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JDU में इस्तीफों का सिलसिला: सीट शेयरिंग पर नीतीश कुमार की पार्टी में भारी संकट
नीतीश कुमार की पार्टी JDU में क्या हो रहा है? हाल ही में बिहार की राजनीति में बड़ा हलचल मचा है। जेडीयू के कई नेता इस्तीफा दे चुके हैं। यह सब सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर असंतोष से जुड़ा है। पार्टी के अंदर घुटन बढ़ रही है। औरंगाबाद जिले की पूरी कमेटी ने एक साथ इस्तीफा दिया। इससे एनडीए गठबंधन की नींव हिल गई है। क्या यह संकट नीतीश कुमार के लिए खतरे की घंटी है? आइए देखते हैं पूरी कहानी।
सीट बंटवारे का फार्मूला: इस्तीफों की मुख्य वजह
जिला स्तर पर संगठनात्मक ढांचे का टूटना
जेडीयू में इस्तीफों का दौर चल रहा है। महासचिवों ने छोड़ा। विधायकों ने भी इस्तीफा दिया। सांसदों ने अलग रास्ता चुना। यह सिर्फ एक-दो लोगों की नाराजगी नहीं। पूरा संगठन कमजोर पड़ रहा है। सीट शेयरिंग का फैसला सबको चुभ गया। नेता सोचते हैं कि उनकी मेहनत बेकार जा रही है। जिला स्तर पर यह दरार साफ दिखाई देती है। पार्टी कार्यकर्ता निराश हैं। वे कहते हैं कि ऊपर से फैसले थोपे जाते हैं। इससे जमीनी स्तर पर काम रुक गया। कई जगहों पर मीटिंग्स रद्द हो गईं। यह पैटर्न पूरे बिहार में फैल सकता है।
औरंगाबाद जिला कमेटी का सामूहिक इस्तीफा: एक निर्णायक मोड़
औरंगाबाद जिले में बड़ा झटका लगा। रफीगंज सीट पर एलजेपी नेता को टिकट मिला। जेडीयू के जिला अध्यक्ष नाराज हो गए। पूरी जिला कमेटी ने इस्तीफा दे दिया। यह सामूहिक कदम था। पदाधिकारी कहते हैं कि यह अन्याय है। उनकी सीट छीनी गई। एलजेपी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा। जिला अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी की साख दांव पर है। अब कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। प्रोटेस्ट हो रहे हैं। यह घटना एक मिसाल बनी। अन्य जिलों के नेता भी सतर्क हो गए। क्या यह विद्रोह की शुरुआत है?
राष्ट्रीय नेतृत्व पर संभावित राजनीतिक प्रभाव
यह कलह एनडीए को नुकसान पहुंचा रहा है। गठबंधन में तनाव बढ़ा। सीट बंटवारे पर बातें लंबी हो गईं। नीतीश कुमार पर दबाव है। वे पलटी मारने की अटकलों में फंसे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को असमंजस है। क्या जेडीयू टूटेगी? नेता कहते हैं कि यह गठबंधन के लिए खतरा है। बिहार चुनाव नजदीक हैं। वोट बैंक बंट सकता है। विपक्ष मजबूत हो रहा है। आरजेडी वाले हंस रहे हैं। जेडीयू को अपनी एकजुटता साबित करनी होगी।
नेतृत्व परिवर्तन और आंतरिक प्रतिक्रिया
नए कार्यकारी जिलाध्यक्ष की नियुक्ति: स्थिति को संभालने का प्रयास
पार्टी ने जल्दी कदम उठाया। धर्मेंद्र कुमार सिंह को कार्यकारी जिला अध्यक्ष बनाया। वे पूर्व अध्यक्ष हैं। उनका अनुभव काम आएगा। यह नियुक्ति औरंगाबाद में शांति लाने की कोशिश है। सिंह ने कहा कि वे सबको जोड़ेंगे। मीटिंग्स शुरू हो गईं। लेकिन पुरानी कमेटी के लोग संतुष्ट नहीं। वे कहते हैं कि यह सिर्फ भरपाई है। असली समस्या हल नहीं हुई। फिर भी पार्टी आलाकमान सक्रिय है। दिल्ली से निर्देश आ रहे हैं।
चुनाव से ठीक पहले संगठनात्मक इस्तीफों का रणनीतिक महत्व
चुनाव करीब हैं। ऐसे में इस्तीफा बड़ा झटका है। मनोबल गिर गया। कार्यकर्ता सोच रहे हैं कि क्या करें। जमीनी तैयारी रुकी। रैलियां प्रभावित होंगी। विपक्ष को फायदा मिलेगा। नीतीश कुमार को सोचना पड़ेगा। सीट शेयरिंग का फॉर्मूला बदलना मुश्किल है। लेकिन असंतोष दबाना जरूरी। यह समय रणनीति का है। पार्टी को मजबूत बनाना होगा। अन्यथा हार निश्चित।
संभावित दीर्घकालिक नुकसान: NDA के लिए चुनौती
सत्ता विरोधी लहर बनाम आंतरिक असंतोष का प्रभाव
ये इस्तीफे सिर्फ नाराजगी नहीं। बड़ा बदलाव का संकेत हैं। सत्ता विरोधी लहर मजबूत हो रही। लोग कहते हैं कि एनडीए में भेदभाव है। जेडीयू को कम सीटें मिलीं। एलजेपी जैसे छोटे साथी फायदे में। यह असंतुलन शक्ति बदल सकता है। बिहार में वोटर नाराज हैं। क्या नीतीश कुमार का कद घटेगा? एनडीए को नुकसान होगा। लंबे समय में गठबंधन कमजोर पड़ेगा। विपक्ष इसका इस्तेमाल करेगा।
अन्य जिलों में गूंजती इस्तीफे की संभावना
औरंगाबाद की घटना फैल रही। अन्य जिलों में असंतोष उबल रहा। पटना, मुजफ्फरपुर में बातें हो रही। नेता सोच रहे कि वे भी इस्तीफा दें। यह चेन रिएक्शन हो सकता। पार्टी को सतर्क रहना चाहिए। मीटिंग्स बढ़ानी होंगी। नीतीश कुमार को व्यक्तिगत अपील करनी पड़ेगी। क्या यह रोक पाएंगे? संभावना कम है। उत्प्रेरक बन गई यह घटना।
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