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शिल्पी जैन हत्याकांड: उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कनेक्शन?
बिहार में चुनाव की तैयारियाँ शुरू होते ही एक पुराना ज़ख्म फिर से हरा हो गया है। 1999 का शिल्पी जैन हत्याकांड फिर से सुर्खियों में है। अब, नए दावों में उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को इस अपराध से जोड़ा गया है। यह सिर्फ़ इतिहास नहीं है—यह आज की राजनीति को हिला रहा है। आइए समझते हैं कि उस दुर्भाग्यपूर्ण साल में क्या हुआ था और ये आरोप आज इतने ज़ोरदार क्यों लग रहे हैं।
1999 शिल्पी जैन हत्याकांड: घटना का विस्तृत विवरण
शिल्पी जैन: मिस पटना और अपराध की ओर ले जाने वाली घटनाएँ
शिल्पी जैन उस समय पटना में एक स्टार थीं। उन्होंने पटना वीमेंस कॉलेज में पढ़ाई की थी और हाल ही में मिस पटना का खिताब जीता था। उनकी खूबसूरती और स्मार्टनेस ने उन्हें सबसे अलग पहचान दिलाई।
उसका एक करीबी दोस्त गौतम था। दोनों में प्यार हो गया। एक दिन शिल्पी अपनी कंप्यूटर क्लास के लिए रिक्शे पर निकली। तभी गौतम का एक दोस्त गाड़ी चला रहा था और उसने बताया कि गौतम पास ही इंतज़ार कर रहा है। शिल्पी उस लड़के पर भरोसा करके बिना सोचे-समझे उसमें बैठ गई।
लेकिन ड्राइवर ने ग़लत मोड़ ले लिया। वह उसकी क्लास की बजाय एक फ़ार्म हाउस की तरफ़ बढ़ गया। शिल्पी को तुरंत शक हुआ। जब तक उसे ख़तरे का अंदाज़ा हुआ, बहुत देर हो चुकी थी।
सरकारी क्वार्टर नंबर 12 में खोज और तत्काल परिणाम
गौतम को कार के बारे में पता चला और वह दौड़कर वहाँ पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि कुछ लोग शिल्पी को परेशान कर रहे थे। उसने उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने उसे बुरी तरह पीटा। गौतम की वहीं मौत हो गई।
बाद में, पुलिस को दोनों के शव एक सफ़ेद मारुति कार में मिले। घटनास्थल? सरकारी क्वार्टर नंबर 12। शिल्पी ने अपने फटे कपड़ों के ऊपर गौतम की टी-शर्ट पहनी हुई थी। गौतम उसके बगल में नंगा पड़ा था। उनके शरीर पर हिंसा के साफ़ निशान थे।
वह क्वार्टर साधु यादव का था। वे तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भाई थे। इस संबंध ने तुरंत आक्रोश पैदा कर दिया। साधु के समर्थक तुरंत इकट्ठा हो गए, जिससे अफरा-तफरी मच गई।
जांच का स्थानांतरण: स्थानीय पुलिस से सीबीआई जांच तक
लोगों ने पुलिस पर ढिलाई बरतने का आरोप लगाया। शुरू से ही मामला लीपापोती का लग रहा था। हर तरफ से दबाव बढ़ने लगा, इसलिए सरकार ने इसे सीबीआई को सौंप दिया।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि शिल्पी पर कई लोगों ने हमला किया था। तस्वीरें भी सामने आईं जिनसे पता चलता है कि इसमें कौन शामिल हो सकता है। सीबीआई ने साधु यादव से डीएनए सैंपल माँगा। उसने साफ़ मना कर दिया।
इस इनकार ने और भी संदेहों को हवा दी। जाँच सालों तक चलती रही। हर कोई सोच रहा था कि क्या सत्ता न्याय में रोड़ा अटका रही है।
राजनीतिक बवाल: सम्राट चौधरी पर प्रशांत किशोर के विस्फोटक आरोप
प्रशांत किशोर, जो पीके के नाम से मशहूर और तेजतर्रार राजनीतिक रणनीतिकार हैं, ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक बड़ा धमाका किया। उन्होंने दावा किया कि शिल्पी जैन हत्याकांड से जुड़ा राकेश नाम का एक शख्स असल में सम्राट चौधरी है।
पीके यहीं नहीं रुके। उन्होंने किसी को भी चौधरी से इस बारे में पूछने की चुनौती दी। अगर वह इनकार करते हैं, तो पीके ने कहा कि वह हर बात साबित करने के लिए दस्तावेज़ लेकर आएंगे। बिहार की चुनावी हलचल में यह बात तूफ़ान की तरह फैल गई।
अब क्यों? पीके इसे छिपे हुए सच को उजागर करने का एक तरीका मानते हैं। आरोपों से पता चलता है कि चौधरी 1999 की इस भयावह घटना में गहराई से शामिल थे।
पहचान विवाद: नाम परिवर्तन और उम्र का गलत विवरण
पीके ने चौधरी के अतीत के बारे में और भी दावे किए। उन्होंने कहा कि उस समय चौधरी का असली नाम राकेश कुमार था। इतना ही नहीं, चौधरी ने अपनी भूमिका छिपाने के लिए कथित तौर पर अपनी उम्र भी छिपाई थी।
ये मोड़ कहानी को और भी उलझा देते हैं। ज़रा सोचिए, किसी विवाद से बचने के लिए आप अपना नाम और जन्म वर्ष बदल लें। पीके ने जल्द ही और सबूत देने का वादा किया, जिससे मामला और गरमा गया।
बिहार के मतदाता ध्यान से सुन रहे हैं। ऐसे व्यक्तिगत हमले किसी नेता की ईमानदारी पर सवाल उठाते हैं। ये शिल्पी जैन हत्याकांड की बहस को और उलझा देते हैं।
ऐतिहासिक संदर्भ: सुशील मोदी की पिछली संलिप्तता
यह पहली बार नहीं है जब चौधरी को लेकर सवाल उठे हों। इससे पहले भी भाजपा नेता सुशील मोदी ने इस मामले पर चिंता जताई थी। उन्होंने इस मामले और इसके अजीबोगरीब पहलुओं पर जवाब मांगे थे।
बरसों पहले मोदी की आवाज़ आज भी गूंज रही है। इससे पता चलता है कि विवाद कभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ। पीके के शब्द उस पुरानी आग को फिर से जगा देते हैं, अतीत और वर्तमान को जोड़ते हैं।
यह हमें याद दिलाता है कि कैसे बिहार की राजनीति अक्सर चुनावों के दौरान दबे हुए राज़ उजागर कर देती है।
सीबीआई ने आत्महत्या घोषित की: 2003 का विवादास्पद फैसला
2003 तक सीबीआई ने इस मामले को रफा-दफा कर दिया। उन्होंने इन मौतों को आत्महत्या बताया, हत्या नहीं। ठोस सबूतों के अभाव में फाइल को सील कर दिया गया।
शिल्पी का परिवार इस खबर से सदमे में था। मानो किसी तमाचे से कम नहीं था। उन्होंने अपनी बेटी खो दी, एक प्रतिष्ठित कपड़ा व्यापारी परिवार की होनहार लड़की।
इस फ़ैसले से कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। किसी पर भी हमले या मारपीट का आरोप नहीं लगा। न्याय पहुँच से बाहर लग रहा था।
गुमशुदा सबूत: यौन उत्पीड़न और डीएनए इनकार
रिपोर्टों में एक भयावह तस्वीर पेश की गई। शिल्पी पर कई पुरुषों ने यौन उत्पीड़न किया था। फिर भी, महत्वपूर्ण सबूत या तो गायब कर दिए गए या नज़रअंदाज़ कर दिए गए।
साधु यादव के डीएनए से छेड़छाड़ ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। इसके बिना, संबंध साबित नहीं हो पाते। परिवार ने कड़ा विरोध किया, लेकिन फिर भी मामला बंद हो गया।
शिल्पी जैन हत्याकांड में यह अंतर आज भी खलता है। यह इस बात को लेकर बड़े सवाल खड़े करता है कि पर्दे के पीछे से किसने इस हत्याकांड को अंजाम दिया होगा।
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