Sen your news articles to publish at [email protected]
Jharkhand Election 2024: झारखंड असेंबली चुनाव में झामुमो और कांग्रेस गठबंधन वाले इंडिया गठबंधन का मुकाबला भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो झामुमो-कांग्रेस गठबंधन रिपीट कर सकता है।
झारखंड में 81 विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें 28 सीट अनुसूचित जनजाति रिजर्व है और 9 सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है। एसटी रिजर्व 28 सीटों में अधिकतर पर इंडिया गठबंधन खासकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है। और एससी रिजर्व 9 सीटों में अधिकतर पर भाजपा का कब्जा है। अनारक्षित या ओपन 44 सीटों पर अधिकतर में भाजपा का और आजसू का मिलाजुला जनाधार ज्यादा है।
साल 2019 के चुनाव में ओपन या अनारक्षित सीटों के एक अच्छे हिस्से पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का कब्जा हो गया था। लेकिन उसका एक बड़ा कारण था – भारतीय जनता पार्टी और आजसू पार्टी के बीच का चुनावी तालमेल ना होना, दोनों का अलग अलग लड़ना।
झारखंड मुक्ति मोर्चा का बहुत कम अनारक्षित सीटों पर प्रभाव है। अनारक्षित सीटों पर कांग्रेस का अपना अकेला प्रभाव लगातार घटता गया है। अधिकतर बड़े शहरों खासकर रांची, जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद के शहरी विधानसभा क्षेत्रों में पहले कांग्रेस का वर्चस्व हुआ करता था, आजकल बीजेपी का वर्चस्व है।
आजसू की कुड़मी जनाधार में सबसे ज्यादा पैठ बन गयी थी। झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति (जेबीकेएसएस) के बनने और जयराम महतो का नेतृत्व उभरने के बाद आजसू का जनाधार और चमक घटा। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव की सफलता के बाद हाल के दिनों में जेबीकेएसएस में भी फूट पड़ी है।
जयराम महतो के पीछे सक्रिय शक्तियों के बारे में भ्रम बना है। और जयराम महतो के द्वारा टिकट बंटवारे में की गई मनमानी के कारण उनके प्रति असंतोष बढ़ा है। इससे अब जयराम महतो के जनाधार और चमक में भी कमी आई है। जयराम महतो की पार्टी बहुत बहुत सारी सीटों पर अकेले लड़ रही है। वह हर जगह कुछ कुछ हजार वोट जरूर काटेगी । इस कारण भाजपा और आजसू को मिलनेवाले वोटो में एक हद तक कटौती आएगी ही।
भाकपा माले लिबरेशन के जनाधार में भी मार्क्सवादी समन्वय समिति के विलय के बाद बढ़ोतरी हुई है। भाकपा माले इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। उसे इस बार दो सीटों पर जीत मिल सकती है।
जयराम महतो के उभार के अलावा 2019 के विधानसभा चुनाव के समय से कुछ और भी फर्क आए हैं। मेरा आकलन है कि हेमंत सोरेन की पहचान आदिवासी नेता के रूप में ज्यादा मजबूत हुई है। भाजपा द्वारा बार-बार सरकार गिराने की कोशिशों के बावजूद 5 साल तक शासन चला लेने के कारण भी उनकी क्षमता और उनकी छवि ज्यादा उभरी है। झारखंड के अधिकतर आदिवासी पूर्व मुख्यमंत्रियों के भाजपा में चले जाने और सब का निशाना हेमंत सोरेन पर होने के कारण भी उनका कद बढ़ा है।
लगातार घने होते ध्रुवीकरण में उनका आदिवासी जनाधार 2019 के मुकाबले बढ़ा है। एक और फैक्टर झारखंड मुक्ति मोर्चा या कहें इंडिया गठबंधन के पक्ष में आया है। वह है, आपात स्थिति में अचानक उभरी कल्पना सोरेन की बेहद प्रभावशाली और आकर्षक स्टार प्रचारक की छवि।
दोनों गठबंधन के लिए कुछ घाटेमंद हालत भी हैं। लगता है, हर चुनाव से ज्यादा दमदार बागी उम्मीदवार इस बार खड़े हैं।
गौर करें तो जो लोग पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोध और इंडिया गठबंधन के समर्थन में सक्रिय रहे, वैसे बहुत से सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता निर्दलीय या भारत आदिवासी पार्टी की ओर से खड़े हैं। कुछ संवेदनशील मुद्दों पर हेमंत सरकार की निष्क्रियता की कसक भी लोगों के मन में है। साथ ही हर बार से ज्यादा भाजपा की आदिवासी विरोधी, दलित विरोधी, झारखंड विरोधी चरित्र का अहसास भी है।
कुल मिलाकर कहें तो बड़े टक्कर का मुकाबला है। अगर इंडिया गठबंधन के चारों दल हर क्षेत्र में अपने जनाधार में आपसी समन्वय के साथ अंतिम समय तक सक्रिय रहे।
अगर हर बूथ पर उनका एजेंट रहा और बड़ी इवीएम हेराफेरी नहीं हुई तो मेरे आकलन के हिसाब से इंडिया गठबंधन को 44-45 सीट पाने का पोटेंशियल है, सामर्थ्य है।
सोशल एक्टिविस्ट और राजनीतिक सामाजिक विश्लेषण तथा कलम लेखक मंथन इंडिया गठबंधन की संभावनाओं का अनुमान लगा रहे हैं।
बता दें कि झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 का शेड्यूल घोषित किया गया है। चुनाव दो चरणों में होंगे। पहले चरण का मतदान 13 नवंबर को और दूसरे चरण का 20 नवंबर को होगा। इस चुनाव में झारखंड की 81 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा। इसके बाद, मतगणना 23 नवंबर को होगी और उसी दिन परिणाम घोषित किए जाएंगे।
इन चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस गठबंधन का मुकाबला भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से होने की उम्मीद है, जिसमें आजसू और जदयू भी शामिल हैं।