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Modi Government की फेलियर रणनीतिक: विपक्ष की शंका का असली पोस्टमार्टम
विपक्ष सरकार की हर चाल पर शक कर रहा है – कभी सही, कभी ओवरड्रामैटिक, लेकिन सवाल तो है। नेशनल सिक्योरिटी, फॉरेन पॉलिसी, संसद के भीतर बहस – हर जगह मोदी सरकार (Modi Government) को घेरने की कोशिश। ये लेख भी उन्हीं आरोपों की पड़ताल कर रहा है, और हां, कुछ बातें तो वाकई सोचने लायक हैं।
कोई भी सिक्योरिटी ऑपरेशन हो या आतंकवाद – रोधी ऐक्शन, टाइमिंग ऐसी कि शक होना लाजमी है। मतलब, जैसे ही संसद में बहस शुरू होती है, वैसे ही कहीं न कहीं धमाका – कभी ऑपरेशन सिंदूर, कभी कोई मुठभेड़। ओपोज़िशन को तो लगता है कि ये सब प्री-प्लान्ड है, जनता का ध्यान भटकाने के लिए।
Modi Government की फेलियर रणनीतिक
अब ऑपरेशन सिंदूर पर ही देख लिया जाए। संसद में डिबेट चालू, और उसी वक्त खबर आती है कि जम्मू-कश्मीर में एनकाउंटर हो गया, तीन आतंकी ढेर। ओपोज़िशन को तो साफ दिखता हैन- ये कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता। शक की सुई सीधी सरकार की तरफ घूमती है।
फिर ये जो “फर्जी मुठभेड़” वाला मामला है, वो पुराना है, लेकिन हर बार नया रूप लेकर सामने आ जाता है। आतंकियों की पहचान कैसे हुई? एनआईए (NIA) ने कैसे पता कर लिया कि ये बॉर्डर क्रॉस करके आए थे या लोकल थे? खुद चिदंबरम जैसे लोग पूछ रहे हैं कि सबूत है भी या बस कहानी है?
मोदी सरकार का चीन से नाम लेने में पसीना छूटता है
और सरकार का स्टाइल देखिए – कभी किसी को भगोड़ा घोषित कर देते हैं, फिर कहानी बदल जाती है। विपक्ष कहता है, भाई, ये सब झूठे स्केच हैं, बाद में खुद ही मना कर देना – ऐसे में ऑफिशियल बयान पर कौन भरोसा करे?
अब विदेश नीति की बात करें तो, सबका फेवरेट टॉपिक – चीन। मोदी सरकार का चीन से नाम लेने में पसीना छूटता है, जबकि पाकिस्तान खुलेआम चीन से सेटिंग कर रहा है। बॉर्डर पर टेंशन, इकोनॉमिक डिप्लोमेसी – सबकुछ लटका हुआ है। ऊपर से प्रधानमंत्री और चीनी नेताओं की गुपचुप मीटिंग्स चलती रहती हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
ट्रंप फैक्टर भी गजब है। ट्रंप बोले कि उन्होंने भारत-पाक वॉर रोकवाया, और सरकार बस चुप्पी साधे बैठी रही। विपक्ष तो पूछ ही रहा है – भाई, भाग क्यों रहे हो बातचीत से? डर किसका है?
पाकिस्तान को इंटरनेशनल लेवल पर सपोर्ट मिल जाता है – कभी चीन, कभी अमेरिका, रूस, तुर्की, सब लाइन में खड़े हैं। इधर भारत की डिप्लोमैसी सुस्त पड़ी है, और सरकार पुराने वादों को गिनवा रही है।
अब पीओके (PoK) का किस्सा सुनो। इलेक्शन आते ही – “हम पीओके वापस लाएंगे!” ये डायलॉग बार-बार सुनने को मिल जाता है, खासकर राजनाथ सिंह से लेकर मोदी तक। लेकिन असली में जब संसद में पूछा जाता है तो कहा जाता है, “हमें किसी की जमीन नहीं चाहिए।” विपक्ष बोलता है – यही है असली पोल खोल।
तो कुल मिलाकर, सरकार के दावे और असलियत में फर्क है, और विपक्ष इसी गैप को बार-बार दिखाने की कोशिश करता है। सच में, जनता भी सोच रही है कि यह सब सिर्फ चुनावी जुमले हैं या वाकई कुछ हकीकत है?
पीओके पर सरकार की चुप्पी
ये कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार विपक्ष ने सीधे सवाल दाग दिए। अगर वाकई पीओके को वापस लेना कभी एजेंडा में था ही नहीं, तो फिर जनता के साथ ये आंख-मिचौली क्यों? मौके तो आए, फिर भी सरकार ने कन्नी काट ली – किसी को समझ नहीं आया, शायद खुद सरकार को भी नहीं।
संसद के अंदर का माहौल
संसद का माहौल काफी गरमागर्म रहा। विपक्ष ने सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। असली मसला तो ये है कि सरकार डिबेट से बचती क्यों है? हर बार कोई टालमटोल, कोई घुमा-फिरा के जवाब। राहुल गांधी समेत कई नेताओं ने सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की। गौरव गोगोई और दीपेंद्र हुड्डा – दोनों ने सीधे सवाल दागे, मंत्री जवाब में पसीना-पसीना।
और सबसे बड़ा सवाल – प्रधानमंत्री कहां हैं? विपक्ष गला फाड़-फाड़ के पूछता रहा, लेकिन साहब नदारद। किसी ने कहा – डर गए हैं क्या? सच कहा जाए तो ये कोई छोटी बात नहीं, पीएम की गैरहाजिरी खुद में एक बड़ा मैसेज है – जवाबदेही से कतराना।
अब बात आती है सत्तारूढ़ पार्टी और उसके साथियों की। लल्लन सिंह के बयान को लेकर भी खूब बवाल मचा – कथित तौर पर उन्होंने मसूद अजहर को ‘सर’ कह दिया। विपक्ष को तो बैठे-बिठाए मुद्दा मिल गया—बोला, देखो इनका असली चेहरा।
चुनावों की बात करें तो विपक्ष को अब चुनावी प्रक्रिया पर भी भरोसा नहीं रहा। चुनाव आयोग पर सवाल, SIR विवाद की चर्चा – ये तो बस झलक है, असली चिंता तो ये है कि कहीं खेल तो नहीं हो रहा?
न्यायपालिका भी निशाने पर है – कहते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने आधार-आइडेंटिटी लिंकिंग जैसे मसलों पर ढिलाई बरती। लोगों के अधिकारों का क्या होगा, ये कोई नहीं सोच रहा?
और सबसे डरावनी चीज़ – लंबे वक्त तक सत्ता में जमे रहने का खतरा। विपक्ष को डर है कि कमजोर संस्थाएं और फिक्सिंग जैसे आरोप, सरकार को हमेशा के लिए कुर्सी पर बैठा देंगे। अमित शाह के बयान ने तो आग में घी डाल दिया।
आखिर में,
विपक्ष ने सरकार को आईना दिखाया – कहा, तुम हर मोर्चे पर फेल हो रहे हो – चाहे नेशनल सिक्योरिटी हो, फॉरेन पॉलिसी या लोकतांत्रिक जवाबदेही। फर्जी एनकाउंटर, विदेश नीति में तुष्टिकरण, आधे-अधूरे वादे – सब कुछ खुलकर सामने आ गया। सरकार की कहानी और जमीनी हकीकत में लंबा फासला है।
संसद में विपक्ष ने जोश के साथ बहस की, खासकर राहुल गांधी ने सरकार को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। सरकार को डिबेट में भाग लेना चाहिए, और अच्छे जवाब देने चाहिए। वरना ये जो आत्मरक्षा वाला रवैया है, उससे जनता का भरोसा डगमगा जाएगा। और भाई, लोकतंत्र में भरोसा सबसे कीमती चीज़ है – वो गया तो सब गया।