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Nitish Kumar की JDU को बड़ा झटका, वरिष्ठ नेता श्याम बिहारी प्रसाद कांग्रेस में शामिल

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बिहार की राजनीति के सबसे गर्म क्षेत्र में, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की जनता दल यूनाइटेड (JDU) में एक बड़ा उलटफेर हुआ है। पार्टी के एक करीबी सहयोगी और कद्दावर नेता श्याम बिहारी प्रसाद जेडीयू छोड़कर सीधे कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। यह कदम नीतीश के लिए बेहद चौंकाने वाला है, क्योंकि प्रसाद का अपने क्षेत्र और उसके बाहर भी अच्छा-खासा प्रभाव है।

प्रसाद कोई साधारण नेता नहीं हैं। लोग उन्हें वैश्य समुदाय की एक प्रमुख आवाज़ के रूप में देखते हैं, जो बिहार के वोटों में काफ़ी मायने रखता है। उनका यह कदम चुनावों की सरगर्मी से ठीक पहले जेडीयू की पकड़ में आई दरार को दर्शाता है।

हमने पहले भी ऐसा देखा है। जेडीयू के अन्य बड़े नेता भी पार्टी छोड़कर जन स्वराज या कांग्रेस जैसे दलों में जा चुके हैं। इससे एक ऐसी पार्टी की तस्वीर उभरती है जो ज़मीन से लड़खड़ा रही है और जिसके नेता तेज़ी से पार्टी छोड़ रहे हैं। जैसे-जैसे और लोग पार्टी छोड़ रहे हैं, नीतीश की सत्ता पर पकड़ और जेडीयू की भविष्य की जीत पर इसके क्या असर होंगे, इस पर सवाल उठ रहे हैं।

Nitish Kumar की JDU को बड़ा झटका: श्याम बिहारी प्रसाद कौन हैं?

श्याम बिहारी प्रसाद ने बिहार की राजनीति में वर्षों से एक मज़बूत नाम कमाया है। वे वैश्य समुदाय से आते हैं और राज्य में उनके शीर्ष प्रतिनिधि माने जाते हैं। चंपारण के लोग उन्हें अच्छी तरह जानते हैं; वे नरकटियागंज सीट से कई बार विधायक रह चुके हैं।

जेडीयू से उनके गहरे रिश्ते रहे हैं। उन्होंने लंबे समय तक नीतीश कुमार के साथ मिलकर काम किया है। अब, पूर्व विधायक होने के नाते, उनका प्रभाव अभी भी उस क्षेत्र में वोट खींचता है।

प्रसाद के ज़मीनी काम ने वहाँ के लोगों की मदद की। उन्होंने स्थानीय मुद्दों को सुलझाया और विश्वास कायम किया। यही वजह है कि उनके जाने से जेडीयू को सबसे ज़्यादा चोट पहुँची है—अपने जनाधार के केंद्र में।

वैश्य समुदाय के वोट का प्रभाव

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वैश्य समुदाय बिहार की कुल आबादी का लगभग 2.32% है। यह एक छोटा सा हिस्सा है, लेकिन महत्वपूर्ण स्थानों पर इसका प्रभाव है। प्रसाद ने जेडीयू के लिए इस समूह का नेतृत्व किया और पार्टी को उनका समर्थन दिलाया।

उनके बिना, जेडीयू को उस धड़े को खोने का खतरा है। वैश्य मतदाता अब प्रसाद के साथ कांग्रेस की ओर जा सकते हैं। इससे चंपारण और आसपास के इलाकों में कांटे की टक्कर हो सकती है।

इसे दीवार से एक ईंट उखाड़ने जैसा समझिए। जेडीयू का ढांचा तेज़ी से कमज़ोर होता जा रहा है। नीतीश इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते कि यह बदलाव इस समुदाय पर उनकी पकड़ को कैसे कमज़ोर कर रहा है।

प्रसाद की प्रेरणाएँ और भविष्य की संभावनाएँ

प्रसाद हाल ही में कुछ चुनाव हार गए थे, इसलिए उन्होंने नई ज़मीन तलाशनी शुरू कर दी। जेडीयू के अंदर उन्हें लगा कि पार्टी में कोई खास सहारा नहीं है। वहाँ के नेता अनिश्चित थे, और उन्हें बाहर का रास्ता दिखा रहे थे।

सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस उन्हें रक्सौल से चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है। हो सकता है कि वे जल्द ही उन्हें टिकट दे दें। अगर ऐसा होता है, तो इससे उस क्षेत्र में कांग्रेस को फ़ायदा होगा।

उनका यह कदम एक बड़े चलन से मेल खाता है। चतुर राजनेता डूबते हुए जहाज़ों को पहचान लेते हैं और सुरक्षित पानी की ओर तैर जाते हैं। प्रसाद का यह फैसला उनके जैसे और भी कदमों को जन्म दे सकता है।

जेडीयू की बढ़ती अस्थिरता और आंतरिक चुनौतियाँ
दलबदल का एक पैटर्न

जेडीयू में इस्तीफ़ा देने वालों का तांता लगा हुआ है। प्रसाद से पहले एक नेता ने इस्तीफ़ा दिया, फिर दो और ने। कुछ जन स्वराज में चले गए, तो कुछ ने कांग्रेस को चुना।

यह कोई अचानक हुआ मामला नहीं है। यह अंदरखाने गहरी दरारों को दर्शाता है। पार्टी कार्यकर्ता कहीं और बेहतर संभावनाओं की बात फुसफुसा रहे हैं।

हर बार जेडीयू का जाना जेडीयू की ताकत को कम करता जा रहा है। शुरुआत में जो थोड़ा-बहुत हुआ, वह चुनाव के दिन तक बाढ़ में बदल सकता है।

नीतीश कुमार का नेतृत्व जांच के घेरे में

नीतीश कुमार थके हुए लग रहे हैं। कभी उनके नाम का मतलब लगातार जीत हुआ करता था, लेकिन अब वह फीका पड़ गया है। नेताओं को शक है कि वे दोबारा मुख्यमंत्री बन पाएँगे।

स्वास्थ्य संबंधी बातें कोई मदद नहीं कर रही हैं। अफ़वाहें हैं कि उनकी हालत उन्हें सुस्त बना रही है, जिससे उनकी छवि को नुकसान पहुँच रहा है। मतदाता सवाल कर रहे हैं कि क्या वह पूरा कार्यकाल संभाल पाएँगे।

आपको सोचना होगा: क्या नितीश अपनी टीम को एकजुट कर पाएँगे? या उनकी पकड़ कमज़ोर होने पर और भी खिलाड़ी मैदान छोड़ देंगे?

प्रशांत किशोर के आरोप और उनका प्रभाव

प्रशांत किशोर ने जेडीयू पर निशाना साधा। उन्होंने दावा किया कि अशोक चौधरी ने 200 करोड़ रुपये की गुप्त संपत्ति छिपाई है। यह नीतीश के एक बड़े दोस्त पर एक बड़ा आरोप है।

जेडीयू के अपने प्रवक्ताओं ने चौधरी पर जवाब देने के लिए दबाव डाला। इससे नेताओं को लगा कि उनकी पोल खुल गई है, मानो कोई उनका साथ नहीं दे रहा। ऐसे में असुरक्षा की भावना तेज़ी से फैलती है।

यह गड़बड़ी जेडीयू में उथल-पुथल का सबूत है। जब पार्टी अपने ही खिलाफ हो जाती है, तो भरोसा टूट जाता है। इससे और लोगों के पार्टी छोड़ने की आग भड़क उठती है।

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