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Vice President पद का सियासी खेल: Nitish, Shashi Tharoor और बीजेपी का मास्टर प्लान

post of vice president master plan of nitish kumar shashi tharoor and bjp
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राजनीति में पदों का इस्तेमाल अक्सर सत्ता को मजबूत करने या फिर बढ़ाने के लिए किया जाता है। भारत में उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद भी राजनीतिक खेल का हिस्सा बन गए हैं। जगदीप धनखड़ ने अचानक अपना इस्तीफा देकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका यह कदम क्यों आया, और इससे क्या संकेत मिलते हैं, यही इस लेख का मुख्य विषय है। हम जानेंगे कि किस तरह ये घटनाएँ सत्ता के खेल को जटिल बना रही हैं और आगे का रास्ता क्या हो सकता है।

Vice President पद का सियासी खेल

2022 में उपराष्ट्रपति बनकर चर्चा में आए जगदीप धनखड़ ने अचानक अपना पद छोड़ दिया। इस कदम के पीछे के कारण कई तरह से देखे जा सकते हैं। कुछ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करने और विपक्ष के नोटिस स्वीकार करने के बाद वे सरकार के लिए मुश्किल में आ गए थे। विपक्ष का तो यहां तक कहना है कि बीजेपी ने उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर किया है। उनका यह कदम कहीं भी अब तक के सामान्य इस्तीफों से अलग है।

सियासी खेल के संकेत

धनखड़ के इस फैसले से पता चलता है कि यह सिर्फ स्वास्थ्य या व्यक्तिगत कारणों का मामला नहीं है। उनके पिछले वक्तव्य, जैसे कोर्ट की आलोचना और महाभियोग नोटिस स्वीकारना, साफ संकेत देते हैं कि हलचल चल रही है। बीजेपी की ओर से इस तरह के कदम से सरकार की साख पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह पूरी साजिश का हिस्सा हो सकता है, ताकि सत्ता की दिशा बदली जाए।

विश्वसनीयता और विपक्ष का आरोप

विपक्ष ने आरोप लगाया है कि यह सब बीजेपी का खेल है। उनका कहना है कि सरकार संवैधानिक पदों का दुरुपयोग कर रही है। संसदीय इतिहास में ऐसे नेता पद छोड़ते समय कई बार विवाद में फंसे हैं। यह सब लोकतंत्र के लिए कितना सही है? सवाल यह है कि क्या हम ऐसी राजनीति से उबर सकते हैं या फिर यह सियासी खेल का हिस्सा है?

नीतीश कुमार का नाम और इसका संकेत

नीतीश कुमार का नाम इस समय सबसे ज्यादा चर्चा में है। बिहार में अभी भी उनके समर्थक हैं, और राजनीतिक हलकों में उन्हें उपराष्ट्रपति बनाने की खबरें उड़ी हैं। बिहार की 2025 चुनाव के पहले बीजेपी का उद्देश्य है कि नीतीश को दिल्ली भेजकर अपनी पकड़ मजबूत करे। पर क्या आप जानते हैं कि यह खेल सिर्फ बिहार की राजनीति से जुड़ा हुआ नहीं है? यह सारा खेल राष्ट्रीय राजनीति का भी हिस्सा है।

जेपी नड्डा का संदर्भ

बिहार के नेता और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी इस रेस में हैं। कुछ रिपोर्ट्स का कहना है कि नड्डा भाजपा का भविष्य बन सकते हैं। अब सवाल यह है कि क्या उन्होंने धनखड़ का अपमान किया या फिर उनके पास इस पद के लिए कोई बड़ा रणनीतिक प्लान है? बीजेपी ने अपने नेताओं को बहुत ही सूझ-बूझ से खेल खेलना सिखाया है।

हरिवंश नारायण सिंह का विकल्प

हरिवंश नारायण सिंह आज़ भी राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन हैं। विपक्ष का मानना है कि उन्हें भी उपराष्ट्रपति का पद मिलने की संभावना है। उनका अनुभव और योग्यता दोनों उन्हें इस दौड़ में मजबूत विकल्प बनाते हैं। लेकिन क्या इससे पहले कि कोई भी फैसला हो, राजनीति का कोई न कोई ट्विस्ट देखने को मिलेगा?

शशि थरूर का उभरता नाम

एक नाम जो इस समय चर्चा में है, वह है कांग्रेस के शशि थरूर का। राहुल शंकर नामक पत्रकार ने सोशल मीडिया में उनके संभावित नाम का जिक्र किया है। शशि थरूर भारतीय राजनीति में अपने ज्ञान और वैश्विक छवि के लिए जाने जाते हैं। हाल की घटनाओं में उनका बीजेपी से संपर्क और समर्थन संकेतक बन सकता है। यदि बीजेपी उन्हें उपराष्ट्रपति बनाती है, तो कांग्रेस के लिए बड़ा झटका हो सकता है। क्या यह बीजेपी का बड़ा सियासी खेल है?

अन्य संभावित नाम और समीकरण

सांसदों और नेताओं का एक बड़ा समूह अब इस जंग में शामिल हो रहा है। कुछ और नाम भी उभर सकते हैं, जैसे कि यदि बीजेपी चाहती है, तो जदयू के नेताओं की भी चर्चा हो सकती है। महत्वपूर्ण यह है कि कौन-कौन से मानदंड इस पद के लिए मायने रखते हैं।

बीजेपी का तख्तापलट नीति

बीजेपी का इतिहास रहा है कि वे विपक्ष को तोड़ने, नेताओं को पाला बदलने और अपने खेल को कभी नहीं छोड़ते। धनखड़ का इस्तीफा भी इसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। सरकार संवैधानिक पदों का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है। इस तरह का खेल लोकतंत्र के लिए खतरा है। इसकी वजह से हमारे संविधान की गरिमा भी प्रभावित हो रही है।

विपक्ष की रणनीति और प्रतिक्रिया

विपक्ष भी किसी से पीछे नहीं है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि यह सब बीजेपी का षड्यंत्र है। विपक्ष का कहना है कि ये सब संविधान की मर्यादा को तोड़ने का प्रयास है। संसद में इस तरह का खेल लोकतंत्र के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।

संवैधानिक व्यवस्था और लोकतंत्र का खतरा

सत्ता की भूख में हम अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रहे हैं। पद का सियासी खेल बनना हमें सावधान करता है कि हमारा लोकतंत्र कितना fragile है। क्या हम ऐसे खेलों को सहन कर सकते हैं या फिर मजबूत कदम उठाने होंगे?

निष्कर्ष

यहाँ मुख्य बात यह है कि उपराष्ट्रपति का पद हमारे लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है। जब इसे राजनीति के खेल में शामिल किया जाता है, तो यह देश के लिए चिंता का विषय बन जाता है। अब सवाल यह उठता है कि कौन सही विकल्प हो सकता है। नीतीश कुमार, शशि थरूर, या फिर अन्य नेता — हर एक का अपना महत्व है। लेकिन जो बात साफ है, वह है बीजेपी इस खेल का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। हमें चाहिए कि हम अपने लोकतंत्र की मर्यादा बनाए रखें और सत्ता के खेल को समझें।

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