Vimarsh News
Khabro Me Aage, Khabro k Pichhe

Bihar में BJP की राह क्यों हुई मुश्किल: भ्रष्टाचार के आरोपों ने बढ़ाई संकट की रफ्तार

why the bjp's path in bihar has become difficult corruption allegations hav 20251008 105225 0000
0 48

2014 का बीजेपी (BJP) का नारा आज भी कानों में गूंजता है, ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा। उस समय यह भरोसे की आवाज थी। आज यही पंक्ति सवाल बनकर लौट आई है। जनमत में चर्चा है कि जो सरकार खुद को साफ छवि वाली बताती रही, उसी पर भ्रष्टाचार के बादल घिर आए हैं। केंद्र से लेकर राज्यों तक, फैसलों के बीच सवाल उठ रहे हैं। जांच एजेंसियों पर पक्षपात के आरोप हैं, गोदी मीडिया पर चुप्पी का तंज है, और पार्टी के भीतर बेचैनी का माहौल है।

यह कहानी सिर्फ दिल्ली की नहीं है। बिहार (Bihar) में तो हालात और पेचीदा दिख रहे हैं। आरोपों की आग तेज है, और जवाब बहुत कम।

Bihar में BJP की राह क्यों हुई मुश्किल: नारे से हकीकत तक: क्या बदला, कैसे बदला

वक्त वही है, देश वही है, लेकिन कथन और कर्म के बीच की दूरी बढ़ गई है। जो पार्टी खुद को ईमानदारी का चेहरा बताती थी, उसे अब अपने ही नेताओं पर लगे आरोपों पर सफाई देनी पड़ रही है। सवाल यह नहीं कि आरोप कौन लगा रहा है, सवाल यह है कि जवाब कौन देगा और कब देगा।

  • सत्ता में आने के बाद BJP ने भ्रष्टाचार पर सख्त रुख दिखाने का दावा किया।
  • समय के साथ, वही पार्टी उन चेहरों को अपने साथ लाई जिन पर कभी उसने खुद सवाल उठाए थे।
  • आज हालात यह हैं कि पार्टी के अंदर पुराने नेता भी असहज महसूस कर रहे हैं, लेकिन खुलकर बोलने से डरते हैं।

आरोप लगाने वाले, अब अपनाने वाले: नैरेटिव का उलटफेर

एक समय BJP के मंचों पर कुछ नाम भ्रष्टाचार के प्रतीक के तौर पर पेश होते थे। समय बदला, समीकरण बदले, और वही नाम सत्ता के केंद्र में आ गए। उदाहरण सामने हैं, और बहस भी।

  • अजीत पवार: उन पर गंभीर आरोपों की बात BJP करती थी; फिर सत्ता साझेदारी में डिप्टी CM जैसी कुर्सी भी दी गई।
  • हिमंत बिस्वा सरमा: पहले सवाल, फिर असम के CM की कुर्सी। जब उनसे पूछा गया, तो अक्सर जवाब टाल दिए गए।

यह बदलाव सिर्फ राजनीतिक रणनीति नहीं लगता, यह पार्टी की नैतिक लाइन पर भी सवाल खड़े करता है। जैसे कोई अनकहा नियम बन गया हो कि चुनावी आँकड़े ठीक हों, तो आरोप पीछे छूट जाएं।

11 साल, दर्जनों घोटाले, और खामोशी

पिछले एक दशक में कई मामलों पर सवाल उठे। विपक्ष बोलता रहा कि जांच एजेंसियां चुनिंदा लोगों पर सख्त हैं और बाकियों के लिए चुप। कुछ उदाहरणों का जिक्र चर्चा में बार-बार आता है।

  • एक जज के घर नकदी मिलने की खबर, लेकिन आगे की कार्रवाई पर लंबी खामोशी।
  • पेट्रोल में एथेनॉल मिलावट का मामला, जिसमें जनता को नुकसान की बात उठी।
  • बड़ी डीलों में पैसों के खेल का आरोप।
  • कुछ बड़े कारोबारी विदेश भाग गए, फिर भी जवाबदेही का सवाल अधूरा।

लोग कहते हैं कि यह सब भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार जैसा लगने लगा है। मीडिया का एक हिस्सा इन मुद्दों पर नरम दिखा, यह भी आरोपों का हिस्सा है।

बिहार का बवंडर: प्रशांत किशोर के आरोपों ने कैसे बदली हवा

कौन से नाम, कौन से सवाल

बिहार की सियासत में हाल की सबसे बड़ी हलचल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद आई। चुनावी रणनीतिकार से जन अभियानों के चेहरे बने प्रशांत किशोर ने सीधे नाम लेकर BJP की शीर्ष राज्य इकाई पर सवाल उठाए। आरोपों के केंद्र में तीन बड़े नेता थे, और कहा गया कि सबूतों के साथ बात हो रही है।

  • सम्राट चौधरी (डिप्टी CM)
  • मंगल पांडे (स्वास्थ्य मंत्री)
  • दिलीप जायसवाल (प्रदेश अध्यक्ष)

ये आरोप सोशल मीडिया पर तेज गति से फैले। वीडियो वायरल हुआ और राजनीतिक गलियारों में जैसे भूकंप-सा माहौल बन गया। खास बात यह रही कि आरोप हवा-हवाई कहकर टाले नहीं जा सके, क्योंकि दस्तावेजों का दावा किया गया।

मुख्य बिंदु, जैसा सामने आया:

  1. दिलीप जायसवाल: हत्या के एक मामले में संलिप्तता का आरोप। साथ ही एक माइनॉरिटी मेडिकल कॉलेज पर अवैध कब्जे का दावा। मांग यह कि या तो दस्तावेज़ी जवाब दें, या मानहानि का केस करें।
  2. सम्राट चौधरी: शैक्षणिक योग्यता पर सवाल। कहा गया कि बार-बार खुद को उपमुख्यमंत्री बताते हैं, तो मैट्रिक और ग्रेजुएशन की डिग्री सामने रखें।
  3. मंगल पांडे: स्वास्थ्य विभाग से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोप। यह क्षेत्र सीधे जनता की जान और इलाज से जुड़ा है, इसलिए सवाल और संवेदनशील बनते हैं।

इन तीनों पर आरोप नया राजनीतिक नैरेटिव बना रहे हैं। BJP जो लंबे समय से लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव के परिवार को निशाने पर रखती रही, अब उस पर ही सवालों की बौछार है।

BJP की चुप्पी, और भीतर का बोझ

कभी BJP खुद को जीरो टॉलरेंस वाली पार्टी कहती थी। जरा सा दाग दिखा, तो इस्तीफा मांग लेती थी। अब वही पार्टी आरोपों पर चुप है। कैमरों से नजरें चुराई जा रही हैं। जवाब की जगह किनारे हो जाने की खबरें मिलती हैं। पुराने संघी और अटल आडवाणी दौर के नेता अंदर से घुटन महसूस कर रहे हैं। बोलना चाहते हैं, मगर डरते हैं। यह मौन किसी बगावत से कम नहीं लगता।

अंदर की आवाज: आर. के. सिंह ने क्यों हिला दी दीवार

केंद्रीय मंत्री आर. के. सिंह का बयान इस बहस में टर्निंग पॉइंट बन गया। उन्होंने कहा, जिन पर आरोप हैं, वे सामने आकर सफाई दें। यदि जवाब है, तो रखें। यदि नहीं, तो इस्तीफा दें। बात सीधी थी, और लहजा भी। दो बिंदुओं पर उन्होंने खास जोर दिया।

दिलीप जायसवाल को हत्या और कॉलेज कब्जे के आरोपों पर खुला जवाब देना चाहिए। यदि सबूत गलत हैं, तो मानहानि का केस होना चाहिए।
सम्राट चौधरी अपनी डिग्रियां सार्वजनिक करें। शंका दूर करना ही सबसे अच्छा रास्ता है।
बयान के बाद खबरें आईं कि उन्हें चुप कराया गया। पार्टी से दूरी दिखी। यह संदेश भी गया कि जो नेता बोलने की सोच रहे थे, वे और चौकन्ने हो जाएं। कई लोग साइडलाइन होकर बैठ गए। यह डर है या मजबूरी, कहना कठिन है। लेकिन तस्वीर साफ है कि अंदरूनी असंतोष बढ़ा है।

असंतोष बढ़ा है।

दुविधा और समीकरण: जाति बनाम ईमानदारी
दो खेमे, दो रास्ते

एक खेमे का तर्क: सम्राट चौधरी ओबीसी, कुशवाहा समुदाय से आते हैं। दिलीप जायसवाल वैश्य हैं। मंगल पांडे ब्राह्मण हैं। इन पर सख्ती हुई, तो जातिगत समीकरण बिगड़ेंगे और वोट बैंक को नुकसान होगा।
दूसरे खेमे की चिंता: भ्रष्टाचार पर चुप्पी पार्टी की आत्मा को मार देगी। यदि जांच नहीं हुई, तो जनता का भरोसा टूटेगा और उसका असर लंबे समय तक रहेगा।
यह वही मोड़ है जहां राजनीतिक गणित और नैतिकता एक दूसरे से भिड़ जाते हैं। एक रास्ता तात्कालिक फायदा देता है, दूसरा दीर्घकालिक भरोसा।

BJP के लिए दुविधा कुछ यूं है:

  • कार्रवाई करें, तो ओबीसी और दूसरे समुदायों में नाराजगी बढ़ सकती है।
  • कार्रवाई न करें, तो पार्टी की ईमानदार छवि को गहरी चोट लग सकती है।
    प्रशांत किशोर ने संकेत दिया है कि उनके पास और भी नाम और सबूत हैं। यह केवल शुरुआत हो सकती है। यदि आरोप बढ़े, तो दबाव भी बढ़ेगा।

यह भी पढ़ें – BJP का गढ़ बांकीपुर: कायस्थ बहुल सीट पर Congress संतोष श्रीवास्तव जैसे जमीनी चेहरे पर दांव लगाएगी?

Leave a comment