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Nitish Kumar: नीतीश से शासन नहीं संभल पा रहा?
Nitish Kumar: बिहार में क्या हो रहा है? एक्सीडेंट से मौत की खबरें और हत्या तथा अन्य को खबरें, रास्ते चलते छीना झपटी, घर में चोरी मॉब लिंचिंग, गुंडागर्दी की खबरें पहले से ज्यादा आ रही हैं।
हालांकि अन्य गतिविधियां भी तेज हैं और लोग अभी अपराधियों के डर के आगे घर में घुस नहीं गए हैं। और रात-दिन आवाजाही का वातावरण ज्यादातर जगहों पर बचा हुआ है।
क्या नीतीश शासन की कमान ढ़ीली पड़ी है? नीतीश अगर जनादेश की अवमानना करके भी पाला बदल देते थे तब भी नीतीश कुमार की पकड़ रहती थी। नीतीश कुमार की पकड़ शासन पर पहले बनी रहती थी। और अब लगता है कि नीतीश की पकड़ समाप्त हो गई है।
परंतु इसकी वजह यह नहीं थी कि नीतीश ने कोई नैतिक सत्ता बनाई थी जो उनकी वजह से शासन और प्रशासन को चलती थी। बल्कि इससे उलट नीतीश ने अनैतिक सत्ता का ऐसा ताना-बाना तैयार किया था जिसकी वजह से एक किस्म की कुलीनता के साथ चल रहा था।
शासन के चलने के लक्षणों को एक नज़र में देखें तो बड़ा ही भ्रांति मुल्क का वातावरण दिखता है।
पुलिस और थाना, वीआईपी मूवमेंट, शराबबंदी और अन्य जाने-माने स्थान की सुरक्षा में लगा हुआ था। और नीचे जमीन पर अपराधियों की पैठ बढ़ती जा रही थी। किसी भी पिछड़े हुए, परंतु उभर रहे राज्य में एक तरह की विश्रांति रहती है।
बिहार के छात्र बाहर जाकर के ऊंचे वेतन पर काम कर रहे हैं। परंतु तरक्की का रास्ता हर 15 नौजवानों में से एक के लिए ही खुलता है। 15 में से 14 नौजवान युवती और युवक बेरोजगार बने हुए हैं। या अनुपयुक्त रोजगार में लगे हुए हैं। इनमें से आधे लोग तो तरक्की के लिए मेहनत कर रहे हैं, अवसर खोज रहे हैं।
15 में अनेक युवक की युवती ऐसे हैं जो मेहनती और योग्य नहीं है। परंतु मेहनती और योग्य लोगों में भी अच्छा अनुपात है, जो बेरोजगार हैं और अपने रोजगार प्राप्त सहकर्मी को देखकर बहुत उद्विग्न रहते हैं।
नीतीश सरकार रिकॉर्ड रोजगार देने वाली राज्य सरकार है। इसके बावजूद इस शासन की पकड़ कमजोर क्यों पड़ती जा रही है। यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर का स्तर और शासन का स्तर बहुत ही पिछड़ा हुआ है ।
हम ऐसा नहीं कह सकते कि यह स्थिति बिहार के अलावा और कहीं नहीं है। परंतु बिहार में बचे हुए नौजवानों में से शराब बेचने में या जमीन बेचने की दलाली करने में या अन्य पेट्टी किस्म के गैर कानूनी या अपराधी गतिविधियों में लगे हुए हैं।
शराबबंदी कानून थोड़ा व्यावहारिक बनाया गया है, परंतु यह अब भी एक ड्रैकोनियन कानून है। शराबबंदी को लागू करने की जितनी शक्ति पुलिस को दी गई है, उसकी बदौलत पुलिस खुद शराब बेचने का तंत्र चल रही है।
बीच-बीच में कुछ रेड और कुछ गिरफ्तारियां करने और दिखाने के बावजूद पुलिस मुख्य रूप से लाखों नौजवानों को शराब के धंधे में संरक्षित कर रही है। छुपाछुपी के इस खेल में बहुत तरह के हाथ से हो रहे हैं।
भ्रष्टाचार और नीति विभिन्न विकास योजनाओं की वजह से भी लोगों को संत्रास में रहना पड़ रहा है। विकास योजनाओं में ज्यादातर के साथ एस्टीमेट घोटाला है।
माइक्रो लेवल पर या जमीन स्तर पर जिन लोगों के एंपावरमेंट की सरकारी योजना है, उन्हें लोगों तक पहुंचाने का मेकैनिज्म बहुत-बहुत भ्रष्ट है। जाति जनगणना से यह एक सामान्य आंकड़ा निकल गया की 96 हजार लोग इस श्रेणी के हैं।
अभी जाति जनगणना के बाद जिन लगभग 1,00,000 परिवारों की सालाना आमदनी ₹25000 से कम है, उनके लिए सरकार ने बड़ी सहायता का ऐलान किया था।
इन सब से गरीब परिवारों को नीतीश सरकार ने एक मुफ्त सहायता देने की घोषणा कर दी थी। प्रत्येक परिवार को दो-दो लाख रुपए की सहायता की योजना अपनी इच्छा के रूप में नीतीश ने जाहिर की। बाद में यह कहा कि इन सभी परिवारों को शुरू में ₹ 50,000 के अनुपात में सहायता दी जाएगी।
महादलित के लिए 10 या 5 या 3 डिसमिल जमीन देने की योजना को नीतीश के नेतृत्व में चले प्रशासन ने जमींदोज कर दिया था। बिहार में प्रखंड विकास कार्यालय अत्यंत गरीब परिवारों को चिह्नित करने की योजना को मिट्टी में मिला देने के लिए कमर कस लिया है।
इसके पीछे कारण क्या है?
प्रशासन पर नियंत्रण करने में नीतीश सरकार की अक्षमता?
जानबूझकर प्रशासन को ऐसा बना करके रखने में इस सरकार की साक्षमता?
विमर्श न्यूज़ गया के दक्षिणी दूरस्थ इलाके के गांव में चार प्रखंड के प्रतिनिधियों के संवाद जुटा रहा था।
₹15000 सालाना आमदनी का आय प्रमाण पत्र प्राप्त करना असंभव हो गया है। प्रखंड विकास पदाधिकारी (यों) में बिना बताए हुए यह समझदारी है कि अत्यंत गरीब श्रेणी के लोगों का आय प्रमाण पत्र बना नहीं। जो आदिवासी परिवार 25-30 वर्षों से बिहार में आकर बसे हैं, उनका जाति प्रमाण पत्र बना लेना, प्रशासन ने संभव बना दिया है।
फ्रॉड और दलाल लोगों के लिए यह एक चुनौती हो गई, कि 96 हजार लोगों के लिए सरकार से जो सहायता राशि मिली है उसे वारा-न्यारा कर देना है।
यह बहुत स्पष्ट है कि किसी गरीब राज्य में सकल आमदनी बढ़ जाने से हासिल बहुत कम होता है। गरीबों की वजह यह है कि यह नीचे के स्तर पर और बहुत बड़े पैमाने पर फैली हुई है।
बिहार में एक और नई बात देखी जा रही है। राशन कार्ड का पुनरीक्षण चल रहा है और उसमें अत्यंत गरीब परिवार के लोगों के सदस्यों का नाम काट दिया जा रहा है।
सरकार राशन कार्ड वालों को मुफ्त राशन देने की नीति को बचाकर रख रही है और इसी के तहत सरकार ऐसे लोगों की संख्या को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं।
एस्टीमेट घोटाला में यह पूरी संभावना होती है कि विकास कार्यों की योजना राशि का बहुत बड़ा हिस्सा ऊपर ऊपर से ही निकाल करके बाकी का काम प्पेट्टी स्तर के ठेकेदार को दे दिया है।
इसी अराजक की स्थिति में लूटमार, लफंगई, और इससे आगे बढ़कर स्त्री विरोधी हिंसा, बलात्कार, बदसलूकी, डकैती और हत्या बढ़ गई है।
समाज की अवस्था बहुत लोगों के लिए आदम व्यवस्था की तरह रह गया है। मॉडल डेमोक्रेटिक इंफ्रास्ट्रक्चर और वेलफेयर स्टेट गरीब लोगों के लिए बहुत कम मौजूद है। इस अवस्था में महाजनी इतनी अधिक बढ़ गई है की ₹1 के बदौलत₹1 शुद्ध में चला जा रहा है।
दैनिक सूट साप्ताहिक सूत्र प्रति महसूस का चलन है और इसी तरह के कठोर अनुदार शर्तों पर लोगों को पैसा मिल रहा है।
यह समस्या कोई नीतीश शासन के समय की ही नहीं है। सुशासन के दौर में भी कई तरह की समस्याएं चल रही हैं।
पहले अंधेरे और अंधेरगर्दी का साम्राज्य था। अब अंधेरा तो दूर हो रहा है, परंतु अंधेरगर्दी कितनी है। बढ़ गई है।
सुधाकर सिंह कृषि, मंत्री के रूप में, कृषि विभाग के भीषण भ्रष्टाचार पर बोले थे। अभी राजस्व मंत्री मनीष जायसवाल ने भूमि सुधार और राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार के मसले पर निराशा के साथ बयान दिया। बिहार में जमीन के दाखिल खारिज यानी म्यूटेशन की समस्या बढ़ गई है और सरकार ने इसे रोकने के लिए जो कदम लिए हैं उसका दशमलव स्तर तक की प्रभाव पड़ा है।
या तो राजस्व विभाग का भ्रष्टाचार परोक्ष रूप से शासन समर्थित है या नीतीश सरकार शासन नहीं चला पा रहे हैं।
अधिकारियों ने घोषणा कर दी कि जिन स्कूलों ने सरकार के साथ पंजीयन नहीं करवाया है वह 15 अगस्त तक इस कर ले।
12000 स्कूल सरकार से नियमित हैं, और 40000 प्राइवेट स्कूल बिहार सरकार मैं पंजीकृत नहीं है। इन सब के पंजीकरण के लिए 15 अगस्त का समय देना प्रशासनिक चुस्ती का जितना परिचय देता है उससे ज्यादा पैसा प्रशासनिक स्तर पर अव्यवहारिक निर्णय है। इससे भी ज्यादा संभावना यह है कि स्कूलों के पंजीयन के दबाव में विभाग को बड़े पैमाने पर भ्रष्ट कमाई करनी है।
बिहार में एक समस्या पहले से रही है कि कई जगह पर बिल्डिंग बनते हैं स्मारक बनते हैं और उनके रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं बनती।
कुलीन तांत्रिक शासन बिहार के शानदार पटना म्यूजियम की व्यवस्था को बर्बाद करके सैकड़ो करोड रुपए के नए म्यूजियम और दोनों म्यूजियम को जोड़ने वाले सैकड़ो करोड रुपए के टनल में लगा है। यह कुलीन तांत्रिक मानिक विलास का मामला नहीं है। यह मामला भीषण भ्रष्टाचार है। नीतीश सरकार शासन नहीं चला पा रही है।
नीतीश कुमार ने अपने साथ निश्चय के बाद उनका मूल्यांकन किए बगैर एक जरूरी निश्चय घोषित किया। इस घोषणा के अनुसार सन 2025 तक सभी खेत को पानी सुनिश्चित करना था।
सिंचाई का पानी की गारंटी इस तरह के लोक लुभावन नारों से नहीं हो सकती है। बल्कि इसके लिए जरूरी है की बिहार के भारी जल संसाधन और नदियों का बहुत ही समृद्ध और शोध आधारित योजना हो। बिहार की नदियां इंजीनियरिंग की भी चुनौती है और पर्यावरण विद् के लिए भी चुनौती है।
नदियों के स्वतंत्रबहाव और नदियों के निर्मलता की चुनौती है। हर खेत को पानी सुनिश्चित करने के लक्ष्य में इंजीनियरिंग ज्ञान और पर्यावरण सरोकार बहुत जरूरी है।
इस तरह अभी के समकालीन या फौरी कसौटी पर यह बहुत अधिक चिंता का विषय है कि नीतीश अपने प्रशासन और शासन तंत्र पर नियंत्रित खोते चले जा रहे हैं।
- चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी, जानेमाने लेखक और समाजसेवी