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PM Modi का मणिपुर दौरा: रील या रियल?
पिछले कुछ सालों में महामानव पूरे देश और दुनिया का चक्कर लगा चुके थे। घूमने के लिए कोई देश बचा नहीं था। 2024 के चुनाव के टाइम पूरे भारत का भ्रमण भी हो चुका था।
अब घूमने के लिए बस दो ही जगह बची थी। एक अंतरिक्ष और दूसरा मणिपुर। तो महामानव ने अंतरिक्ष में जाने की जिद पकड़ रखी थी।
लेकिन अंतरिक्ष में जाने के लिए नासा जाना पड़ता है और नासा कहां पड़ता है? अमेरिका में और वहां साहब अभी जा नहीं सकते। वहां तो पुराने दोस्त रहते हैं, पुराने यार रहते हैं और सबसे बड़ी दिक्कत कि नासा वाले तो एंट्री पर ही डिग्री मांग लेते हैं।
मतलब कोई ऑप्शन नहीं बचाता सिवाय मणिपुर जाने के।
PM Modi का मणिपुर दौरा
इस तरह हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फाइनली मणिपुर जाने का प्लान बन रहा है। वही मणिपुर जिसका नाम सुनते ही भारत की तस्वीर में हरियाली, खूबसूरती और शांति की कभी झलक आती थी।
लेकिन पिछले दो सालों से वही मणिपुर अब बारूद और खून की गंध में दबा हुआ है। डूबा हुआ है।
मीडिया दृश्य और स्वागत
वहीं लगभग ढाई साल के करीब दो-चार सौ लोग ही तो मारे गए हैं। 100 200 महिलाओं के साथ ही तो बलात्कार हुआ होगा। तो ज्यादा टाइम थोड़ी ना हुआ।
अब आप देखिएगा 13 सितंबर को जब मोदी जी मणिपुर पहुंचेंगे। वहां एक दो थिएटर के कलाकार खड़े होकर मोदी जी के स्वागत में आंसू बहा रहे होंगे। अद्भुत नाजार होगा।
लोग कह रहे होंगे मोदी जी आप यहां आ गए हमें बचाने के लिए। इस दौरान आर्मी और पुलिस का हुजूम होगा। मणिपुर के लोगों को लंबे समय के बाद देखने को मिलेगा कि सुरक्षा व्यवस्था क्या चीज होती है।
उनको तो सालों हो गए देखते हुए। सोचिए यह मणिपुर है। ऐसे हालत में पहली बार उनको सिक्योरिटी दिखेगी क्योंकि वहां तो गवर्नर के घर पे भी गोलियां चलने लगी थी।
अगर स्थिति थोड़ी सी भी बिगड़ी तो मोदी वहां पर थोड़ा सा रो देंगे। बढ़िया सी रील बन जाएगी। कहेंगे कि आज मेरा दिल बहुत दुखी है। इन सबके लिए नेहरू को जिम्मेदार भी ठहरा देंगे।
3 घंटे का दौरा
इस दौरे की असली खासियत यह है कि प्रधानमंत्री पूरे राज्य में केवल 3 घंटे रुकेंगे। बहुत है। पूरे 29 महीने तैयार करवाने के बाद जनता को मिलेगा 3 घंटे का भाषण पैकेज।
और गोदी मीडिया की भूमिका उस दिन देखने वाली होगी। इस बीच कुछ लोग हैं जो अभी तक पूछ रहे हैं कि क्या इतने बड़े संकट से गुजर चुके राज्य के लिए 3 घंटे का दौरा मजाक नहीं है।
कांग्रेस तो कह रही है कि मणिपुर वासियों का अपमान है। शिवसेना कह रही है ये कोई दौरा नहीं बल्कि पर्यटन है।
पृष्ठभूमि: हिंसा 2023
चलिये थोड़ा मणिपुर के बारे में बात करते हैं। 3 मई 2023 को वह तारीख थी जिस दिन मणिपुर में हिंसा की आग भड़कती थी। एक तरफ मैतेई समुदाय था। दूसरी तरफ कुकी और अन्य आदिवासी थे।
वजह थी मैतीई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग। कुकी और अन्य आदिवासी मानने को तैयार नहीं थे। फिर देखते-देखते आग लगी। हिंसा फैली, गांव जले, चर्च जलाए गए।
260 से ज्यादा लोग मारे गए। हजारों परिवार बेघर हो गए। मणिपुर की हालत इतनी खराब हुई कि मुख्यमंत्री एन वीरेंद्र सिंह को फरवरी 2025 में इस्तीफा देना पड़ा।
अफसोस कि वो इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहे। उन्हें बर्खास्त ही किया गया। इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगा। सुप्रीम कोर्ट तक ने कहा कि मणिपुर का संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो गया।
चुप्पी पर सवाल
और मोदी उस वक्त कहां थे? वह तो मानो चुपचाप से मौन व्रत साधे बैठे रहे। सच कहा जाए तो प्रधानमंत्री की चुप्पी अब उनकी नई पहचान बन चुकी है।
गुजरात दंगों के दौरान भी यही चुप्पी, किसान आंदोलन के दौरान भी यही चुप्पी, वोट चोरी पर भी यह चुप्पी और मणिपुर में भी यही चुप्पी। मानो देश का प्रधानमंत्री नही कोई मूक कलाकार हमारे सामने बैठा हो।
विपक्ष की प्रतिक्रियाएं
मोदी के मणिपुर ट्रिप की सूचना बाहर आती विपक्ष अब उनके ऊपर हमला कर रहा है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मोदी के 13 सितंबर के दौरे पर तंज कसते हुए कहा कि प्रधानमंत्री 29 महीने बाद मणिपुर जाएंगे लेकिन सिर्फ 3 घंटे के लिए यह क्या है? जनता का अपमान।
जनता ने इतने लंबे और दर्दनाक महीनों तक उनका इंतजार किया और अब मिल रहा है 3 घंटे का औपचारिक दौरा। जयराम रमेश ने आगे लिखा कि यह असल में मोदी की बेरुखी और असंवेदनशीलता का प्रमाण है। वो मणिपुर में नहीं बल्कि अपने कैमरों और पीआर टीम के बीच जाएंगे।
और कांग्रेस अकेले नहीं है जो यह सवाल उठा रही है। शिवसेना उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने भी सीधा वार करते हुए कहा कि जब मणिपुर जल रहा था तब जाने की हिम्मत नहीं थी। अब जब प्रधानमंत्री पद से विदाई का समय नजदीक है तो पर्यटन करने जा रहे हैं।
वह पर्यटन सुनकर पूरा दृश्य सामने आ जाता है। जैसे कोई नेता सचमुच 3 घंटे की पिकनिक के लिए जा रहा हो। हेलीकॉप्टर से उतरेंगे थोड़ी देर भाषण देंगे फिर सेल्फी खिंचाएंगे और फिर वापस दिल्ली आ जाएंगे।
संवेदना बनाम पीआर
संवेदना बनाम पीआर
लेकिन बात सिर्फ दौरे की नहीं है। बात है उस संवेदना की जिसकी जनता अपने प्रधानमंत्री से उम्मीद करती है। जब मणिपुर की महिलाएं निर्वस्त्र करके सड़कों पर घुमाई जा रही थी तब उनकी चीखें पूरे देश ने सुनी लेकिन हमारे प्रधानमंत्री के कानों तक वो आवाज उस वक्त नहीं पहुंची।
संसद के सत्र में भी विपक्ष बार-बार मांग करता रहा कि प्रधानमंत्री मणिपुर पर बयान दें। वहां जाएं लेकिन मोदी ने हर बार चुप्पी साधे रहा।
जबकि राहुल गांधी इस दौरान तीन बार मणिपुर हो आए। पीड़ितों से मिले राहत शिविरों में गए। लोगों का दर्द सुना। भले राहुल गांधी को बीजेपी पप्पू कहे लेकिन इस बार जनता ने साफ देखा कि असल में किसके पास संवेदना है और कौन सिर्फ सत्ता का मोह पाल कर बैठा है।
खुद गृह मंत्री अमित शाह वहां कई बार दौरे कर चुके और संसद में खड़े हो कर राष्ट्रपति शासन को 6 महीने बढ़ाने की बात भी कर चुके हैं। सुरक्षा बलों ने लूटे गए हजारों हथियारों में से करीब 3000 हथियार बरामद भी कर लिए।
हालात कुछ हद तक सामान्य हुए लेकिन तनाव अब भी हर गली हर गांव की हवा में तैर रहा है और ऐसे माहौल में अब प्रधानमंत्री 3 घंटे के लिए जा रहे हैं।
3 घंटे में क्या संभव
सोचिए 3 घंटे में वो क्या कर लेंगे? मणिपुर की आग बुझा देंगे। 260 जाने वापस ला देंगे। बेघर हुए हजारों लोगों को छत दे देंगे या फिर बस वही करेंगे जो हर जगह करते रहते भाषण, आंकड़े और कैमरों के सामने भावुक होकर दिखाने की एक्टिंग।
जरा सोचिए कि 29 महीनों से जलते घर के सामने चौकीदार खड़ा है। लेकिन वो घर में झांकने की बजाय सिर्फ दीवारों को पेंट करवा रहा है। और जब सब कुछ राख में बदल चुका है तब आकर कह रहा है कि लो अब मैं 3 घंटे के लिए तुम्हारे घर आया हूं।
क्या ऐसे चौकीदार पर भरोसा किया जा सकता है? शिवसेना का कहना सही है कि यह कोई दौरा नहीं बल्कि एक पॉलिटिकल पिकनिक है। बीजेपी की पूरी कोशिश होगी कि इन 3 घंटों में मोदी कुछ तस्वीरें खिंचाएं।
कुछ सहानभूति शांतिपूर्ण मणिपुर जैसी लाइनें बोले और फिर उन्हीं चुनावी रैली में उसका फायदा उठाएं। लेकिन सवाल यह है कि क्या जनता इस बार इन चालों को समझ नहीं रही है?
राजनीति का क्रूर चेहरा
दोस्तों ये राजनीति का सबसे क्रूर चेहरा है। एक तरफ लोग भूख, हिंसा और विस्थापन से जूझ रहे हैं और दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी इसे फोटो शूट का मौका मान रही है।
हम सबने देखा कि 2023 में जब हिंसा की आग चरम पर थी तब मोदी विदेशों में भाषण दे रहे थे। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत विश्व गुरु का नारा लगा रहे थे और उसी वक्त भारत का एक राज्य जल रहा था।
यही वो फासला है जो नेता और जनता के बीच खाई पैदा करता है। कांग्रेस, शिवसेना और विपक्षी दल लगातार कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री की संवेदनशीलता गायब हो चुकी है और 3 घंटे का यह दौरा इसे और साबित करता है।
क्योंकि सच यह है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जनता से मिलने नहीं जाते बल्कि कैमरों से मिलने जाते हैं।
राहुल गांधी तुलना
राहुल गांधी ने जब मणिपुर का दौरा किया था तो वहां की महिलाओं ने उन्हें गले लगाकर रोया। पीड़ितों ने उनसे अपनी आपबीती सुनाई। वहां कोई बड़ा मंच नहीं था। कोई विशाल रैली नहीं थी। लेकिन जनता को लगा कि कोई उनकी तकलीफ सुनने आया है।
अब वही राहुल गांधी जनता के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं और मोदी केवल दिखावटी दौर में सिमट गए हैं।
आंकड़े और निष्कर्ष
अब जरा आंकड़ों की बात करें तो पिछले 29 महीनों से मणिपुर हिंसा की चपेट में हैं। 260 से ज्यादा मौतें, हजारों घायल, हजारों परिवार विस्थापित हो चुके हैं।
यह आंकड़े सिर्फ संख्याएं नहीं है बल्कि टूटे हुए घर, बिखरे हुए रिश्ते और बर्बाद हुई हैं। और इनके बीच अगर प्रधानमंत्री सिर्फ 180 मिनट बिताकर लौट आते हैं तो इसका मतलब साफ है कि सरकार के लिए जनता सिर्फ वोट है इंसान नहीं।
राजनीति में संवेदना सबसे बड़ा हथियार होती है। लेकिन जब नेता संवेदना खो देता है तो उसकी राजनीति भी खोखली हो जाती है। मोदी जी का मणिपुर दौरा यही दिखाता है कि उनके लिए सत्ता की कुर्सी ज्यादा अहम है। जनता की तकलीफ कम और यही वजह है कि आज विपक्ष एकजुट होकर सवाल उठा रहा है।
कांग्रेस कह रही है दौरा अपमान है। शिवसेना कह रही है पर्यटन है और जनता कह रही है हमें भाषण नहीं समाधान चाहिए।
सवाल अब भी आपसे है कि क्या 29 महीने बाद मोदी का जाना ठीक है? क्या 29 महीने जलने के बाद सिर्फ 3 घंटे का दौरा मणिपुर की आग बुझा सकता है? क्या प्रधानमंत्री का यह औपचारिक भाषण जनता के जख्म भर सकता है? या फिर यह दौरा सिर्फ एक और चुनावी स्टंट है जो कि तस्वीरें और नारे देकर खत्म हो जाएगा?
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