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ADG कुंदन कृष्णा का गैरजिम्मेदारा बयान; खेत खाली हुए और हत्याएं बढ़ गई ! ADG कुंदन कृष्णा अपराध और बेरोजगारी के बता रहे संबंध
लेखक – चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी
पुलिस मुख्यालय से अपराध के संदर्भ में कुछ रोचक आंकड़े और ध्यान दिए जाने लायक विश्लेषण आया है। पुलिस मुख्यालय ने समाजशास्त्रीय महत्व का आंकड़ा पेश कर दिया है। बिहार पुलिस मुख्यालय पटेल भवन से प्रेस कांफ्रेंस करके ADG कुंदन कृष्णा ने एक तरह से कहा है कि बेरोजगारी की वजह से अपराध और हत्याएं बढ़ रही है।
ADG कुंदन कृष्णा का गैरजिम्मेदारा बयान
होली के बाद से खेत खाली हो जाते हैं और अपराध बढ़ जाते हैं। अपराध और हत्याएं जुलाई महीने तक हर साल बढ़ती है। मई महीने से जुलाई महीने तक भूमि विवाद के कारण अधिक हत्याएं होती हैं।
जो आंकड़े कुंदन कृष्णा ने प्रेस के सामने रखें शर्मनाक हैं। पिछले साल May महीने में 254 जून महीने में 292 और जुलाई महीने में 279 हत्या हुई थी. किसी एक राज्य में इतनी अधिक हत्याओं की वजह से बहुत सहज ही कहा जाएगा कि बिहार राज्य हत्याओं और अपराध का कैपिटल बन गया है. राहुल गांधी ने बिहार को क्राइम कैपिटल कहा भी है।
कुंदन कृष्णा ने पुलिस मुख्यालय ke आंकड़ों को जारी करके कहा कि 2020 में हत्याओं का महावर औसत 262 था . 2021 में 233, 2022 में 244 और 2023 में 239 था। एकदम ताजा आंकड़ा 2024 का है जहां हत्याओं का महावर औसत 232 है. होली से लेकर मानसून तक अधिक हत्याएं होती हैं. इस सच को पुलिस मुख्यालय ने स्वीकार किया है। आंकड़ों का जो अर्थ होता है उसे पर मत मत अंतर होते हैं।
प्रति महीने 225 से 300 हत्याकांड
कुंदन कृष्णा ने एक निरर्थक दवा रखने की कोशिश की है कि पिछले 25 वर्षों में राज्य की आबादी जहां दोगुनी हो गई है, शहरीकरण बढ़ गया है, अपराध की चुनौतियां बढ़ गई है लेकिन हत्या का आंकड़ा घटकर आधा रह गया है।
जहां आज राज्य में प्रति महीने 225 से 300 हत्याकांड रिकॉर्ड हो रहे हैं। वहां पुलिस का अपनी पीठ थपथपाने का कोई मतलब नहीं है। इन 25 वर्षों में 20 वर्ष नीतीश शासन काल था। जिसे सुशासन के रूप में प्रचारित करने की कोशिश की गई।
पुलिस मुख्यालय को जाहिर करना चाहिए कि इन 20 वर्षों में पुलिस की संख्या में कितने गुना वृद्धि हुई है और पुलिस पर हो रहे खर्च वास्तविक अर्थों में कितना बड़ा है।
वायरल हुए वीडियो पर विवाद
कुंदन कृष्णा ने वायरल हुए वीडियो पर विवाद के बाद यह कहा कि उन्होंने किसानों के बारे में ऐसी कोई बात नहीं कही है। संयुक्त किसान मोर्चा का इस रूप में विषय को विश्लेषित करना भ्रामक भी है। इस वजह से भी की ki संयुक्त किसान मोर्चा खेती की गतिहीनता और गांव की गरीबी और बेरोजगारी से इनकार नहीं करता रहा है।
यह जरूरी है की हत्याकांड को केवल कानून और व्यवस्था का मसाला न माना जाए और केवल पुलिस की सक्रियता और निष्क्रियता से इसे न जोड़ा जाए।
अपराध जब बढ़ रहा है और बहुत बढ़ रहा है तब इसके सामाजिक आर्थिक परिणाम का विश्लेषण बहुत जरूरी द हो जाता है. पुलिस मुख्यालय के आंकड़े किसी ऐसे जिम्मेदाराना सर्वेक्षण के लिए रिसोर्स के रूप में इस्तेमाल हो सकते हैं।
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