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Krishna Janmashtami 2024: श्री कृष्ण जन्मोत्सव आज, जानें महत्व और पूजा विधि

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Krishna Janmashtami 2024: श्री कृष्ण जन्मोत्सव आज है। घर-घर में इसकी तैयारियां चल रही हैं। इस पर्व का महत्व और पूजा विधि के बारे में जानें।

श्रीकृष्ण पूर्ण अवतार हैं। वे योगेश्वर हैं, रास के नायक हैं, मुरली के सम्राट हैं तो गीता के जनक भी हैं। इसीलिए उनकी भक्ति मन का उत्सव बन जाती है। भक्त जब उनके समक्ष समर्पण करता है तो ‘गोपी’ बन जाता है। जन्माष्टमी हमें श्रीकृष्ण की भक्ति और समर्पण की शक्ति प्राप्त करने का अवसर देती है, जो इस वर्ष 26 अगस्त को है।

श्रीकृष्ण पूर्ण अवतार हैं। वे योगेश्वर हैं, रास के नायक हैं, मुरली के सम्राट हैं तो गीता के जनक भी हैं। इसीलिए उनकी भक्ति मन का उत्सव बन जाती है। भक्त जब उनके समक्ष समर्पण करता है तो ‘गोपी’ बन जाता है। जन्माष्टमी हमें श्रीकृष्ण की भक्ति और समर्पण की शक्ति प्राप्त करने का अवसर देती है, जो इस वर्ष 26 अगस्त को है।

जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं है, जो भक्ति और अध्यात्म की शक्ति से पूरा न हो सके। बस, इस शक्ति को जागृत करने की आवश्यकता होती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन शास्त्रोक्त विधि-विधान, नियम-संयम द्वारा भक्त, भगवान की ब्रह्मांड में व्याप्त दिव्य शक्तियों के अंश अपनी भक्ति-शक्ति एवं क्षमता के अनुपात में जागृत करते हैं।

श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी लीलाएं यह संदेश देती हैं कि सच्ची भक्ति और समर्पण से न केवल भगवान को पाया जा सकता है, बल्कि जीवन की अधूरी अभिलाषाओं को भी पूरा किया जा सकता है, फिर चाहे वो संतान प्राप्ति की अभिलाषा हो या धन, वैभव, ऐश्वर्य की प्राप्ति अथवा दुख निवृत्ति। आज के समय में भी देश-विदेश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर असंख्य भक्तों के मन का उत्साह द्वापर युग की याद दिलाता है।

जन्माष्टमी पर्व भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव तो है ही, साथ में श्रीकृष्ण की माया को विस्तार देने वाली योगमाया का भी प्रादुर्भाव दिवस है, जिनका जन्म बालकृष्ण को कंस के हाथों से बचाने के लिए हुआ था।

भगवती योगमाया ने कन्या के रूप में उस युग में जन्म लेकर मानव जाति को यह दिव्य संदेश दिया कि कन्या का जन्म बलिदान के लिए नहीं होता। जब कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर योगमाया को उसके पैरों से पकड़कर जमीन पर जोर से पटक कर मारना चाहा तो योगमाया ने अट्टहास कर कंस से कहा, “मैं चाहूं तो तुम्हें इसी समय मार सकती हूं, किंतु तुमने मेरे पैर पकड़े हैं और तुम्हारा काल कोई दूसरा है, इस वजह से मैं तुम्हारी जान नहीं ले सकती।”

योगमाया कंस के चंगुल से छूटकर अंतर्ध्यान होकर स्वर्ग को जाने से पहले कंस को चेतावनी दे गई थीं कि तुम्हारा काल जन्म ले चुका है।

इस बार 26 अगस्त सोमवार को भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि दिन में 8 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। उसके बाद अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी, जो कि अगले दिन प्रातः 6 बजकर 34 मिनट तक है। प्रमाणित पंचांगों के अनुसार, 26 अगस्त सोमवार को रात्रि 9 बजकर 10 मिनट से रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ होगा।

26 अगस्त को चंद्रमा वृष राशि में विद्यमान है, जिसके कारण महापुण्यदायक जन्मोत्सव योग के छह तत्वों का समावेश इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर होगा। साथ ही ग्रह नक्षत्रों की अद्भुत जुगलबंदी भी होगी।

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उच्च वृष राशि के चंद्रमा के साथ देवगुरु बृहस्पति, शनि अपनी स्वयं की कुंभ राशि में स्वराशि, सूर्य स्वयं की सिंह राशि में स्वराशि, कर्क राशि में बुध, कन्या राशि में शुक्र एवं छाया ग्रह केतु तथा मीन राशि में छाया ग्रह राहु विद्यमान हैं।

श्रीकृष्ण के जन्म के समय के छह तत्वों का समावेश इस बार जन्माष्टमी पर्व को अति विशेष बनाएगा। ये तत्व हैं भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष, अर्द्धरात्रि काल, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि का चंद्रमा और चंद्र प्रधान सोमवार का दिन। ये सभी मुहूर्त की दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण हैं।

इन सभी छह तत्वों का समावेश बहुत कठिनाई से प्राप्त होता है। गौतमी तंत्र ग्रंथ के संदर्भ अनुसार, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी यदि रोहिणी नक्षत्र और सोमवार से संयुक्त हो जाए तो वह जयंती नाम से विख्यात होती है।

जन्म-जन्मांतरों के पुण्य संचय से कृष्ण पूजन का ऐसा दुर्लभ योग मिलता है। जिस मनुष्य को जयंती योग में उपवास का सौभाग्य मिल जाता है, उसके कोटि जन्मकृत पाप नष्ट हो जाते हैं आैर वह जन्म बंधन से मुक्त होकर परम दिव्य बैकुंठ भगवत धाम में निवास करता है।

पद्म पुराण के अनुसार, इस योग में जन्माष्टमी का व्रत करने वाले भक्त के पितृ अगर प्रेत योनि में हैं तो व्रत-पूजन के प्रभाव से वे भी प्रेत योनि से मुक्त हो जाते हैं।

धर्म ग्रंथों के अनुसार, आधी रात के समय रोहिणी नक्षत्र में यदि अष्टमी तिथि मिल जाए तो उसमें श्रीकृष्ण का पूजार्चन करने से तीन जन्मों के पाप धुल जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों में ऐसे दुर्लभ योग की विशेष महिमा बताई गई है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रती को भगवान के आगे संकल्प लेना चाहिए कि व्रतकर्ता श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्ति के लिए, समस्त रोग-शोक निवारण के लिए, संतान आदि कोई भी कामना, जो शेष हो, उसकी पूर्ति के लिए विधि-विधान से व्रत का पालन करेगा।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर मनोकामना पूर्ति एवं स्वास्थ्य सुख के लिए संकल्प लेकर व्रत धारण करना लाभदायक माना गया है। संध्या के समय अपनी-अपनी परंपरा अनुसार भगवान के लिए झूला बनाकर बालकृष्ण को उसमें झुलाया जाता है। आरती के बाद दही, माखन, पंजीरी और उसमें मिले सूखे मेवे, पंचामृत का भोग लगाकर उनका प्रसाद भक्तों में बांटा जाता है।

पंचामृत द्वारा भगवान का स्नान एवं पंचामृत का पान करने से प्रमुख पांच ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। दूध, दही, घी, शहद, शक्कर द्वारा निर्मित पंचामृत पूजन के पश्चात अमृततुल्य हो जाता है, जिसके सेवन से शरीर के अंदर मौजूद हानिकारक विषाणुओं का नाश होता है। शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।

अष्टमी की अर्द्धरात्रि में पंचामृत द्वारा भगवान का स्नान, लौकिक एवं पारलौकिक प्रभावों में वृद्धि करता है। रात्रि 12 बजे, खीरे में भगवान का जन्म कराकर जन्मोत्सव मनाना चाहिए। जहां तक संभव हो, संयम और नियमपूर्वक ही व्रत करना चाहिए। जन्माष्टमी को व्रत धारण कर गोदान करने से करोड़ों एकादशियों के व्रत के समान पुण्य प्राप्त होता है।

 

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