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Bihar election की बढ़ती गर्मी में भाजपा का बुर्का जांच की मांग: BJP को मुस्लिम महिलाओं पर शक? चुनाव आयोग फंसा

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क्या मतदान केंद्रों पर बुर्का पहनकर आने वाली महिलाओं के चेहरे की जांच होनी चाहिए? सवाल सीधा है, पर इसका असर गहरा है। बिहार चुनाव (Bihar election) तेज़ी से नजदीक आ रहे हैं, दल अपनी रणनीति कस रहे हैं, और इसी बीच भाजपा (BJP) की एक मांग ने बहस को नई दिशा दे दी है। भाजपा चाहती है कि मतदान केंद्रों पर बुर्का पहनकर आने वाली महिलाओं के चेहरे का मिलान वोटर आईडी से कराया जाए, या फिर बुर्का पर रोक लगे। तर्क दिया गया है कि इससे असली और फर्जी वोटर का फर्क पता चलेगा। पर क्या यह मांग महिलाओं की गरिमा और धार्मिक आस्थाओं पर चोट है, या चुनावी पारदर्शिता का उपाय?

बिहार चुनाव की बढ़ती गर्मी और नया विवाद

बिहार में चुनावी हलचल चरम पर है। एनडीए के भीतर सीट बंटवारे की खींचतान जारी है। विपक्ष निष्पक्ष चुनाव की मांग कर रहा है। जनता रोजगार, विकास और कानून व्यवस्था पर जवाब चाहती है। इसी बीच एक नई बहस उठी, जो सीधे महिला मतदाताओं और खासकर मुस्लिम महिलाओं से जुड़ती है।

  • एनडीए: सीट साझेदारी की मांगें
  • विपक्ष: निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव
  • जनता: विकास, रोज़गार और बेहतर शासन
  • भाजपा का फोकस: बुर्का पहनकर आने वाली महिलाओं की पहचान की जांच

शुरुआत इस सवाल से हुई कि जो नेता माताओं, बहुओं और बेटियों का सम्मान करने की बात करते हैं, क्या वही अब मतदान केंद्रों पर महिलाओं की चेहरा जांच कराएंगे? मुद्दा संवेदनशील है, क्योंकि यह पहचान प्रक्रिया और निजी गरिमा, दोनों के बीच की रेखा को छूता है।

Bihar Election की बढ़ती गर्मी में भाजपा का बुर्का जांच की मांग

चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी पर शनिवार को 12 मान्यता प्राप्त दलों के साथ बैठक की। बैठक की अध्यक्षता मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने की। साथ में चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू, विवेक जोशी और बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी विनोद गुंजियाल भी मौजूद रहे।

आयोग ने साफ कहा, राजनीतिक दल लोकतंत्र की नींव हैं। सभी दल मतदाताओं का सम्मान करें, चुनावी प्रक्रिया को सौहार्द के साथ निभाएं, और पारदर्शिता के लिए अपने पोलिंग एजेंट जरूर नियुक्त करें।

बैठक में प्रमुख उपस्थिति:

  1. ज्ञानेश कुमार, मुख्य चुनाव आयुक्त
  2. सुखबीर सिंह संधू, चुनाव आयुक्त
  3. विवेक जोशी, चुनाव आयुक्त
  4. विनोद गुंजियाल, मुख्य चुनाव अधिकारी, बिहार

बाकी दलों की बातें

  • कांग्रेस: पारदर्शी चुनाव पर जोर
  • आरजेडी: वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों पर सवाल
  • जेडीयू: एक चरण में चुनाव कराने का सुझाव
  • भाजपा: एक या दो चरण में मतदान, और बुर्का पहनकर आने वाली महिलाओं के चेहरे की जांच

भाजपा की खास मांग और तर्क

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व बिहार भाजपा अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने किया। उन्होंने आयोग से आग्रह किया कि मतदान केंद्र पर बुर्का पहनकर आने वाली महिलाओं के चेहरे का मिलान उनके वोटर आईडी से किया जाए, ताकि केवल वास्तविक मतदाता ही मतदान करें। साथ ही, जिन इलाकों में बूथ कैप्चरिंग या डराने धमकाने का अंदेशा हो, वहां अर्धसैनिक बलों की पर्याप्त तैनाती की मांग भी रखी गई। तर्क था कि फर्जी वोटर को रोकना जरूरी है।

यह मांग असहज क्यों लगती है

महिलाओं का सम्मान, पर मुस्लिम महिलाओं पर शक?

भाजपा अक्सर कहती है कि वह महिलाओं के सम्मान और अधिकारों के लिए खड़ी है। तीन तलाक कानून इसका उदाहरण बताया जाता है। फिर जब बात मुस्लिम महिलाओं की आती है, तो शक क्यों? क्या अचानक से यह चिंता क्यों कि मुस्लिम महिलाएं फर्जी मतदान कराएंगी?

यहां सवाल नीति से ज्यादा दृष्टिकोण का है। पहचान की प्रक्रिया का तरीका ऐसा है जो एक समुदाय की महिलाओं को अलग से निशाने पर रखता है, और यह भावना समावेशी राजनीति के खिलाफ जाती है। यह उलझन पैदा करती है कि क्या नारा है सबका सम्मान, पर व्यवहार में शक सिर्फ एक तबके पर?

सार प्रश्न: क्या वाकई यह कानून व्यवस्था का मामला है, या पहचान के नाम पर चयनित निगरानी?

बड़ा राजनीतिक खेल और संभावित असर

चुनाव सिर्फ नियमों से नहीं, माहौल से भी तय होते हैं। बुर्का जांच की मांग माहौल बदल देती है। इससे मुस्लिम महिलाओं के मन में आशंका बढ़ सकती है, खासकर उन इलाकों में जहां वे पहले से झिझक महसूस करती हैं।

संभावित प्रभाव:

  • कई महिलाओं को यह धार्मिक आस्था और निजी गरिमा पर हस्तक्षेप लगेगा, सिर्फ आईडी मिलान नहीं।
  • वोटिंग के दिन विवाद और असहजता बढ़ सकती है, जिससे मतदान प्रतिशत गिर सकता है।
  • कम मतदान का सीधा असर उन इलाकों में पड़ेगा जहां मुस्लिम महिलाएं बड़ी संख्या में मतदान करती हैं।
  • यह उस सोच से मेल खाता है जो कपड़ों से पहचान तय करने की बात करती है।

खुला सच: “भाजपा जानती है, जितना ज्यादा डर, उतने कम वोट मुस्लिम महिलाओं से।”

नीतियों में विरोधाभास

एक तरफ सरकारें महिलाओं के खाते में पैसे भेजने, योजनाओं और भावनात्मक अभियानों के जरिए महिला वोटरों को जोड़ने की कोशिश कर रही हैं। दूसरी तरफ यही महिलाओं से कहा जा रहा है, बुर्का उठाओ, चेहरा दिखाओ। गरिमा के सामने पैसा छोटा पड़ जाता है। पहचान की इस मांग से बनता संदेश उन सभी अभियानों पर भारी पड़ सकता है।

बिहार की राजनीति में महिलाओं की ताकत

बिहार की राजनीति लंबे समय तक किसान आंदोलनों, छात्र राजनीति और जातिगत समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही। अब तस्वीर बदल रही है। महिला मतदाता निर्णायक बनकर उभरी हैं। उनकी भागीदारी बढ़ी है, मतदान का पैटर्न स्पष्ट है, और सामाजिक जागरूकता पहले से बहुत ज्यादा है।

पहले: जाति और सामाजिक मुद्दे हावी
अब: महिला मतदाता सत्ता के समीकरण तय करेंगी

दोनों खेमे महिलाओं के लिए बड़े ऐलान कर रहे हैं। एक तरफ एनडीए का दावा है कि महिलाओं के खातों में ₹10,000 भेजे जा रहे हैं। दूसरी तरफ महागठबंधन ने हर महीने ₹2,500 देने का वादा रखा है। लेकिन चुनाव सिर्फ रकम से नहीं जीते जाते। जब पहचान के नाम पर गरिमा आहत होती है, तो महिलाएं उसके खिलाफ खड़ी हो सकती हैं। बुर्का जांच जैसे कदम से नाराजगी बढ़े, तो यह भाजपा के महिला वोट बैंक पर चोट करेगा।

जेडीयू की भूमिका और खामोशी

जेडीयू, भाजपा की प्रमुख सहयोगी है। नीतीश कुमार के नाम पर बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं मतदान करती आई हैं। ऐसे में जेडीयू की चुप्पी बहुत कुछ कहती है। अगर यह मुद्दा बढ़ा, तो विपक्ष इसे बड़ा एजेंडा बना सकता है। इससे जेडीयू को असहज स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, और भाजपा को महिला वोटरों में नुकसान हो सकता है।

चुनाव आयोग, ज्ञानेश कुमार और अगला कदम

बिहार में चुनाव आयोग की टीम बैठकों के दौर में है। राजनीतिक दलों से बातचीत के बाद शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों से समीक्षा जारी है। प्रेस कॉन्फ्रेंस भी प्रस्तावित है। विपक्ष पहले से आरोप लगाता रहा है कि आयोग सरकार के असर में काम करता है, इसलिए इस बार हर कदम पर नजरें टिकी हैं, खासकर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर।

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