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Waqf Board: चीफ जस्टिस का मोदी सरकार से तीखा सवाल, क्या अब हिंदू संस्थाओं में मुस्लिमों की एंट्री होगी?

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सुप्रीम कोर्ट में गरमा-गरम बहस: वक्फ एक्ट पर तीखी नोकझोंक

Waqf Board: वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को जबरदस्त सुनवाई देखने को मिली। एक तरफ कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे दिग्गज वकील 70 से ज्यादा याचिकाओं की तरफ से मोर्चा संभाले हुए थे, तो दूसरी ओर केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता जवाब दे रहे थे.

लेकिन इस बहस के दौरान माहौल तब गर्मा गया, जब चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने सीधे केंद्र से सवाल दाग दिया—”क्या आप यह कह सकते हैं कि अब हिंदू धार्मिक संस्थाओं में मुस्लिमों को भी एंट्री मिल जाएगी?”

चीफ जस्टिस का सीधा हमला: साफ-साफ जवाब दीजिए, मिस्टर मेहता

जब बहस वक्फ बोर्ड की संरचना पर पहुंची, और यह सवाल उठा कि उसमें हिंदू क्यों नहीं हो सकते, तभी चीफ जस्टिस खन्ना ने केंद्र के वकील तुषार मेहता से बेहद स्पष्ट और तीखा सवाल किया:

“मिस्टर मेहता, क्या आप कह सकते हैं कि अब हिंदू संस्थाओं में मुस्लिमों की भी एंट्री होगी? वे भी उसमें हिस्सा ले पाएंगे? इसका जवाब हमें साफ-साफ चाहिए!”

यह सवाल सिर्फ एक औपचारिक पूछताछ नहीं थी, बल्कि यह दिखाता है कि देश की सर्वोच्च अदालत अब ‘बराबरी के अधिकार’ और धार्मिक संस्थाओं में पारदर्शिता को लेकर गंभीरता से सोच रही है।

कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों पर अधिकार क्यों? कोर्ट का सवाल

सिर्फ धार्मिक हिस्सेदारी ही नहीं, कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों को लेकर भी कड़े सवाल पूछे। चीफ जस्टिस ने यह उठाया कि आखिर किसी विवादित वक्फ संपत्ति पर फैसला अदालत क्यों नहीं सुनाएगी? कलेक्टर को यह पावर क्यों दी गई है?

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इस पर तुषार मेहता ने सफाई दी कि वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन हमेशा से जरूरी रहा है, और यह अधिकार कलेक्टर के पास पहले भी था। उन्होंने कहा कि नया कानून कोई नया बोझ नहीं डालता।

मुतवल्ली को जेल भेजने के कानून पर सिब्बल ने जताई आपत्ति

कपिल सिब्बल ने गहरी आपत्ति जताते हुए कहा कि नया वक्फ कानून मुतवल्लियों को सीधे जेल भेजने वाला है। जवाब में तुषार मेहता ने कहा कि “जेल की बात तब आती है जब रजिस्ट्रेशन ही न हो।” यानी प्रशासनिक लापरवाही की सजा तय है।

22 में से सिर्फ 10 मुस्लिम मेंबर क्यों? सिब्बल ने दागे सवाल

सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि अब वक्फ बोर्ड में 22 मेंबर्स में से सिर्फ 10 ही मुस्लिम होंगे। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 26 में दिए गए धार्मिक संस्थाओं के आत्मनिर्णय के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।

इस बात ने बहस को और उग्र बना दिया। और यहीं पर कोर्ट ने केंद्र से सीधा सवाल ठोंक दिया- “अगर वक्फ बोर्ड में हिंदू हो सकते हैं, तो क्या हिंदू संस्थाओं में मुस्लिमों की भी एंट्री होगी?”

सुप्रीम कोर्ट का संकेत: मामला हाईकोर्ट को सौंपा जाएगा

अंत में सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि इस पूरे मामले की सुनवाई के लिए एक उच्च न्यायालय को ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी। हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट इस पर अंतिम निर्णय लेगा।

इस पूरे मामले में सबसे तीखी बात यही रही कि चीफ जस्टिस ने केंद्र से धार्मिक समानता और पारदर्शिता पर दो टूक सवाल पूछे। अब सवाल ये है — क्या सरकार इसके जवाब में कोई ठोस नीति लाएगी या फिर टाल-मटोल करेगी?

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