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Chhath Puja 2024: नहाय-खाय से छठ महापर्व की शुरुआत, जानें शुभ मुहूर्त और अर्घ्य का महत्व

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Chhath Puja 2024: छठ महापर्व का चार दिवसीय अनुष्ठान इस वर्ष शुभ नक्षत्रों और योगों में मंगलवार को नहाय-खाय से शुरू हो गया। यह पर्व भगवान सूर्य की उपासना के लिए समर्पित है, जिसमें भक्त नदी या विशेष कर गंगा में स्नान कर शुद्धता का संकल्प लेते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित कर पूजा की शुरुआत करते हैं।

नहाय-खाय का महत्व और प्रक्रिया

छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती गंगा नदी या किसी पवित्र जल में स्नान कर शरीर और आत्मा की शुद्धि का संकल्प लेते हैं। इसके बाद घर में अरवा चावल, चना दाल, कद्दू की सब्जी और आंवले की चटनी का प्रसाद बनाते हैं, जिसे सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के साथ व्रती चार दिवसीय कठिन व्रत का संकल्प लेते हैं।

इस वर्ष के विशेष नक्षत्र

ज्योतिषियों के अनुसार, इस वर्ष छठ महापर्व शुभ नक्षत्रों में संपन्न हो रहा है। मंगलवार सुबह 8:37 बजे जेष्ठा नक्षत्र समाप्त होकर मूल नक्षत्र शुरू होगा, जो बुधवार सुबह 10:13 बजे तक रहेगा। साथ ही मंगलवार सुबह 11:16 बजे से सुकर्मा योग भी आरंभ होगा, जो नहाय-खाय के लिए अत्यंत शुभ माना जा रहा है। इस शुभ योग में व्रती नहाय-खाय का प्रसाद ग्रहण कर चार दिवसीय व्रत की शुरुआत करेंगे।

 छठ पूजा में नहाय-खाय का विशेष महत्व

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ज्योतिषाचार्य पीके युग के अनुसार, नहाय-खाय छठ पूजा में बेहद महत्वपूर्ण है। यह शारीरिक और मानसिक शुद्धि का एक संकल्प होता है, जो भक्तों को चार दिनों तक संयम और अनुशासन के साथ व्रत करने के लिए मानसिक दृढ़ता प्रदान करता है। नहाय-खाय के समय प्रसाद में चना दाल, कद्दू आदि ग्रहण कर शरीर को व्रत के लिए तैयार किया जाता है और साथ ही गाय को भी प्रसाद का अंश निकाल कर साक्षी माना जाता है।

खरना: दूसरे दिन की पूजा

बुधवार को महापर्व के दूसरे दिन खरना मनाया जाएगा। यह दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में शुरू होगा, जो कि शुभ माना जाता है। व्रती गुड़ और ईख के रस से बनी खीर, रोटी, मूली आदि का प्रसाद भगवान सूर्य को अर्पित करेंगे और फिर स्वयं ग्रहण करेंगे। खरना के बाद से व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ करेंगे, जो छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

एक ही नक्षत्र में अर्घ्य का विशेष संयोग

इस वर्ष एक दुर्लभ संयोग के तहत व्रती अस्ताचलगामी (डूबते) और उदयाचलगामी (उगते) सूर्य को एक ही नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा में अर्घ्य देंगे। ज्योतिषाचार्य प्रेम सागर पांडे के अनुसार, यह संयोग अत्यंत शुभ और दुर्लभ है, जो व्रतियों के लिए कल्याणकारी माना जाता है। गुरुवार को डूबते सूर्य को सूर्यास्त से आधा-एक घंटा पहले अर्घ्य दिया जाएगा, जबकि शुक्रवार सुबह उगते सूर्य को लालिमा होने के बाद अर्घ्य अर्पित किया जाएगा।

छठ पूजा का यह पर्व भक्तों की अपार श्रद्धा, संयम और संकल्प का प्रतीक है। इस वर्ष के विशेष योगों और नक्षत्रों के संयोग से भक्तों को इस महापर्व के दौरान और भी अधिक आशीर्वाद और कल्याण की प्राप्ति होगी।

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