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विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन: एक ऐतिहासिक विश्लेषण और वर्तमान चुनौती
कम्युनिज्म एक अन्तर्राष्ट्रीय विचार धारा है। इसके सकारात्मक तथा नकारात्मक उपलब्धि का असर पूरे विश्व में पड़ता है। रूस के समाजवादी क्रांति के प्रभाव से विश्व के क ई देशों में कम्युनिस्ट देशों में कम्युनिस्ट पार्टी का निर्माण हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत सन्घ की फासिस्ट विरोधी सन्घर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई। इससे पूरी दुनिया में कम्युनिज्म की प्रतिष्ठा बढी।
विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन
1963 में कम्युनिस्ट आंदोलन में विभाजन हुआ। दुनिया के दो सबसे बड़े कम्युनिस्ट देश रूस तथा चीन विचारधारा के आधार पर दो हिस्सों में बट गये। इसका असर यह हुआ कि पूरी दुनिया के कम्युनिस्ट पार्टियां दो हिस्सों में बट गयी। यही से कम्युनिस्ट आंदोलन में पराभव की शुरुआत हुई जिसकी झतिपूर्ती आज तक नहीं हो पाया है।
हालांकि कि इस विपरीत परिस्थिति में भी कुछ देशों मे कम्युनिस्ट आंदोलन सफल रहा तथा वे समाजवाद के निर्माण के पथ पर आगे बढ़ते रहे जैसे क्यूबा, वियतनाम, उत्तरी कोरिया, नेपाल आदि। लैटिन अमेरिका में भी बामपन्थ एक शक्ति के रूप में उभरा। लेकिन फिर भी पहले की स्थिति से काफी पीछे है।
विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन में टूट के कारणो की व्याख्या किये विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन की कमजोरी की व्याख्या हम नहीं कर सकते। उस समय रुस की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता खुर्शचेव ने एक सन्शोधनवादी रास्ता पेश किया जिसे स्वीकार करने का अर्थ था कम्युनिस्ट पार्टी को पूंजीपति पार्टी का दुमछल्ला बना देना।
ख्रुश्चेव को आदर्श मानने वाली कम्युनिस्ट पार्टियां आज इसी रास्ते पर है लेकिन विडम्बना यह रही कि विश्व का बड़ा कम्युनिस्ट हिस्सा रूस के ही साथ रहे। क्योंकि यह रास्ता उनको आरामदायक लगा।
पूंजीवादी व्यवस्था आज गम्भीर संकट में
कुछ लोग सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी को गलत मानते हुये भी वे विभाजन के लिये तैयार नहीं थे इसलिए वे सोवियत सन्घ की पार्टी के साथ रह गये। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी तत्कालिक रूप से सोवियत संघ की पार्टी के सन्शोधनवादी रास्ता का विरोध किया। लेकिन जल्द ही वह स्वयं बामपन्थी तथा दक्षिणपंथी भटकाव का शिकार हो गया।
विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन का कोई क्रांतिकारी केन्द्र नहीं रहा। आज कम्युनिस्टो के पास एक बड़ा सन्कट है। इसलिये आज हर देश के कम्युनिस्टों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। भारत दुनिया में सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश है। इसलिये यहां के कम्युनिस्टों की और ज्यादा जिम्मेदारी बढ़ जाती है। अभी विश्व तथा भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन के इतिहास के विश्लेषण कर एकमत पर पहुंचना काफी कठिन है।
इसलिये वर्तमान में आगे बढ़ने के लिये सहमति के बिन्दु पर एक साथ काम करना होगा तथा असहमति के बिन्दु पर आपसी बहस जारी रखना होगा। विश्व पूंजीवादी व्यवस्था आज गम्भीर संकट में है। कम्युनिज्म के लिये अनुकूल वातावरण है। साहस समझदारी से काम करना है।
सिया शरण शर्मा, सीपीआई एमएल, क्लास स्ट्रगल केन्द्रीय कमेटी के सदस्य हैं। नोट-: यह उनके निजी विचार हैं, पाठकों से अनुरोध है कि इसे यान्त्रिक रूप में न देखा जाये।
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