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Uttar Pradesh Panchayat Elections में चुनावी उथल-पुथल: एक ही घर में हजारों मतदाता

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Uttar Pradesh Panchayat Elections: उत्तर प्रदेश के जयपुर के महोबा गाँव में एआई सर्वेक्षण में बड़ी गड़बड़ियाँ सामने आईं। कुछ पतों पर मतदाता पंजीकरण संख्याएँ असंभव रूप से ज़्यादा दिखाई दीं। ये संख्याएँ बताती हैं कि मतदाता सूचियों में कुछ बहुत बड़ी गड़बड़ी है। यह संभावित धोखाधड़ी का स्पष्ट संकेत है।

मकान संख्या 803: एक केस स्टडी

एक घर, नंबर 803, में मतदाताओं की संख्या बहुत ज़्यादा थी। इस पते पर 4,271 पंजीकृत मतदाता थे। कल्पना कीजिए कि इतने सारे लोग एक ही घर में रहते हों। यह बिल्कुल संभव नहीं है। यह संख्या ही मतदाता सूची में एक बड़ी गड़बड़ी की ओर इशारा करती है।

मकान संख्या 996 और 997: लगातार विसंगतियां

समस्याएँ घर संख्या 803 तक ही सीमित नहीं रहीं। घर संख्या 996 में 243 पंजीकृत मतदाता थे। घर संख्या 997 में 185 मतदाता सूचीबद्ध थे। एकल आवासों के लिए ये संख्याएँ भी अविश्वसनीय रूप से अधिक हैं। इससे पता चलता है कि यह कोई अकेली घटना नहीं है। कई घरों में मतदाताओं की संख्या असंभव है।

Uttar Pradesh Panchayat Elections: धोखाधड़ी के खिलाफ स्थानीय आवाजें

जयपुर के ग्रामीणों ने सबसे पहले इन अजीबोगरीब आँकड़ों पर ध्यान दिया। उन्होंने मतदाता सूचियों को देखा। उन्हें कुछ चीज़ें ऐसी दिखीं जो बिल्कुल मेल नहीं खा रही थीं। उनके प्रत्यक्ष अनुभव से इन बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए आँकड़ों के पीछे की सच्चाई सामने आ गई।

मकान नंबर 996 में आश्चर्यजनक विसंगति

एक निवासी ने मकान नंबर 996 के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि उनके परिवार में सिर्फ़ छह मतदाता हैं। फिर भी, सूची में 250 लोगों के नाम दर्ज दिखाए गए हैं। यह बहुत बड़ा अंतर है। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि कई फ़र्ज़ी मतदाता जोड़े गए हैं।

बीएलओ से सवाल: मतदाता पंजीकरण का आधार

निवासी ब्लॉक स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) के पास गए। उन्होंने पूछा कि ये नाम सूची में कैसे आ गए? एक ही घर में इतने सारे लोग कैसे रह सकते हैं? वे इन पंजीकरणों का कारण जानना चाहते थे। ऐसा लगता है कि आधिकारिक प्रक्रिया की अनदेखी की गई है।

फर्जी वोटों में जाति और समुदाय का प्रतिनिधित्व

फर्जी मतदाता किसी एक समुदाय से नहीं थे। निवासी ने बताया कि अलग-अलग जातियों के लोगों के नाम सूची में थे। मुसलमान, ब्राह्मण (पंडित) और वाल्मीकि समुदाय के लोग, सभी मकान संख्या 996 की सूची में थे। इससे पता चलता है कि फर्जी मतदाता बनाने की एक व्यापक कोशिश चल रही थी। यह किसी खास समुदाय को निशाना नहीं बना रहा था।

एआई सर्वेक्षण का उद्देश्य चुनावों में मदद करना

एआई सर्वेक्षण का उद्देश्य चुनावों में मदद करना था। लेकिन, यह धोखाधड़ी को उजागर करने का एक ज़रिया बन गया। तकनीक ने मतदाता सूची में इन बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों को उजागर करने में मदद की। इसने दिखाया कि समस्याएँ स्पष्ट रूप से छिपी हुई थीं।

विपक्ष के आरोप सही?

ये निष्कर्ष विपक्ष के दावों की पुष्टि करते प्रतीत होते हैं। इंडिया अलायंस जैसी पार्टियाँ कहती रही हैं कि वोटों की चोरी हो रही है। उन्होंने चुनावी निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। महोबा की स्थिति उनके तर्कों के लिए पुख्ता सबूत पेश करती है।

सरकार और चुनाव आयोग का रुख

अभी तक कोई ठोस आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। जब चुनावों पर सवाल उठाए जाते हैं, तो अधिकारी अक्सर उसे खारिज कर देते हैं। वे इसे झूठा या ग़लत कह सकते हैं। लेकिन इस तरह के सबूतों के सामने, इसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है। लोग जवाब मांग रहे हैं।

राहुल गांधी की “वोट चोर” कथा: सबूत के रूप में महोबा

राहुल गांधी अक्सर “वोट चोरी” की बात करते रहे हैं। उनका दावा है कि भाजपा सत्ता पाने के लिए बेईमानी के हथकंडे अपनाती है। उनका कहना है कि वे सरकार में बने रहने के लिए वोट चुराते हैं। महोबा की घटना इन गंभीर आरोपों से मेल खाती है।

महोबा से आई यह खबर ठोस सबूत पेश करती है। यह विपक्ष के दावों की पुष्टि करती है। यह दिखाती है कि वोटों की चोरी कैसे हो सकती है। यह समस्या का एक सच्चा उदाहरण है।

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