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हरक सिंह रावत का आरोप: अमित शाह ने फोन पर दी धमकी!

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भारत का राजनीतिक क्षेत्र बल प्रयोग की चर्चाओं से गुलज़ार है। एक हालिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक राजनेता को व्यक्तिगत रूप से धमकी दी है। इसने एक बड़ी बहस छेड़ दी है। यह सत्तारूढ़ दल के भीतर संभावित आंतरिक सत्ता संघर्ष की ओर इशारा करता है। इसका असर आगामी चुनावों पर भी पड़ सकता है।

इस लेख में उत्तराखंड के वरिष्ठ नेता हरक सिंह रावत के बयान पर गौर किया जाएगा। उन्होंने अमित शाह के एक फ़ोन कॉल के बारे में बात की थी। हम इस बात की पड़ताल करेंगे कि उन्होंने भाजपा क्यों छोड़ी। हम कथित ख़तरे का भी पता लगाएँगे। अंत में, हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि भाजपा में “गुजरात लॉबी” और उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए इसका क्या मतलब है।

“गुजरात लॉबी” का उदय और उसकी राजनीतिक रणनीति

भारतीय राजनीति में एक शक्तिशाली ताकत “गुजरात लॉबी” के नाम से जानी जाती है। कई लोग मानते हैं कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह इस समूह का नेतृत्व करते हैं। उनकी राजनीतिक शैली उनसे पहले के नेताओं से अलग मानी जाती है। उन्हें पूरी तरह से नियंत्रण में माना जाता है।

मुख्य रणनीति के रूप में दबाव की राजनीति

कहा जाता है कि यह समूह “दबाव की राजनीति” का इस्तेमाल करता है। इसका मतलब है कि वे बल या धमकियों के ज़रिए दूसरों को नियंत्रित करना चाहते हैं। रिपोर्ट बताती है कि यह रणनीति उनकी अपनी पार्टी के सदस्यों पर भी इस्तेमाल की जाती है। यह सत्ता बनाए रखने और वफ़ादारी सुनिश्चित करने का एक तरीका है।

हरक सिंह रावत का अमित शाह पर आरोप

हरक सिंह रावत उत्तराखंड की राजनीति में एक जाना-माना चेहरा हैं। 2016 में उन्होंने वहाँ कांग्रेस सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गए। हालाँकि, भाजपा ने उन्हें 2022 में पार्टी से निकाल दिया। ऐसा तब हुआ जब उन्होंने “गुजरात लॉबी” के तौर-तरीकों के खिलाफ आवाज़ उठाई।

कथित धमकी: एक समझौता ख़राब हो गया

रावत का दावा है कि अमित शाह ने उन्हें 2022 में बुलाया था। यह भाजपा से निकाले जाने से पहले की बात है। शाह ने कथित तौर पर उन्हें तीन विधानसभा सीटों का प्रस्ताव दिया था। सौदा यह था कि अगर वह भाजपा में बने रहे तो उन्हें इन सीटों के टिकट मिलेंगे। लेकिन, एक चेतावनी भी थी। अगर वह नहीं माने, तो उन्हें और उनके परिवार को “गंभीर परिणाम” भुगतने होंगे।

हरक सिंह रावत भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल

रावत ने शाह के प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया। फिर वे भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। उनकी बेटी और दामाद भी कांग्रेस में शामिल हो गए। वे दोनों चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। रावत ने कहा कि भाजपा में रहते हुए उन्होंने कई मुद्दों पर आवाज़ उठाई। उन्हें लगा कि पार्टी ने उनकी बात नहीं सुनी। उन्हें शाह का प्रस्ताव अस्वीकार्य लगा।

उपराष्ट्रपति चुनाव और संभावित क्रॉस-वोटिंग

सितंबर में उपराष्ट्रपति पद का चुनाव होने वाला है। इस मुकाबले में हर एक वोट मायने रखता है। इसलिए हरक सिंह जैसे नेताओं की कोई भी राजनीतिक चाल बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।

उत्तराखंड की राजनीति में हरक सिंह का प्रभाव

हरक सिंह रावत कोई साधारण राजनेता नहीं हैं। राजनीतिक घटनाक्रम को प्रभावित करने का उनका एक लंबा इतिहास रहा है। उन्होंने उत्तराखंड में एक सरकार गिराने में मदद करके इसका प्रमाण दिया था। अब, कांग्रेस में होने के नाते, वे वहाँ वोटों को प्रभावित कर सकते हैं।

दलबदल का डर: भाजपा की कमजोरी

भाजपा कथित तौर पर चिंतित है। उन्हें डर है कि हरक सिंह उत्तराखंड के कुछ विधायकों को उनके उम्मीदवार के खिलाफ वोट देने के लिए मना सकते हैं। इससे भाजपा के लिए चुनाव जीतना और भी मुश्किल हो सकता है। रिपोर्ट बताती है कि भाजपा इस बात को लेकर काफी बेचैन है।

हरक सिंह से आगे दबाव की रणनीति

हरक सिंह को कथित धमकी कोई अनोखी बात नहीं हो सकती। यह किसी बड़ी योजना का हिस्सा भी हो सकता है। इस रणनीति का इस्तेमाल “गुजरात लॉबी” पार्टी सदस्यों को नियंत्रण में रखने के लिए कर सकती है। यह पार्टी के भीतर असंतोष को नियंत्रित करने का एक तरीका है।

प्रवर्तन एजेंसियों का उपयोग: ईडी और सीबीआई

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगर नेता लॉबी की बात नहीं मानते, तो ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। हरक सिंह पर खुद ईडी ने छापेमारी की थी। हालाँकि, उनका नाम अंतिम आरोपपत्र में नहीं था। इससे पता चलता है कि ये छापे उन्हें डराने के लिए मारे गए थे।

अन्य नेताओं के साथ मिसाल: जितिन प्रसाद और त्रिवेंद्र सिंह रावत

अन्य नेताओं को भी ऐसी ही परिस्थितियों का सामना करना पड़ा होगा। जितिन प्रसाद कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए। बाद में उन्हें भी हाशिये पर महसूस हुआ। उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ भी समस्याएँ थीं। बताया जाता है कि हरक सिंह के भी उनसे मतभेद थे। ये उदाहरण “गुजरात लॉबी” के व्यवहार के एक पैटर्न की ओर इशारा करते हैं।

निष्कर्ष: गुजरात लॉबी के प्रभुत्व का पतन

“गुजरात लॉबी” की ज़बरदस्ती की रणनीति उल्टी पड़ती दिख रही है। हरक सिंह जैसे नेता अब खुलकर बोल रहे हैं। इससे भविष्य के चुनावों में भाजपा को नुकसान हो सकता है। 2027 के राज्य चुनाव और 2029 के राष्ट्रीय चुनाव जैसे बड़े मुक़ाबले प्रभावित हो सकते हैं।

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