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Press conference में Gyanesh Kumar सवालों से बचते नज़र आए

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भारत के चुनाव आयोग ने हाल ही में मतदाता सूची में विसंगतियों के आरोपों पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। यह राहुल गांधी के दावों के बाद हुआ। पूरे देश ने इस आयोजन का दस दिन तक इंतज़ार किया। राहुल गांधी ने कर्नाटक की एक सीट पर एक लाख से ज़्यादा वोटों से जुड़े घोटाले का आरोप लगाया था। चुनाव आयोग, ज्ञानेश कुमार(Gyanesh Kumar) के ज़रिए आखिरकार मीडिया के सामने (Press conference) आया। कई सवाल पूछे गए। हालाँकि, कुछ प्रमुख मुद्दे अस्पष्ट रहे।

Press conference में Gyanesh Kumar सवालों से बचते नज़र आए

Gyanesh Kumar Press conference में कुछ कठिन सवालों से बचते नज़र आए। विवाद का एक बड़ा मुद्दा यह है कि चुनाव आयोग कथित तौर पर भाजपा को सर्चेबल डेटा क्यों देता है, लेकिन कांग्रेस को नहीं। राहुल गांधी ने बार-बार इस सर्चेबल डेटा की माँग की है। फिर भी, कुमार ने कहा कि 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी सूचियाँ देने से मतदाता की निजता का उल्लंघन होगा। इससे एक सवाल उठता है: मतदाता की निजता केवल कांग्रेस के लिए ही चिंता का विषय क्यों है, भाजपा के लिए नहीं?

यह लेख चुनाव आयोग की हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस की पड़ताल करता है। हम दिए गए बयानों और मतदाता सूची की सटीकता और पारदर्शिता को लेकर अभी भी बनी हुई चिंताओं पर गौर करेंगे। हम मुख्य आरोपों की पड़ताल करेंगे। हम चुनाव आयोग के जवाबों पर भी चर्चा करेंगे। अंत में, हम उन अनसुलझे मुद्दों पर प्रकाश डालेंगे जिनके कारण जनता और राजनीतिक दल अधिक स्पष्टता चाहते हैं।

चुनाव आयोग का बचाव: आरोपों का सीधा जवाब

ज्ञानेश कुमार द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए भारतीय चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में व्यापक हेरफेर का सार्वजनिक रूप से खंडन किया है। इस आर्टिकल में आयोग के आधिकारिक बयानों का विवरण दिया गया है। इसमें अनुचित व्यवहार के दावों का खंडन करने के लिए प्रस्तुत तर्कों को भी शामिल किया गया है।

धांधली और अनियमितताओं के दावों का खंडन

चुनाव आयोग ने दृढ़ता से कहा कि विपक्ष के आरोप पूरी तरह से झूठे हैं। उनका कहना है कि मतदाता सूची में हेरफेर के दावों में सच्चाई नहीं है। आयोग का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता के बारे में सभी को आश्वस्त करना था।

  • चुनाव आयोग का कहना है कि आरोप निराधार हैं।
  • उन्होंने किसी भी कथित विसंगतियों के लिए स्पष्टीकरण दिया।
  • उन्होंने चुनावों की निष्पक्षता में विश्वास व्यक्त किया।

प्रेस कॉन्फ्रेंस (Press conference) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा “मशीन-रिडेबल डाटा” पर केंद्रित था। राजनीतिक दलों, खासकर कांग्रेस के साथ इस डेटा को साझा करने पर चुनाव आयोग का रुख स्पष्ट किया गया। हालाँकि, यह स्पष्टीकरण अलग-अलग दलों के लिए अलग-अलग व्यवहार का संकेत देता प्रतीत होता है।

  • चुनाव आयोग ने मशीन-रिडेबल डाटा मतदाता सूचियों को साझा करने पर अपनी स्थिति स्पष्ट की।
  • उन्होंने कुछ डेटा प्रारूपों को साझा न करने के लिए कानूनी और गोपनीयता संबंधी कारणों का हवाला दिया।
  • यह अन्य दलों को कथित तौर पर प्रदान किए गए डेटा से बिल्कुल अलग है।

चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद भी, राहुल गांधी सहित विपक्षी दल कथित मतदाता सूची संबंधी समस्याओं की गहन समीक्षा की माँग कर रहे हैं।

“फर्जी मतदाता” और डुप्लिकेट प्रविष्टियों का मुद्दा

विपक्षी नेताओं ने फर्जी मतदाताओं के बारे में विशेष चिंताएँ जताई हैं। उन्होंने कई निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूचियों में डुप्लिकेट प्रविष्टियों और अन्य त्रुटियों की ओर भी इशारा किया। ये दावे मतदाता सूची की सटीकता से जुड़ी एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करते हैं।

  • विपक्षी नेताओं ने कथित डुप्लिकेट प्रविष्टियों के उदाहरण दिए।
  • उन्होंने रायबरेली और वायनाड जैसे विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों का उल्लेख किया।
  • उनका मानना है कि बड़े पैमाने पर हेराफेरी हो रही है।
  • मशीन-रिडेबल डाटा डेटा मतदाता सूची और वीडियो फुटेज की माँग

विपक्षी दल मशीन-रिडेबल डाटा मतदाता सूची की माँग कर रहे हैं। वे वीडियो फुटेज तक पहुँच भी चाहते हैं। उनका मानना है कि इस जानकारी से मतदाता सूचियों का सत्यापन आसान हो जाएगा।

  • मशीन-रिडेबल डाटा डेटा तेज़ी से विश्लेषण में मदद करता है।
  • मतदान केंद्रों की गतिविधियों की जाँच के लिए वीडियो फुटेज महत्वपूर्ण है।
  • इन माँगों का उद्देश्य पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार लाना है।

चुनाव आयोग के तर्क पर एक बड़ी असहमति केंद्रित है। उनका दावा है कि कुछ मतदाता डेटा, विशेष रूप से मशीन-रिडेबल डाटा प्रारूप में, साझा करने से मतदाता की गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है।

मतदाता गोपनीयता पर चुनाव आयोग का रुख

चुनाव आयोग ने बताया कि उन्होंने मतदाता गोपनीयता का हवाला क्यों दिया। उन्होंने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की पिछली टिप्पणियों का उल्लेख किया। उन्होंने तर्क दिया कि मतदाता विवरण सार्वजनिक करना गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है।

  • चुनाव आयोग ने मतदाता गोपनीयता के बारे में विशिष्ट चिंताएँ व्यक्त कीं।
  • उन्होंने मतदाता गोपनीयता कानूनों की एक खास तरह से व्याख्या की।
  • उनका मानना है कि सार्वजनिक मतदाता विवरण उल्लंघन हो सकता है।

विपक्ष ने इन तर्कों का खंडन किया है। वे सवाल करते हैं कि गोपनीयता संबंधी चिंताएँ कुछ पार्टियों या डेटा प्रारूपों को दूसरों की तुलना में ज़्यादा क्यों प्रभावित करती हैं। यह एक संभावित दोहरे मापदंड का संकेत देता है।

उन्होंने डेटा साझाकरण के विभिन्न तरीकों पर सवाल उठाए।
उन्होंने तर्क दिया कि एक पार्टी के साथ डेटा साझा करने से दूसरे पक्ष पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।
शपथपत्र और प्रति-सत्यापन की आवश्यकता

चुनाव आयोग ने प्रस्ताव दिया था कि विपक्षी नेता हलफनामे जमा करें। ये हलफनामे उनके दावों का समर्थन करेंगे। इन हलफनामों को जमा करने के लिए एक समय सीमा तय की गई थी।

वीडियो फुटेज की भूमिका

वीडियो फुटेज रिटेंशन पर चुनाव आयोग की नीति भी जांच के दायरे में है। वे 45 दिनों के बाद फुटेज को हटाने की योजना बना रहे हैं। यह नीति जाँच में बाधा डालने की चिंताएँ पैदा करती है।

  • चुनाव आयोग की नीति में वीडियो फुटेज को जल्दी से हटाना शामिल है।
  • यह नीति जाँच को कठिन बना सकती है।
  • जनता को सत्यापन के लिए जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है।

प्रेस कॉन्फ्रेंस के बावजूद, कई महत्वपूर्ण प्रश्न अनुत्तरित रह गए हैं। इससे जनता और राजनीतिक पर्यवेक्षकों में संदेह बना हुआ है।

आरोपों के ठोस प्रमाण का अभाव

चुनाव आयोग ने कहा कि ठोस सबूतों के बिना विपक्ष के दावे निराधार हैं। हालाँकि, विपक्ष का तर्क है कि उन्हें ऐसे प्रमाण देने के लिए आवश्यक आँकड़े नहीं दिए गए हैं। इससे दोषारोपण का एक चक्र शुरू होता है।

  • चुनाव आयोग ने विपक्ष को प्रमाण देने की चुनौती दी।
  • विपक्ष का दावा है कि चुनाव आयोग महत्वपूर्ण साक्ष्य छिपा रहा है।

एक बुनियादी चुनौती यह है कि जनता या पार्टियाँ स्वतंत्र रूप से मतदाता सूची की सटीकता की पुष्टि कैसे कर सकती हैं। यह विशेष रूप से सीमित डेटा पहुँच के साथ सच है। बड़े डेटासेट का मैन्युअल सत्यापन मुश्किल है।

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