललन सिंह के भाषण को सुनकर अपना मुंह छुपा रहे होंगे।

c a priyadarshi

  • सी ए प्रियदर्शी,  जानेमाने समाजसेवी और लेखक

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