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NDA में बेचैनी: सहयोगी दल तलाश रहे नया ठिकाना? विश्लेषण

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संसद के बाहर 300 सांसदों की नारेबाजी, अखिलेश यादव की छलांग, महिला सांसदों का बेहोश होना – देश में एक माहौल बना था। यह एक प्रदर्शन था, चुनाव आयोग पर आरोप लगाए जा रहे थे। इस प्रदर्शन के बाद कहा जा रहा है कि विपक्ष तो एकजुट है, पर एनडीए (NDA) में बेचैनी शुरू हो गई है। आखिर एनडीए में बेचैनी क्यों है? आज हम इसी पर बात करेंगे। कौन-कौन से दल और नेता बेचैन हैं, इस पर भी चर्चा करेंगे।

भाजपा का 2024 का चुनावी प्रदर्शन और सहयोगियों पर निर्भरता

2024 के चुनाव में नरेंद्र मोदी जब दोबारा जीते, तब भारतीय जनता पार्टी सिर्फ 240 सीटों पर ही जीत पाई। इसका मतलब है कि बहुमत के आंकड़े को बीजेपी अकेले नहीं छू पाई। इसके लिए उन्हें कई सहयोगियों की ज़रूरत पड़ी। नायडू, नीतीश, चिराग, शिंदे जैसे कई सहयोगी उनके साथ आए। उन्हीं के दम पर यह सरकार चल रही है।

सरकार गठन में सहयोगियों की महत्वपूर्ण भूमिका

इस एक साल में, 2024 से 2025 आ गया। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चाणक्य अमित शाह और बीजेपी के बड़े थिंक टैंक्स भी इस 240 के नंबर को आगे नहीं बढ़ा पाए। इस बीच देश के अंदर बहुत कुछ हुआ। अब सहयोगी दल सोच रहे हैं। वे अपने भविष्य के बारे में सोच रहे हैं।

एनडीए के प्रमुख सहयोगियों में असंतोष: चिराग पासवान की महत्वकांक्षा

इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में हैं चिराग पासवान, जिनके पास पांच सांसद हैं। चिराग पासवान भारतीय जनता पार्टी से नाराज़ हैं। वह नीतीश से भी नाराज़ बताए जा रहे हैं। आखिर उनके मन में क्या चल रहा है, यह तो चिराग ही बता सकते हैं। लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं, वे कुछ ऐसा ही इशारा करते हैं। आपको याद होगा, चिराग पासवान की पार्टी, रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी, को भारतीय जनता पार्टी ने ही तोड़ा था। चिराग अलग-थलग पड़ गए थे। फिर चिराग पासवान लौटे और उन्हें मंत्री बना दिया गया। लेकिन चिराग की ख्वाहिश मंत्री बनने से ज़्यादा बिहार का मुख्यमंत्री बनने की है। यह बात हर कोई समझ रहा है।

चिराग भले ही यह बात अपने मुंह से न बोलें, पर हर कोई जानता है। वह कहते हैं कि वे दिल्ली की राजनीति नहीं, बिहार की राजनीति करना चाहते हैं। हाल ही में चिराग की पार्टी में अचानक 139 नेताओं ने इस्तीफा दे दिया। इससे हड़कंप मच गया। इससे पहले भी 38 नेताओं ने इस्तीफा दिया था। चिराग पासवान ने जब अकेले चुनाव लड़ने की बात कही और नीतीश कुमार की सरकार में कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए, तो कई सवाल चिराग पर भी खड़े हुए। कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने चिराग को डांटा भी है। उन्हें कहा गया कि वे नीतीश कुमार के बारे में ऐसा क्यों बोल रहे हैं। लेकिन चिराग पासवान एनडीए में बड़े अनमने लग रहे हैं। उन्हें एनडीए में मन नहीं लग रहा है। यह उनकी मजबूरी भी हो सकती है।

हाल ही में सीतामढ़ी में अमित शाह का कार्यक्रम था। नीतीश कुमार भी वहां मौजूद थे। लेकिन चिराग पासवान उस कार्यक्रम में नहीं गए। उन्होंने अमित शाह के कार्यक्रम से दूरी बना ली। क्या यह दूरी उन्होंने संदेश देने के लिए बनाई, या उनके मन में कुछ और चल रहा है?

जयंत चौधरी की असहजता

चिराग पासवान की बात करते हुए, जयंत चौधरी की बात करना भी ज़रूरी है। उनके पास सिर्फ दो सांसद हैं। जयंत चौधरी उत्तर प्रदेश से आते हैं। जयंत चौधरी भी आजकल असहज महसूस कर रहे हैं। इसकी कई वजहें हैं। सत्यपाल मलिक के निधन के बाद भारतीय जनता पार्टी का उनके साथ जो व्यवहार हुआ, वह एक वजह है। धनखड़ साहब के इस्तीफे के बाद जाट समाज में नाराजगी है। जाट समाज भारतीय जनता पार्टी से खफा है। जाहिर है, जब जाट समाज बीजेपी से नाराज है, तो जयंत से भी नाराज होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि जयंत भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल हैं। जयंत पुराने दोस्त हैं राहुल गांधी और अखिलेश यादव के। उन्होंने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन में रहकर चुनाव भी लड़ा है।

लेकिन उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठबंधन क्यों छोड़ा? वे एनडीए में क्यों आए? यह भी आप जानते हैं कि चौधरी चरण सिंह साहब को भारत रत्न मिला। लेकिन इस वक्त जाट समाज बीजेपी से नाराज है। जयंत इस नाराजगी को महसूस कर रहे हैं। दूसरी बात, उत्तर प्रदेश से एक टिप्पणी जयंत चौधरी के बारे में आई है। बीजेपी नेता चौधरी लक्ष्मी नारायण ने जयंत को “पनौती” कह दिया। यह कहने के बाद जाट समाज और नाराज़ हो गया। तो क्या मंत्री जी की इस टिप्पणी की वजह से जयंत चौधरी का रिश्ता भारतीय जनता पार्टी से टूटेगा? यह देखना बाकी है।

एकनाथ शिंदे: मुख्यमंत्री की कुर्सी का अधूरा वादा

एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में एनडीए के एक मजबूत स्तंभ हैं। वह डिप्टी सीएम भी हैं। लेकिन जब से उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनी गई है, छह महीने बीत गए हैं। एकनाथ शिंदे शांत नहीं बैठे हैं। वे कभी दिल्ली आ जाते हैं, कभी अमित शाह से मिलते हैं, कभी मोदी जी से मिलते हैं। उनकी एक ही मांग है – उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी वापस दी जाए। उनके कई लोगों को भी अलग-अलग जगहों से हटा दिया गया है। उनके और फडणवीस के बीच नाराजगी अक्सर सामने आ जाती है। आपको यह भी याद होगा कि उन्होंने किस तरह डिप्टी सीएम की शपथ ली थी।

इन दिनों वे भी काफी असहज हैं। जब उद्धव ठाकरे और फडणवीस की मुलाकात हुई, जब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक हुए, और एक रैली हुई, तब शिंदे और नाराज़ हुए।

अनुप्रिया पटेल: बढ़ता असंतोष और एनडीए से नाखुश

जब सहयोगियों की बात चल रही है, तो अनुप्रिया पटेल भी हैं। अनुप्रिया पटेल भी एनडीए में बहुत खुश नहीं हैं। उनके पति ने तो प्रेस कॉन्फ्रेंस और मंच से ऐलान करके धागे खोल दिए। उन्होंने उत्तर प्रदेश में बड़े गंभीर आरोप लगाए। कहा जा रहा है कि अनुप्रिया के पति आशीष पटेल ने दिल्ली में अखिलेश यादव से मुलाकात की है। यह दावा सोर्सेस के हवाले से किया जा रहा है।

एनडीए के दल किसी बड़े ऑफर के इंतज़ार में

अब दो ऐसे सहयोगियों की बात करते हैं जो बड़े अहम किरदार हैं – नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू। इन दोनों की बात करना बहुत ज़रूरी है। मैं यह बात आपको तसल्ली से इसलिए बता रहा हूँ, ताकि आपको लगे कि एनडीए में वाकई बेचैनी है। एनडीए के दल किसी बड़े ऑफर का इंतज़ार कर रहे हैं। फिर वे अपना अगला फैसला लेंगे।

पिछले एक साल में अगर कोई सहयोगी नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुलकर खड़ा हुआ है, जिसने कई फैसलों पर असहमति जताई है, तो वह चंद्रबाबू नायडू हैं। याद कीजिए, चाहे वह तीन-भाषा का मसला हो, बिहार में SIR की बात हो, ट्रंप के टैरिफ की बात हो, या डीलिमिटेशन की बात हो। इन सभी मसलों पर नायडू के सुर मोदी जी के सुर से बिल्कुल अलग थे। नायडू साहब के बारे में यह भी कहा जाता है कि वे बस इंडिया गठबंधन से बड़े ऑफर का इंतज़ार कर रहे हैं। वे कभी भी उधर जा सकते हैं। उनकी नाराज़गी भी अब साफ दिख रही है।

नीतीश कुमार की सियासी पारी मुश्किल में

और आखिर में, मैं आपसे बात करना चाहता हूँ नीतीश कुमार की। बिहार में भारतीय जनता पार्टी और एनडीए, जेडीयू – यह पूरा गठबंधन है। बिहार के विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन जीते या हारे, दोनों ही सूरतों में नीतीश कुमार की सियासी पारी मुश्किल में है। अगर बीजेपी-एनडीए यह गठबंधन हारेगा, तो नीतीश कुमार वैसे ही पैदल हो जाएंगे। अगर जीतेगा, तो भारतीय जनता पार्टी नीतीश को मुख्यमंत्री किसी कीमत पर नहीं बनाने वाली।

अगर वे मुख्यमंत्री नहीं बनते और नीतीश चुनाव हारते हैं, तो दोनों ही सूरतों में नीतीश की पार्टी का टूटना तय है। ऐसा इसलिए क्योंकि SIR जैसे मुद्दों पर उनकी पार्टी पहले ही बंट चुकी है। उनके सांसद गिरधारी यादव ने खुलेआम SIR का विरोध किया। उनके विधायक संजीव कुमार ने भी विरोध किया।

NDA में बेचैनी: विपक्ष एकजुट

तो दोस्तों, यह जो पूरी बड़ी तस्वीर सामने आती है, उससे पता चलता है कि एनडीए में बेचैनी है। एनडीए के दलों में बेचैनी और घबराहट है। दूसरी तरफ, विपक्ष एकजुट है। विपक्ष पूरी ताकत से एक साथ खड़ा है। राहुल, अखिलेश, हेमंत, तेजस्वी, ममता – ये सब साथ खड़े हैं।

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