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Shivdeep Lande: बिहार की राजनीति की जातीय पिच पर अब एक और खिलाड़ी अपना दमखम दिखाने को बेताब है. नाम है ‘सिंघम’ शिवदीप लांडे। अब बिहार असेंबली चुनाव से ठीक 6 महीने पहले एक और नया चेहरा बिहार की राजनीति में कूद पड़ा है. ये खिलाड़ी हैं पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे। जिन्हें ‘सिंघम’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपनी पार्टी ‘हिंद सेना’ की घोषणा कर दी है।
इससे पहले मार्च 2020 में एक नई राजनीतिक कहानी शुरू हुई थी. तब पुष्पम प्रिया चौधरी और द प्लूरल्स पार्टी की शुरुआत हुई थी.
मार्च 2020 की तारीख थी। बिहार के तमाम अख़बारों के पहले पन्ने पर एक बड़ा विज्ञापन छपा। उसमें लिखा था- “लव बिहार… हेट पॉलिटिक्स… जॉइन द मोस्ट प्रोग्रेसिव पार्टी।” इस विज्ञापन का मुख्य संदेश था कि बिहार बेहतर का हकदार है और बदलाव मुमकिन है।
पुष्पम प्रिया चौधरी और द प्लूरल्स पार्टी की शुरुआत
इस घोषणा के साथ बिहार के एक राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी ने चुनाव से सात महीने पहले अपनी नई पार्टी ‘द प्लूरल्स’ की शुरुआत की। अगले छह महीनों में उन्होंने बिहार के अलग-अलग इलाकों में जाकर युवाओं को अपनी पार्टी से जोड़ने की कोशिश की।
चुनावों में द प्लूरल्स ने 103 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। लेकिन परिणाम बेहद निराशाजनक रहे। पार्टी को कुल 1,22,997 वोट मिले, जो कि कुल मतों का सिर्फ 0.3% था।
अब मैदान में हैं ‘सिंघम’ शिवदीप लांडे
अब चुनाव से ठीक छह महीने पहले एक और नया चेहरा बिहार की राजनीति में उतर आया है— पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे, जिन्हें ‘सिंघम’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपनी पार्टी ‘हिंद सेना’ की घोषणा कर दी है।
लांडे की योजना है कि वे 243 में से सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे। हालांकि, उन्होंने अभी यह साफ नहीं किया है कि वे खुद किस सीट से चुनाव लड़ेंगे।
क्या शिवदीप लांडे को बिहार स्वीकार करेगा?
बड़ा सवाल यह है कि महाराष्ट्र के अकोला निवासी शिवदीप लांडे को बिहार की राजनीति में कितनी स्वीकार्यता मिलेगी? जातीय राजनीति के लिए प्रसिद्ध इस राज्य में क्या एक बाहरी मराठी उम्मीदवार अपनी जगह बना सकता है?
शुरुआत में ही टकराव
पार्टी की घोषणा करते हुए लांडे ने कहा—
“जो बिहार में बदलाव चाहता है, उसका पार्टी में स्वागत है। कई पार्टियों ने मुझे राज्यसभा, मंत्री और मुख्यमंत्री तक बनने का ऑफर दिया, लेकिन मैंने खुद अपनी पार्टी बनाना बेहतर समझा।”
इसके जवाब में बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार ने लिखा—
“इतिहास गवाह है कि बिहार देश पर शासन कर चुका है। यहां का मुख्यमंत्री बिहारी ही होगा। महाराष्ट्र की पार्टी बिहार में नहीं चलेगी।”
जाति आधारित राजनीति एक बड़ी चुनौती
द हिंदू के असिस्टेंट एडिटर अमरनाथ तिवारी कहते हैं—
“बिहार में जाति लोगों की रगों में बसी है। विकास की बात करने वालों को यहां कम ही सुना जाता है।”
यहां राजनीति जातीय समीकरणों पर आधारित है। लालू यादव को पहले ‘यादवों’ का नेता और फिर ‘बिहार’ का नेता माना जाता है। नीतीश कुमार को कोइरी-कुर्मी समाज का प्रतिनिधि माना जाता है।
क्या सिंघम इमेज काफी होगी?
शिवदीप लांडे की छवि एक ईमानदार, साहसी और सिंघम जैसे पुलिस अधिकारी की रही है। लेकिन उनके पास इससे आगे कोई राजनीतिक अनुभव या बड़ी जनसंपर्क सफलता नहीं है।
ऐसे प्रयोग बिहार में पहले भी असफल रहे हैं—
- – डीपी ओझा, जो डीजीपी रहते बाहुबलियों के खिलाफ कार्रवाई कर चुके थे, चुनाव में जमानत जब्त करवा बैठे।
- – गुप्तेश्वर पांडे, दो बार राजनीति में आए, लेकिन टिकट ही नहीं मिला।
क्या किसी पार्टी की रणनीति हैं लांडे?
एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है—
“चुनाव के पहले ऐसे चेहरे लाकर पार्टियां वोट काटने की रणनीति बनाती हैं। भले जीतें नहीं, लेकिन वोट तोड़ सकते हैं।”
पहली बार कोई आईपीएस बना अपनी पार्टी का प्रमुख
शिवदीप लांडे पहले ऐसे आईपीएस हैं जिन्होंने खुद की पार्टी बनाकर सियासत में कदम रखा है। इससे पहले जितने भी ब्यूरोक्रेट्स चुनाव लड़े, वे किसी न किसी पार्टी के टिकट पर लड़े।
ब्यूरोक्रेट्स की सियासत में सफलता और असफलता
असफल चेहरे
गुप्तेश्वर पांडे: टिकट पाने के लिए दो बार नौकरी छोड़ी, लेकिन कभी चुनाव नहीं लड़ पाए। अब कथा वाचक बन गए हैं।
डीपी ओझा: 2004 में निर्दलीय लड़े, 5,780 वोट ही मिले।
आशीष रंजन सिन्हा: कांग्रेस, राजद, भाजपा—सब आजमाया लेकिन सफल नहीं हो सके।
सफल चेहरे
आरसीपी सिंह: जातीय समीकरण के सहारे नीतीश कुमार के सबसे करीबी बने, मंत्री भी रहे।
यशवंत सिन्हा: 24 साल की नौकरी के बाद सफल राजनीतिज्ञ बने, वित्त मंत्री भी रहे।
मीरा कुमार: विदेश सेवा छोड़ी, सांसद बनीं और देश की पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष रहीं।
आरके सिंह: गृह सचिव से केंद्रीय मंत्री तक का सफर।
सुनील कुमार: डीजी से मंत्री बने, आज भी बिहार की राजनीति में सक्रिय।
शिवदीप लांडे की नई शुरुआत
शिवदीप लांडे ने सोशल मीडिया पर लिखा—
“वर्दी एक युवा मन का सपना होता है, लेकिन सतत सेवा के बाद चमड़ी ही वर्दी बन जाती है। अब बिहार की आबो-हवा में घुलने का वक्त आ गया है। कहानी का एक अध्याय खत्म, दूसरा शुरू।”