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Bihar elections की बड़ी तस्वीर: कार्यकर्ताओं से Tejashwi का संदेश, चेहरा नहीं, लालटेन को जिताना है

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क्या इस बार बिहार चुनाव (Bihar elections) में वोट निशान पर पड़ेगा या चेहरों पर अटक जाएगा? आरजेडी नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का साफ संदेश है, चेहरा नहीं, लालटेन को जिताना है। उन्होंने खुद फोन कर जमीनी कार्यकर्ताओं से हालचाल लिया, टिकट की संभावनाओं पर राय सुनी, और चुनावी रणनीति पर साफ दिशा दी। यह स्टाइल अलग है, सीधा है, और कार्यकर्ताओं में जोश भरने वाला है। इस पोस्ट में वही बातचीत, उसके संकेत, और बिहार चुनाव की बड़ी तस्वीर समझिए।

तेजस्वी यादव का सीधे कार्यकर्ताओं तक पहुँचना

तेजस्वी यादव इन दिनों एक-एक कर सक्रिय कार्यकर्ताओं को फोन कर रहे हैं। जिला, विधानसभा, जातिगत समीकरण, विरोध का माहौल, सब पर सवाल पूछ रहे हैं। यह Tejashwi’s direct outreach है, जिसमें नेता दफ्तर की रिपोर्ट के बजाय अपने लोगों से सीधे बात कर रहा है।

दरभंगा का हाल: “सब ठीक चल छान”

एक कॉल दरभंगा के एक कार्यकर्ता को गया। शुरुआत में हालचाल पूछा गया, फिर माहौल पर बात हुई। जवाब साफ-साफ था, “सब ठीक चल छान।” कार्यकर्ता ने भरोसा दिलाया कि पूरा सहयोग मिलेगा और महागठबंधन को हर हाल में जीताना है, लोभ या निजी फायदे से नहीं।

  • माहौल सकारात्मक बताया गया
  • पूर्ण सहयोग का आश्वासन
  • लक्ष्य सरकार बनाना, स्वार्थ नहीं

यह कार्यकर्ता दरभंगा का रहने वाला बताया जा रहा है और आरजेडी के पक्ष में हवा बनाने में सक्रिय है। बातचीत का टोन आत्मविश्वासी था, और संगठन की एकजुटता पर जोर भी साफ दिखा।

सरकार की खामियाँ और बदलाव का वादा

फोन कॉल में तेजस्वी ने मौजूदा हालात पर सीधे सवाल उठाए। कार्यकर्ता से पूछा कि भ्रष्टाचार, अपराध और प्रशासनिक अव्यवस्था कितनी बढ़ी है। जवाबों में स्थानीय पीड़ा का रंग था।

  • भ्रष्टाचार बढ़ा है
  • अपराध और लूट मार की घटनाएँ हर जगह दिखती हैं
  • ब्लॉक स्तर पर भी पैसे की माँग की शिकायतें
  • तानाशाही जैसी कार्यशैली की चर्चा
  • महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी में तेज इजाफा

तेजस्वी ने एक पुरानी घटना भी याद दिलाई, जाले क्षेत्र में एक अतिपिछड़ा समुदाय के पत्रकार की पिटाई के मामले में उन्होंने पहुँचकर एफआईआर करवाने की बात कही। इससे उनका संदेश निकला कि मुद्दों पर वे साथ खड़े हैं, और अत्याचार पर चुप नहीं बैठेंगे।

बात केवल सवालों तक नहीं रही। उन्होंने विजन भी रखा, कि अगर उनकी सरकार बनी तो “कोई ऐसा घर नहीं बचेगा जहां नौकरी, रोजगार नहीं।” यह बड़ा वादा है, और बेरोजगारी से जूझती युवाओं की भीड़ के लिए सीधा संदेश है। कार्यकर्ता का जवाब भी भरोसे वाला था, “सरकार बन जाए तो सब हो जाएगा।” इस भरोसे को कैश कैसे किया जाए, यही चुनावी चुनौती है।

इसके बीच उन्होंने यह भी पूछा कि उनके लायक कोई ऐसा काम हो जो रह गया हो, बताइए। यह पूछना छोटा लगता है, पर संगठन के लिए यही बड़े संकेत होते हैं। नेता उपलब्ध है, सुनने को तैयार है, और काम पर फॉलो अप भी करेगा।

चुनावी चालों पर चेतावनी और मूल अपील

बातचीत का एक अहम हिस्सा चेतावनी थी। चुनाव के समय नोट के बदले वोट की कोशिशों पर उन्होंने कार्यकर्ताओं को अलर्ट रहने को कहा। यह जमीनी हकीकत है, और संगठन को पहले से सतर्क करना जरूरी भी।

  • Stay alert and inform others, यही संदेश था
  • अपने साथियों को भी सतर्क रखने को कहा गया
  • लेनदेन की हर कोशिश पर चौकन्ना रहने की बात

साथ ही उन्होंने बार-बार मूल अपील दोहराई, चेहरा नहीं, निशान देखिए। महागठबंधन जहां भी मैदान में हो, वहां गठबंधन को जिताइए। इसे उन्होंने बहुत सरल तरीके से तीन बिंदुओं में बाँध दिया।

  1. चेहरा छोड़िए, लालटेन पर वोट दीजिए
  2. सरकार बनाने के लिए एकजुट रहिए
  3. महागठबंधन का पूरा साथ दीजिए

यह लाइन पार्टी कैडर के लिए दिशा है और वोटरों तक सिग्नल भी। उम्मीदवार के चयन पर बहसें चलती रहती हैं, पर प्रतीक और गठबंधन के नाम पर वोट कंसोलिडेशन चुनावी गणित में निर्णायक बन सकता है।

मैथिल समाज के कार्यकर्ता से संवाद और टिकट पर चर्चा

एक और कॉल मैथिल समाज से जुड़े कार्यकर्ता को गया। औपचारिक पहचान के बाद सीट और स्थानीय समीकरण पर विस्तृत बातचीत हुई। कार्यकर्ता ने साफ सुझाव दिया, अगर इस बार विनोद जी या मिश्रा जी को टिकट मिलता है तो जीत की संभावना बढ़ेगी। तर्क में जातिगत समीकरण, स्थानीय प्रभाव और जनस्वीकार्यता शामिल थी।

यह भी सामने आया कि पिछली बार हिंदू मुस्लिम तनाव वाला माहौल बना था, पर इस बार ब्राह्मण मतदाताओं का एक हिस्सा साथ आ सकता है, बशर्ते उम्मीदवार चयन उनके अनुरूप हो। कार्यकर्ता ने कहा कि वे खुद घूमकर इस समर्थन को मजबूत करेंगे।

तेजस्वी का जवाब संयमित था। उन्होंने कहा कि सर्वे कराए जा रहे हैं, जिन नेताओं के खिलाफ जनता में नाराजगी दिखेगी, उन्हें उसी के मुताबिक हैंडल करेंगे। टिकट किसे और कहां से देना है, यह सर्वे आधारित और रणनीतिक निर्णय होगा। यह स्पष्ट संकेत है कि चयन प्रक्रिया केंद्रीकृत भी है और डेटा आधारित भी, जिसका मकसद जीतने की संभावना बढ़ाना है।

कार्यकर्ताओं का जोश और कनेक्टिविटी का असर

इन कॉल्स की चर्चा संगठन में तेजी से फैल रही है। कई कार्यकर्ता कह रहे हैं कि अगर वे अच्छा काम करेंगे तो शायद उन्हें भी कॉल आए, राय ली जाए, सुझाव सुने जाएँ। यह भावना अपने आप में प्रेरक है। बातचीत, हालचाल, फीडबैक, सब मिलकर एक भरोसे का माहौल बना रहे हैं।

  • कार्यकर्ता महसूस कर रहे हैं कि उनकी मेहनत देखी जा रही है
  • जमीनी स्थिति पर सीधा फीडबैक मांगने से निर्णय सटीक हो सकते हैं
  • Rising josh संगठन के लिए फायदा देता है।

Bihar elections की बड़ी तस्वीर: मुकाबला कड़ा, दांव ऊँचा

बिहार में चुनाव दो चरणों में होना है। कुल 243 सीटें दांव पर हैं। कार्यक्रम इस प्रकार है:

पहला चरण: 6 नवंबर
दूसरा चरण: 11 नवंबर
मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों के बीच है। एक तरफ महागठबंधन है, जिसमें आरजेडी, कांग्रेस, मुकेश सहनी की पार्टी और कुछ अन्य साथी शामिल हैं। दूसरी तरफ एनडीए है, जिसमें जेडीयू और भाजपा के साथ लोजपा (चिराग पासवान), जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे साथी शामिल हैं।

कहानी सीधी है, पर रास्ता कठिन। महागठबंधन अपनी एकजुटता, यात्राओं और सरकार पर तेज हमलों के सहारे बढ़त लेना चाहता है। एनडीए अपने संगठित कैडर, सत्ता का अनुभव और स्थापित नेटवर्क पर भरोसा कर रहा है। चुनावी जमीन पर यह मुकाबला कांटे की टक्कर का लग रहा है।

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