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Bihar की राजनीति में तगड़ी हलचल, सूरजभान सिंह का इस्तीफा
बिहार (Bihar) की राजनीति में फिर से तगड़ी हलचल मच गई है। केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की पार्टी—राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी—में कुछ ऐसा हुआ कि सबकी नींद उड़ गई। पार्टी के दिग्गज, सूरजभान सिंह (भूतपूर्व सांसद, काफी तगड़ा नाम है), उन्होंने पार्टी के सारे पदों से फटाफट इस्तीफा दे दिया। चुनाव से ऐन पहले ये पारस गुट के लिए सीधी चोट है। और अब, चाय की दुकानों से लेकर बड़े-बड़े राजनीतिक गलियारों तक, हर जगह ये चर्चा है कि सूरजभान सिंह जल्द ही लालू यादव की पार्टी यानी RJD में छलांग लगा सकते हैं। पारस के लिए ये तो जैसे डबल झटका हो गया है, खासकर तब, जब उनकी पार्टी चुनावी जोड़-तोड़ में लगी हुई है।
अब देखो, सूरजभान सिंह के इस्तीफे के बाद बिहार की राजनीति में नया मसालेदार मोड़ आ गया। उनके RJD में जाने की अटकलें जोरों पर हैं। लोगों की बातों में बस यही गूंज रहा है। और ये भी खबर उड़ रही है कि उनकी पत्नी वीणा देवी, जो खुद भी कभी सांसद रह चुकीं, उन्हें राजद मोकामा सीट से टिकट थमा सकता है। मोकामा में मुकाबला—अनंत सिंह से—मतलब राजनीतिक गहमागहमी तय है। वहीं, सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह को भी राजद से टिकट मिलने की चर्चा है। एक ही परिवार के तीन-तीन लोग—राजनीति का असली खेल यही है भाई!
राजद ने पारस को ऑफर दिया था
अब पारस और राजद के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर जो बातचीत चल रही थी, वो भी औंधे मुंह गिर गई। अंदरखाने की सुनो, राजद ने पारस को ऑफर दिया था—पार्टी का विलय कर दो, तीन सीटें मिल जाएंगी। पारस बोले—ना बाबा ना, ये डील मंजूर नहीं। बातचीत वहीं खत्म। अब पारस की नजर बहुजन समाज पार्टी (BSP) और ओवैसी की AIMIM पर है। हो सकता है, इन दोनों के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरें। कौन किसके साथ जाएगा, कुछ कह नहीं सकते।
अगर पारस का गुट बसपा और AIMIM के साथ मिल गया, तो महागठबंधन (यानी राजद-गठबंधन) की नींद उड़ना तय है। पारस गुट के पास दलित और पासवान वोट बैंक है, जो कई इलाकों में गेमचेंजर साबित हो सकता है। इन नए समीकरणों से उन क्षेत्रों में महागठबंधन के वोटों की गणित बिगड़ सकती है, जहां पारस के समर्थक मजबूत हैं। दूसरी तरफ, सूरजभान सिंह का परिवार अगर सच में राजद में चला गया, तो मोकामा और आस-पास की सीटों पर राजद की ताकत बढ़ जाएगी। कुल मिलाकर, बिहार की राजनीति एक बार फिर से तगड़ी करवट ले रही है—किसका ऊंट किस करवट बैठेगा, ये तो वक्त ही बताएगा!
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