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Indian Politics में सत्ता का विकृत रूप: Democracy की चुनौतियां और समाधान

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Indian Politics में सत्ता का विकृत रूप

भारत की राजनीति (Indian Politics) में आज जिस तरह की स्थिति बन गई है, वह बहुत चिंताजनक है। नेता, संस्थान, और सत्ता के बीच जटिल गठजोड़ मच रहा है, जिनसे लोकतंत्र का मूल ढांचा खतरे में पड़ गया है। संविधान और नागरिक अधिकारों का ह्रास हो रहा है, और सरकारें तानाशाही की राह पर चल पड़ी हैं। इस लेख में हम इस विकृत प्रणाली का विश्लेषण करेंगे और यह भी बताएंगे कि नागरिक और विपक्ष कैसे इसकी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।

चुनाव आयोग का भूमिका और सीमाएँ

भारतीय चुनाव आयोग का काम निष्पक्षता से चुनाव कराना है। लेकिन आज उसकी स्वतंत्रता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकार अपनी मर्जी से फैसले ले रही है और चुनाव आयोग पर दबाव डाल रही है। यह परिस्थिति लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है क्योंकि चुनाव का सम्मान और विश्वास खत्म हो रहा है। चुनाव आयोग का काम निष्पक्षता निभाना है, लेकिन कैसे जब उसकी स्वतंत्रता सीमित हो जाती है?

नागरिकता और राष्ट्रीय हित का नियंत्रण

तस्वीर में साफ दिख रहा है कि नागरिकता जांचने वाली एजेंसियां अब सत्ता के दुरुपयोग का हथियार बन चुकी हैं। नागरिक अधिकार, जिनकी रक्षा संविधान की पहली जिम्मेदारी है, धीरे-धीरे कमزور हो रहे हैं। नागरिकता का दुरुपयोग कर सरकार लोगों को डराने-धमकाने का खेल खेल रही है।

केंद्रीय सरकार का क्षेत्रीय हस्तक्षेप

जम्मू-कश्मीर में नरेंद्र मोदी की सरकार का हस्तक्षेप इसकी बड़ी मिसाल है। वहां स्टेटहुड की लड़ाई लड़ रहे लोगों को केंद्र सरकार द्वारा बार-बार धमकाया जाता है। इसकी वजह से सूबे की स्वायत्तता खतरे में है। केंद्र सरकार अपने राजनीतिक हितों के लिए क्षेत्रीय स्वायत्तता को कमजोर कर रही है।

भ्रष्टाचार और सरकारी संरक्षण

भ्रष्टाचार आज नेताओं और अधिकारियों के बीच आम बात है। लाइसेंस, जमीन, और सरकार की साझेदारी में बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी हो रही है। सरकार और नेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, और जनता इन सब से बेखबर है।

संविधान और संवैधानिक संस्थानों का दुरुपयोग

संवैधानिक संस्थाएं जैसे संसद, सुप्रीम कोर्ट, और उपराष्ट्रपति का पद कई बार राजनीति के लिए खतरे में पड़ चुका है। उदाहरण के तौर पर, उपराष्ट्रपति का सत्र में ही इस्तीफा देना या स्पीकर का सरकारी दबाव में आ जाना दिखाता है कि संस्थान सरकार की कठपुतली बन गए हैं। अदालतों में भी राजनीतिक दबाव नज़र आ रहा है।

लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का ह्रास

विपक्ष की आवाज दबाने के लिए सरकार हर संभव कोशिश कर रही है। विपक्ष का संघर्ष और सरकार का दमनात्मक रवैया देश में लोकतंत्र का अंत दिखाता है। विपक्ष और जनता के बीच की खाई बहुत गहरी हो गई है, और इस संघर्ष का परिणाम सरकार के पक्ष में हो रहा है।

गोदी मीडिया का प्रभाव और नैतिक पतन

मीडिया का आज जो रूप है, उसमें बहुत कुछ स्वार्थी हो गया है। चैनल और अखबार जनता को गुमराह कर रहे हैं। झूठी खबरें फैलाकर जनता का ध्यान भटकाया जा रहा है। इस तरह का मीडिया लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है।

चुनाव व्यवस्था और निष्पक्षता की बहस

चुनाव का नैतिक वजूद खतरे में है। चुनाव आयोग पर विश्वास कम होता जा रहा है। वोटर रजिस्ट्रेशन और मतदान अधिकार का प्रयोग अब आसान नहीं रहा। कई बार वोटर के नाम काटे जाते हैं, और सवाल उठते हैं कि इन सब का आधार क्या है?

नागरिक जागरूकता और संघर्ष का महत्व

सभी नागरिकों को जागरूक होना चाहिए। अपने अधिकारों के प्रति समझदारी से लड़ना भी जरूरी है। यह समय है जब हम सबको अपनी जड़ें मजबूत करनी हैं और सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठानी होगी।

भारत की विदेश नीति का वर्तमान संकट

भारत की विदेश नीति का हाल चिंता पैदा करता है। देश का सम्मान गिर रहा है, और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का व्यवहार शर्मनाक है। उसकी छवि कमजोर हो रही है, और देश के नागरिक भी इससे नाराज हैं।

भारत का विश्वगुरु की छवि और परेशानियां

भारत का आत्ममुग्ध होकर अपने को “विष्व गुरु” कहने का नारा अब खोखला हो गया है। बाहर से आए हालात दिखाते हैं कि देश का सम्मान गिर रहा है। भारत का आत्मबल और देशभक्ति अब सवालों के घेरे में है।

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