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19 मासूमों की मौत: जहरीला कफ सिरप कांड, Chief Minister Mohan Yadav जी, शर्म करो!

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जिस शहर में डॉक्टर मुख्यमंत्री (Chief Minister) हों, वहां क्या बच्चों की मौतें कफ सिरप से होनी चाहिए? जब एक गलत दवा बाजार में, अस्पतालों में, और डॉक्टरों की पर्चियों पर बेची जाए, तो यह सिर्फ लापरवाही नहीं, यह अपराध है। मध्य प्रदेश में जहरीले कफ सिरप के कारण 19 नहीं, बल्कि कुल मिलाकर 23 मौतें बताई जा रही हैं। सवाल साफ है, यह कैसे हुआ, किसने रोका, और अब क्या हो रहा है?

19 मासूमों की मौत: मध्य प्रदेश में जहरीले कफ सिरप का कहर

यह मामला सिर्फ एक जिले का नहीं है। यह नेटवर्क कई जिलों और अस्पतालों तक फैला दिखता है। सिरप, जिसे बच्चों की खांसी ठीक करनी थी, उनके लिए मौत का कारण बन गया। सबसे दुखद बात, इसे रोकने की जिम्मेदारी जिनकी थी, वही सोए रहे।

बच्चों की मौतों का आंकड़ा और प्रभावित इलाके

रिपोर्ट्स के मुताबिक, छिंदवाड़ा, बैतूल, नागपुर और पाडुना में मासूम बच्चों की जानें गईं। अभी भी कुछ बच्चे नागपुर के अस्पतालों में भर्ती हैं।

  • Chhindwara: कई बच्चों की मौतें रिपोर्ट हुईं।
  • Betul: अतिरिक्त मौतें और बीमार बच्चे।
  • Nagpur: कई केस, कुछ बच्चे अब भी भर्ती।
  • Paduna: प्रभावित क्षेत्रों में शामिल।

यह संख्या सिर्फ आंकड़ा नहीं, परिवारों का टूट जाना है। कुल 23 मौतें इस त्रासदी का पैमाना बताती हैं।

सरकारी अस्पतालों में इस्तेमाल और डॉक्टरों की भूमिका

यही सिरप खुले बाजार में उपलब्ध था। डॉक्टरों ने इसे लिख दिया। सरकारी अस्पतालों में इसका इस्तेमाल हुआ। किसी ने चेक नहीं किया कि घटिया, या खतरनाक केमिकल तो नहीं मिला। किसी को अंदेशा तक नहीं हुआ कि दवा के नाम पर जहर बांटा जा रहा है। यह सिस्टम की नाकामी है।

कंपनी की लापरवाही: जहर बेचने का खेल

यह दुर्घटना नहीं, एक सिलसिलेवार लापरवाही का नतीजा है। जांच में जो बातें सामने आईं, वे डराती हैं।

जहरीले केमिकल की खरीद और इस्तेमाल

जांच के दौरान कंपनी के मालिक ने मौखिक रूप से माना कि उन्होंने दो बार में 50 किलो के दो बैग, यानी कुल 100 किलो ज़हरीला केमिकल खरीदा। इसे दवा बनाने में उपयोग किया गया, जबकि यह केमिकल दवा में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए था।

गड़बड़ियां यहीं खत्म नहीं हुईं। खरीद के बिल नहीं मिले। खरीद की कोई एंट्री बुक में दर्ज नहीं मिली। भुगतान कभी कैश, कभी GPay से किया गया। यह साफ दिखाता है कि सब कुछ छुपाकर किया गया।

जांच रिपोर्ट के मुताबिक खरीद की यह प्रक्रिया कुछ यूं रही:

  1. 25 मार्च 2025 को चेन्नई की Sunrise Biotech से प्रोपिलीन ग्लाइकॉल खरीदा गया।
  2. यह नॉन फार्मास्यूटिकल ग्रेड का था, यानी दवाओं के लिए उपयुक्त नहीं था।
  3. शुद्धता की जांच नहीं हुई, DEG या EG की मात्रा का कोई टेस्ट नहीं हुआ।

यह तीन कदम ही बताने के लिए काफी हैं कि कंपनी ने बिना सुरक्षा और बिना नियम, उत्पादन किया और सीधे बाजार में बेच दिया।

सिरप में मौजूद घातक तत्व

लैब जांच में पाया गया कि सिरप में डायएथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की मौजूदगी तय सीमा से 486 गुना ज्यादा थी। यह आंकड़ा सिर्फ डर नहीं, खतरे की घंटी है। इतनी मात्रा, बच्चे तो दूर, एक बड़े जानवर की भी किडनी और ब्रेन को तबाह कर सकती है। इसलिए, यह मात्रा बच्चों के लिए घातक है।

इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात, कंपनी के सैंपल पहले भी कई बार फेल हो चुके थे। एक बार तो बैन भी लगा, फिर भी उसी तरह से उत्पाद बाजार में आ गए। मतलब पिछली गलतियों से कोई सबक नहीं लिया गया।

बाजार में बिक्री और निगरानी की कमी

कंपनी के पास केमिकल की खरीद के बिल नहीं थे, प्रयोग का रिकॉर्ड नहीं था, टेस्ट रिपोर्ट नहीं थीं। फिर भी सिरप खुलकर बेचा गया। डॉक्टरों ने प्रिस्क्राइब किया। सरकारी अस्पतालों तक पहुंच गया। यह कैसे संभव है, जब तक निगरानी करने वाले सो रहे हों, या अनदेखी कर रहे हों। यह पूरे सिस्टम की विफलता की गवाही देता है, और भ्रष्टाचार की बदबू सामने लाता है।

मुख्यमंत्री मोहन यादव की संवेदनहीन प्रतिक्रिया

यह हादसा सिर्फ प्रशासनिक मसला नहीं, मानवीय संवेदना का भी सवाल है। सबसे बड़ी निराशा उस वक्त हुई, जब मुख्यमंत्री से सवाल पूछे गए और प्रतिक्रियाओं में जिम्मेदारी की जगह झुंझलाहट नजर आई।

CM का विवादास्पद बयान

जब मीडिया ने पूछताछ की, तो जवाब में टालमटोल मिली। बयान सुनिए, जो पूरे मामले पर सरकार के रवैए का आईना है।

अरे भाई हो गई ना भाई। कल की बात अब आज मत लाओ उसको। आज की बात करो ना यार। मेरी बात तो सुनो भाई। तुम तो समझदार हो। मैंने कल आज वहां जाकर के जितनी प्रकार से हो सकता है वो सब कराएं। हम आज अपने पूरे दिन की बात करें।

यह बयान बताता है कि जवाबदेही से बचना कितना आसान हो गया है। लोगों की मौत पर सवाल उठे, तो गुस्सा दिखा दिया गया। “कल की बात अब आज मत लाओ” जैसे वाक्यों से कैसे काम चलेगा? लोग इलाज से ज्यादा न्याय चाहते हैं। निरीक्षण, कार्रवाई और जवाबदेही चाहते हैं।

पिछली घटनाओं से सबक न लेना

इसी राज्य में हाल ही में एक हादसा हुआ था, जिसमें 8 से 10 लोगों की जान गई। वहां पर पीड़ित परिवारों को चेक की जगह लिफाफों में स्वीकृति पत्र दिए गए। यह संवेदना नहीं, औपचारिकता लगती है। पैटर्न साफ है, मुख्यमंत्री जाते हैं, बयान आता है, फोटो बनती है, और फिर सब शांत। यह तरीका दर्द को, और गुस्से को, दोनों को बढ़ा देता है।

सरकार की कार्रवाई: बस दिखावा?
सरकार की तरफ से बयान आया कि बीमार बच्चों का इलाज हो रहा है। टीमों की तैनाती हुई है। लेकिन क्या यह काफी है, जब तक असली दोषी पकड़े न जाएं?

सरकार ने बताया कि छिंदवाड़ा और बैतूल के कई बीमार बच्चे नागपुर के अस्पतालों में भर्ती हैं। प्रशासन, दंडाधिकारी और डॉक्टरों की संयुक्त टीम तैनात की गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इलाज की समुचित व्यवस्था कराई जा रही है।

वर्तमान स्थिति इस तरह बताई गई:

  • छिंदवाड़ा और बैतूल के बीमार बच्चों का नागपुर में इलाज चल रहा है।
  • बैतूल के दो बच्चे अलग से निगरानी में हैं।
  • अस्पतालों में संयुक्त टीमें तैनात की गई हैं।
  • यह कदम जरूरी हैं, पर देरी और ढील के बिना।
    *परिवारों को सिर्फ इलाज नहीं, सच्चाई भी चाहिए।

SIT का गठन और संदेह

जांच के लिए एसआईटी बना दी गई है। लेकिन पिछले अनुभव कहते हैं कि रिपोर्ट आने में समय लगता है, और बड़े नाम गायब हो जाते हैं। कंपनी बच निकलती है, या छोटे कर्मचारियों पर ठीकरा फोड़ दिया जाता है। खासकर तब, जब खरीद के बिल, रिकॉर्ड और रसीदें पहले से गायब कर दी गई हों। फिर क्या बचेगा, जिस पर कार्रवाई हो सके?

ब्रिज गिर जाते हैं, जांच होती है, नतीजा नहीं आता। इस केस में भी लोग यही डर रख रहे हैं। असली जवाबदेही तय होगी या नहीं, यही सबसे बड़ा सवाल है।

सप्लाई चेन में छेद

गैर-मानक केमिकल की खरीद, वह भी बिना बिल।
भुगतान का तरीका संदिग्ध, कभी कैश, कभी GPay।
कोई थर्ड पार्टी टेस्ट नहीं, कोई बैच रिपोर्ट नहीं।
स्टॉक रजिस्टर और एंट्री बुक में रिकॉर्ड नहीं।
फार्मेसी और अस्पतालों तक बिना रोकथाम पहुंच।
जब तक हर बैच का अनिवार्य टेस्ट, QR ट्रेसिंग, और लाइसेंस निलंबन की कड़ी व्यवस्था नहीं होगी, ऐसे हादसे रुकेंगे नहीं।

रेगुलेटरी निगरानी पर सवाल

ड्रग इंस्पेक्शन कितनी बार हुआ? पहले फेल हुए सैंपल के बाद लाइसेंस क्यों बहाल हुए? सरकारी अस्पतालों की खरीद समिति ने बैच और टेस्ट रिपोर्ट क्यों नहीं मांगी? यह प्रश्न सिर्फ इस कंपनी तक सीमित नहीं हैं। यह पूरी दवा निगरानी प्रणाली पर सवाल हैं।

मीडिया सवालों पर गुस्सा क्यों, जवाब क्यों नहीं

जनता को भरोसा चाहिए कि सरकार उनके बच्चों की सुरक्षा कर सकती है। जब सत्ताधारी सवालों पर नाराज हों, तो संदेश गलत जाता है। परिवारों को सिर्फ सांत्वना नहीं, कार्रवाई चाहिए। दोषियों के नाम चाहिए। सप्लाई चेन में जो जुड़े हैं, उन पर केस चाहिए। नहीं तो लोग मान लेंगे कि सब कुछ सेटिंग से चलता है, और जांच महज औपचारिकता है।

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