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मोदी राज के 11 साल: विकास की गिरावट और झूठ का ‘गुजराती’ हलवा
2014 में देश ने एक इंसान को चुना। आज वह व्यक्ति ही देश का चुनाव कर चुका है।
मोदी राज के 11 साल, 4000 से ज्यादा भाषण, कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं। यह सही में लोकतंत्र नहीं, यह लाइव एकतरफ़ा संवाद है। जहां सवाल पूछना गुनाह है, और चुप रहना राष्ट्रधर्म बन गया है।
मोदी राज के 11 साल
2014 से शुरू हुआ विकास का झूठा जुमला महामहिम।
“15 लाख आएंगे”, “दो करोड़ नौकरियां हर साल,” “अच्छे दिन बस आएंगे!” सभी कुछ खाली वादे, बस ट्रोल आर्मी और फेक न्यूज का जाल। राष्ट्रवाद के नकली रूप में, प्लास्टिक के अच्छे दिन।
नोटबंदी हुई तो गरीबों का पेट नहीं भरा, अमीरों के लॉकर भर गए। जीएसटी आया, तो व्यापारी रोने लगे, सरकार बोली “मोदी है तो सब सहो।”
प्रधानमंत्री या बस एक कैमरा का जादूगर?
देश जल रहा था, मोदीजी बर्फी खा रहे थे। किसान मरते रहे, और वे जापान घूमते रहे। छात्रों पर लाठियां चल रही थीं, और वह लंदन में “नमस्ते ट्रम्प” कर रहे थे।
कश्मीर का नक्शा बदल गया, पर युवाओं का भविष्य क्या? गाय के नाम पर लिंचिंग – चुप। पेपर लीक – चुप। रेल दुर्घटना – चुप। ED, CBI, IT – सब विपक्ष को निशाना बनाते हुए।
2020 में सरकार ने ताली बजाई, और तबाही फैलाने लगी।
कोरोना आया, तो विज्ञान नहीं, व्हॉट्सएप की पढ़ाई शुरू। थाली बजाओ, दीया जलाओ, और अगले दिन मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल चले। सरकार के पास ऑक्सीजन नहीं थी, आंकड़े नहीं थे। फिर भी, इवेंट का प्रबंधन पूरे जोर-शोर से।
मीडिया का हाल भी बदला, अब पत्रकार नहीं, हाउसटीम्स बन गए हैं। रात 9 बजे की बहस नहीं मुद्दों पर, वे केवल यह तय करते हैं कि कौन कितना भक्त या बिकाऊ है।
GDP गिरती है? – नजरअंदाज करो! मंहगाई बढ़ती है? – पाकिस्तान देखो! रोज़गार? – तुम्हारा देशभक्ति का समझौता चल रहा है।
2024 का आगमन, राम तो आ गए, रोटी नहीं।
मंदिर बन गया, वाह! लेकिन रोटी 20, गैस 1200 रुपये की। पढ़ाई महंगी, नौकरी कम होती जा रही है। कहिए क्यों? तो जवाब आता है – “देशद्रोही, माओवाद, और टुकड़े गैंग!”
अब विकास का मतलब सिर्फ दाढ़ी, फूलों की हवा और विरोध की सुपारी है।
“मोदी है तो मुमकिन है” – हां, सब संभव है।
- विपक्ष जेल में
- छात्र बेरोजगार
- किसान कर्ज़ में डूबे
- सरकारी संस्थान बर्बाद
- संविधान बस किताब में रह गया
और एक इंसान, जिसने गंगा में डुबकी लगाई और चंद्रयान का श्रेय भी ले लिया।
सारांश: क्या निकला?
ये 11 साल विकास के नहीं, बल्कि एक इंसान की फेसबुक टाइमलाइन के साल थे। देश चलता रहा, व्हाट्सऐप फॉरवर्ड पर, और लोकतंत्र धीरे-धीरे एक चेहरे का ब्रांड बन गया।
अब सवाल सिर्फ यह नहीं कि उसने क्या किया, सवाल यह है कि हम 11 साल तक क्यों सहते रहे?
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