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Adani सेठ को Modi का तोहफा: पर्यावरण नियमों में रातों रात बदल दिया फैसला, सीमेंट प्लांट विवाद
कल्पना कीजिए, एक ऐसा प्रस्ताव जो बड़े कॉर्पोरेट घराने को सीधी राहत दे, लेकिन आम लोगों की चिंताओं को झाड़ दे। पर्यावरण मंत्रालय का ताजा ड्राफ्ट नोटिफिकेशन ठीक यही कर रहा है। यह बदलाव अडानी (Adani) ग्रुप के मुंबई के कल्याण में प्रस्तावित सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट को आसान बना देगा। विवाद साफ दिखता है: कॉर्पोरेट हित बनाम स्थानीय स्वास्थ्य और पर्यावरण। क्या यह नियमों को मोड़ना है या जरूरी कदम? आइए, इसकी परतें खोलें।
Adani सेठ को Modi का तोहफा: पर्यावरण नियमों में बदलाव और अडानी ग्रुप की नई राह
पर्यावरण मंत्रालय ने 26 सितंबर को एक ड्राफ्ट जारी किया। यह सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट्स के लिए नियमों में ढील लाता है। अब कैप्टिव पावर प्लांट वाली नहीं, बिना पावर प्लांट वाली यूनिट्स को मंत्रालय की मंजूरी से मुक्ति मिलेगी। यह कदम अडानी ग्रुप के प्रोजेक्ट को तेजी देगा। लेकिन कल्याण के लोग चिंतित हैं। वे प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिमों से डरते हैं। यह प्रस्ताव कॉर्पोरेट विकास को बढ़ावा देता है, पर स्थानीय आवाज दबा देता है।
सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट्स के लिए नियम शिथिलन
ड्राफ्ट नोटिफिकेशन साफ कहता है। बिना कैप्टिव पावर प्लांट वाली यूनिट्स को पर्यावरण मंजूरी की जरूरत नहीं। पहले यह बाध्यता थी। मंत्रालय का आकलन खत्म। अब फैक्ट्री लगाओ, बिना झंझट के। यह बदलाव 26 सितंबर को आया। इसका असर सीधा अडानी पर पड़ेगा। कल्याण का प्रोजेक्ट अब तेज बनेगा। लेकिन क्या यह पर्यावरण की अनदेखी है? स्थानीय लोग तो यही सोचते हैं।
कल्याण में प्रस्तावित अडानी का मेगा प्रोजेक्ट
अंबूजा सीमेंट लिमिटेड अडानी ग्रुप का हिस्सा है। वे कल्याण में प्लांट लगा रहे हैं। लागत 1400 करोड़ रुपये। सालाना 60 लाख मीट्रिक टन सीमेंट बनेगा। जगह मुंबई के पास, घनी आबादी वाला इलाका। रेलवे स्टेशन के ठीक सामने। यह प्रोजेक्ट विकास का चेहरा बनेगा। लेकिन निवासियों को डर सताता है। प्रदूषण कैसे रोका जाएगा? अडानी को फायदा साफ दिखता है।
पर्यावरण मंजूरी में छूट: नियम क्यों बदले गए?
मंत्रालय ने नियम बदले, तर्क दिए। स्टैंडअलोन यूनिट्स कम प्रदूषण करती हैं। इसलिए EIA रिपोर्ट की जरूरत नहीं। यह छूट विवादास्पद है। क्या यह पर्यावरण बचाने का तरीका है? या कॉर्पोरेट को बचाना? आइए देखें। बदलाव से प्रोजेक्ट आसान हो जाता है। लेकिन स्वास्थ्य जोखिम बाकी रहते हैं। मंत्रालय के दावे मजबूत लगते हैं, पर जमीन पर परीक्षा बाकी।
स्टैंडअलोन यूनिट्स के लिए तर्क
मंत्रालय कहता है, ये यूनिट्स अन्य प्लांट्स से कम गंद फैलाती हैं। EIA की रिपोर्ट न लो। पर्यावरण प्रभाव का आकलन खुद कर लो। लेकिन क्या यह काफी है? कल्याण जैसे इलाके में? स्टैंडअलोन यूनिट्स सरल होती हैं। प्रदूषण कम। फिर भी, स्थानीय चिंताएं वैध लगती हैं। मंत्रालय का यह कदम तेज विकास को बढ़ावा देता है। पर कीमत कौन चुकाएगा?
प्रक्रियागत अंतर का हवाला
प्लांट में कैल्सिनेशन नहीं होगा। रॉ मटेरियल गर्म करने की प्रक्रिया नदारद। क्लिकराइजेशन भी नहीं। सीमेंट को तोड़ने का काम बाहर। इससे कार्बन उत्सर्जन घटेगा। वेस्ट भी कम बनेगा। मंत्रालय यही तर्क देता है। लेकिन क्या यह पर्याप्त सुरक्षा है? कल्याण के लोग सांस की बीमारियों से डरते हैं। प्रक्रिया सरल, पर असर गहरा हो सकता है।
लॉजिस्टिक्स और प्रदूषण नियंत्रण के दावे
कच्चा माल रेल से आएगा। या ई-वाहनों से। प्रदूषण कम होगा। प्लांट रेलवे स्टेशन के सामने है। परिवहन आसान। डीजल ट्रक कम। कार्बन फुटप्रिंट घटेगा। मंत्रालय इसे हरा कदम बताता है। लेकिन क्या वादे पूरे होंगे? स्थानीय लोग शक करते हैं। रेल का इस्तेमाल लाजमी, पर निगरानी कौन करेगा?
कल्याण वासियों का आक्रोश: स्वास्थ्य और पर्यावरणीय चिंताएँ
कल्याण के लोग गुस्से में हैं। प्लांट से प्रदूषण बढ़ेगा। स्वास्थ्य बिगड़ेगा। बच्चे, बूढ़े सबसे ज्यादा प्रभावित। 15 सितंबर को इंडियन एक्सप्रेस ने बात की। लोग चिंतित थे। घनी आबादी में यह प्रोजेक्ट क्यों? विरोध तेज। लेकिन सुनने वाला कौन? उनकी नाराजगी व्यर्थ लगती है। पर्यावरण मंत्रालय ने नियम बदल दिए। अब प्लांट बनेगा।
स्वास्थ्य पर संभावित गंभीर असर
प्रदूषण से सांस की बीमारियां फैलेंगी। धूल, धुआं हर तरफ। बच्चों के फेफड़े प्रभावित। बुजुर्गों को दिक्कत। बीमारियां बढ़ेंगी। इलाके का पर्यावरण बर्बाद। लोग सवाल पूछते हैं। सरकार इतने घने इलाके में इजाजत कैसे? मंत्रालय ने जवाब दिया, नियम बदलो। स्वास्थ्य चिंताएं अब खुद संभालो। यह कितना अन्यायपूर्ण लगता है?
स्थानीय विरोध और राजनीतिक प्रतिक्रिया
ग्राम पंचायत मंडल मोहिनी कोलीवाड़ा के अध्यक्ष बोले। हम इसे अच्छा नहीं मानते। ड्राफ्ट पढ़ेंगे। सहमति बनाएंगे। फिर फैसला लेंगे। लेकिन विरोध कितना कारगर? लोग परेशान। प्रोटेस्ट होते हैं। पर फर्क नहीं पड़ता। राजनीति में वोट का खेल। चुनाव आएंगे, फिर वही। जनता की आवाज दबी रहती है।
अतीत की अनदेखी और राजनीतिक निष्क्रियता
मुंबई में पेड़ काटे गए। बुलेट ट्रेन के लिए। तब कोई नहीं बोला। नैनो प्रोजेक्ट्स पर चुप्पी। वोट के समय सवाल क्यों नहीं? अब कल्याण में यही हो रहा। सोते रहो। अगले चुनाव इंतजार करो। फिर वही सरकार। चक्र चलता रहेगा। यह पैटर्न साफ दिखता है। जनहित उपेक्षित।
नियामक गतिरोध और अडानी की स्थिति
महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पहले अड़चन डाली। क्लीयरेंस न मिला। स्थानीय विरोध से। केंद्र ने नियम बदले। अब बाधा दूर। अडानी चुप है। कोई बयान नहीं। सरकार सब संभाल रही। पत्रकारों ने लिखा। नियम प्रोजेक्ट के हिसाब से बने। यह साफ कॉर्पोरेट संरक्षण दिखाता है।
MPCB से क्लीयरेंस में अड़चन
स्थानीय लोग विरोध कर रहे। प्रदूषण बढ़ेगा, स्वास्थ्य खराब। MPCB ने मंजूरी रोकी। अड़चन आई। लेकिन केंद्र ने हस्तक्षेप किया। ड्राफ्ट से समस्या हल। अब क्लीयरेंस आसान। प्रोजेक्ट रुकेगा नहीं। यह बदलाव तेजी लाता है। पर स्थानीय चिंताएं बनी रहेंगी।
अडानी ग्रुप की चुप्पी
अडानी ने कुछ नहीं कहा। विवाद पर मौन। सरकार उनकी तरफ से बोल रही। प्रतिक्रिया की जरूरत नहीं। यह रणनीति लगती है। चुप रहो, काम होता रहे। लेकिन सवाल उठते हैं। कंपनी पर्यावरण पर क्या सोचती? निवासियों की चिंताओं का जवाब कब?
नियम ही परियोजना के अनुरूप बनाए गए
समरताज मिश्रा ने लिखा। अडानी प्लांट का विरोध प्रदूषण से। MPCB क्लीयरेंस न दे। केंद्र ने नियम बदले। अप्रूवल मिला तो कोई अड़चन न। सब नियम के मुताबिक। लेकिन नियम प्रोजेक्ट के लिए बने। यह हकीकत है। कॉर्पोरेट को प्राथमिकता।
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