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एक महानायक का जाना!
श्रीनिवास, वरिष्ठ पत्रकार
निधन के कोई 24 घंटे के बाद और भी शिद्दत से महसूस हो रहा है कि हमने अपने सामने एक वास्तविक महानायक को दखा, उसके अवसान के गवाह बने. अपने समाज की बेहतरी के लिए समर्पित, इतना जुझारू, इतना लड़ाकू…अपनी तमाम कमियों के बावजूद शिबू सोरेन सही मायनों में एक महानायक थे!
किसी आग्रह और राजनीति से नहीं, हमें केंद्र सरकार से अनुरोध करना चाहिए कि शिबू सोरेन के जीवन संघर्ष, सफलताओं व विफलताओं को एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तक में शामिल किया जाये. आने वाली पीढ़ियों को उनके बारे में जानना ही चाहिए.
एक महानायक का जाना: शशिनाथ झा की हत्या फर्जी
स्थानीय अखबारों ने उनके पूरे जीवन और व्यक्तित्व को उचित ही पूरा सम्मान देकर उनसे जुड़ी सामग्री का प्रकाशन किया है. उनको जानने वालों का उनके निधन पर रिएक्शन और संस्मरण भी. इसमें एक बात गौरतलब है कि उनके बहुत करीब रहे, मगर बाद में साथ छोड़ गये- या कहें, उनकी पीठ में छुरा भोंकने और उनके बारे में उल्टा सीधा बोलते रहे लोग- नाम लेना जरूरी नहीं- कुछ ज्यादा ही मर्माहत दिख रहे हैं! मौजूदा राजनीति का शायद यही चरित्र है!
आज सुबह विनोद जी ने बातचीत के क्रम में दावे के साथ कहा कि शशिनाथ झा की हत्या का जो आरोप शिबू सोरेन पर लगा था, वह फर्जी था. इसके पीछे एक साज़िश थी. मुझे भी कुछ संदेह था. वैसे अदालत उनको निर्दोष करार दे चुकी है.
प्रसंगवश, हरिवंश जी ने 1987 में साप्ताहिक ‘रविवार’ में छपे शिबू सोरेन के लंबे साक्षात्कार का एक अंश फेसबुक पर लगाया है. इसके लिए उनको धन्यवाद देते हुए उनसे भी अनुरोध किया है कि वे केंद्र सरकार के उचित फोरम तक यह बात पहुंचाएं कि शिबू सोरेन की जीवनी को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये.
एक बार फिर झारखंड की सबसे बड़ी शख्सीयत दिशोम गुरु शिबू सोरेन को हार्दिक आदरांजलि!
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