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Sonia Gandhi नागरिकता विवाद: दिल्ली की अदालत ने कांग्रेस नेता के खिलाफ FIR की याचिका खारिज की

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कांग्रेस की प्रमुख नेता सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने की मांग वाली एक हालिया याचिका खारिज कर दी गई है। राउज़ एवेन्यू कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए उनकी नागरिकता से जुड़े आरोपों की संभावित पुलिस जांच के दरवाजे बंद कर दिए हैं। इस कानूनी कदम का उद्देश्य एक याचिकाकर्ता द्वारा उनकी पात्रता के संबंध में उठाई गई विसंगतियों की जांच करना था।

याचिका का मूल एक वकील द्वारा किए गए दावों के इर्द-गिर्द घूमता था। उन्होंने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी ने 30 अप्रैल, 1983 को अपनी नागरिकता हासिल की थी। हालाँकि, याचिकाकर्ता ने 1980 की मतदाता सूची में उनका नाम होने का हवाला दिया। यह एक ऐसी समय-सीमा प्रस्तुत करता है जो वकील को संदिग्ध लगी।

अंततः, अदालत ने इस याचिका को सिरे से खारिज कर दिया। इसका मतलब है कि इस विशिष्ट याचिका के आधार पर, तत्काल कोई पुलिस जाँच नहीं होगी। यह फैसला इस समय प्रस्तुत दावों के बारे में अदालत के आकलन को दर्शाता है।

Sonia gandhi नागरिकता विवाद: राउज़ एवेन्यू कोर्ट का अहम फैसला

सोनिया गांधी के खिलाफ याचिका खारिज करने का राउज़ एवेन्यू कोर्ट का फैसला काफी अहम है। यह याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए मुख्य आरोपों पर विचार करता है और फिलहाल मामले को समाप्त करता है। अदालत का फैसला ऐसी कानूनी कार्रवाई शुरू करने की आवश्यकताओं को रेखांकित करता है।

याचिकाकर्ता के आरोप

यह याचिका वकील विकास त्रिपाठी ने दायर की थी। उन्होंने सोनिया गांधी के समय-सारिणी के बारे में विशिष्ट दावे पेश किए। उन्होंने कहा कि भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की उनकी कथित तिथि 30 अप्रैल, 1983 थी।

त्रिपाठी ने यह भी दावा किया कि सोनिया गांधी 1980 में ही नई दिल्ली की मतदाता सूची में मतदाता के रूप में सूचीबद्ध थीं। इससे जो पैदा हुआ, उसे उन्होंने एक सीधा विरोधाभास बताया। उनके दृष्टिकोण से, मुख्य मुद्दा यह था कि कोई व्यक्ति आधिकारिक रूप से नागरिकता प्राप्त करने से पहले मतदाता कैसे हो सकता है।

इसलिए वकील ने अदालत से दिल्ली पुलिस को मामला दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया। उन्होंने इस मामले की जाँच की भी माँग की। पुलिस से स्थिति रिपोर्ट भी उनकी माँग का हिस्सा थी।

अदालत का फैसला

राउज़ एवेन्यू कोर्ट को आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त आधार नहीं मिले। उसने विकास त्रिपाठी की याचिका खारिज कर दी। इस खारिजगी का मतलब है कि अदालत को पुलिस जाँच का आदेश देने की तत्काल कोई ज़रूरत नहीं दिखी।

इसका तात्कालिक निहितार्थ यह है कि इस याचिका के आधार पर सोनिया गांधी के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाएगी। पुलिस को इस समय नागरिकता संबंधी दावों की जाँच करने का निर्देश नहीं दिया गया है। अदालत के इस फैसले से इस विशेष कानूनी चुनौती पर विराम लग गया है।

हालाँकि प्रतिलिपि में अदालत द्वारा मामले को खारिज करने के सटीक कारणों का विवरण नहीं है, लेकिन ऐसी अस्वीकृतियाँ अक्सर प्रारंभिक साक्ष्यों के अभाव में होती हैं। अदालत ने संभवतः याचिकाकर्ता के दावों को इस प्रारंभिक चरण में पुलिस जाँच के लिए अपर्याप्त पाया।

याचिका का कानूनी आधार

एफआईआर दर्ज करने और पुलिस जाँच शुरू करने के लिए कुछ कानूनी शर्तें पूरी करनी होती हैं। याचिकाकर्ताओं को एक ठोस मामला पेश करना होगा। उन्हें किसी गड़बड़ी या गंभीर अनियमितता के स्पष्ट सबूत दिखाने होंगे।

याचिका दायर करने वाले व्यक्ति पर ही सबूत पेश करने का पूरा भार है। उन्हें अपने आरोपों का उचित आधार प्रस्तुत करना होगा। केवल प्रश्न उठाना या कथित विसंगतियों की ओर इशारा करना पर्याप्त नहीं हो सकता है।

अदालतें अक्सर ठोस सबूतों के अभाव में याचिकाओं को खारिज कर देती हैं। वे प्रक्रियात्मक पहलुओं पर भी विचार करती हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग न हो। अदालत की कार्रवाई से पता चलता है कि याचिका इन ज़रूरी शर्तों को पूरा नहीं करती थी।

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