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2025 Bihar Elections: सीमांचल की 53 निर्णायक सीटों पर मुस्लिम वोटर का प्रभाव

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बिहार में मुसलमानों का वोट हमेशा से चुनाव का बड़ा फैक्टर रहा है। अब 2025 बिहार चुनाव (2025 Bihar Elections) नजदीक आ रहे हैं। महागठबंधन पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने मुसलमानों को सही सम्मान नहीं दिया। बीजेपी के नेता पूछ रहे हैं कि मुस्लिम वोट लेने वाली पार्टियां उनके हक के लिए क्या कर चुकीं? चिराग पासवान कहते हैं कि उनके पिता ने मुस्लिम मुख्यमंत्री के नाम पर गठबंधन तोड़ा था। ये दावा बहस को गर्म कर रहा है। मुसलमान जो पार्टियों को अपना भविष्य मानते हैं, वे वादे निभाती नहीं दिखतीं। लेकिन सीमांचल के इलाकों में 21% से 68% तक मुस्लिम आबादी वाले जिलों पर नजर डालें। यहां 53 सीटें हैं जो सरकार बना सकती हैं। 2020 में एनडीए ने इन्हें हावी था। अब सवाल ये है कि ये वोट किसके साथ जाएंगे?

बिहार के मुस्लिम मतदाताओं की बदलती भूमिका

महागठबंधन पर ये इल्जाम है कि उन्होंने मुसलमानों के साथ वादाखिलाफी की। बीजेपी कहती है कि वोट लेने के बाद कुछ नहीं किया। चिराग पासवान का दावा जोर पकड़ रहा है। वे बताते हैं कि उनके पिता राम विलास पासवान ने मुस्लिम लीडरशिप के नाम पर गठबंधन छोड़ा था। ये बात मुस्लिम वोटरों को सोचने पर मजबूर कर रही है। पार्टियां वोट मांगती हैं लेकिन हक नहीं देतीं। 2025 में ये बहस और तेज हो जाएगी। मुसलमानों का भरोसा टूटा है या बदलेगा?

मुस्लिम आबादी का चुनावी महत्व (21% से 68%)

2025 के चुनाव में मुस्लिम वोट निर्णायक साबित होंगे। सीमांचल और आसपास के जिलों में ये आबादी बहुमत में है। किशनगंज जैसे जगह पर 68% मुसलमान रहते हैं। सवाल ये है कि पारंपरिक सहयोगी उन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं तो वोट कहां जाएगा? एनडीए और महागठबंधन दोनों दबाव में हैं। लोकसभा चुनाव में वोट बंटे थे। अब विधानसभा में ये एकजुट हो सकते हैं या बंटेंगे? ये आबादी सरकार बदल सकती है। बिहार की सियासत इन्हीं पर टिकी है।

सत्ता का केंद्र: सात महत्वपूर्ण जिले

बिहार के सात जिलों पर फोकस करें जहां मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है। ये हैं कटिहार, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, दरभंगा, सीतामढ़ी और पूर्वी चंपारण। यहां कुल 53 विधानसभा सीटें हैं। किशनगंज में मुस्लिम आबादी 68% है। कटिहार में 63%, अररिया में 41%, पूर्णिया में 37%। दरभंगा में 33%, पूर्वी चंपारण में 22% और सीतामढ़ी में 21%। ये आंकड़े चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं। इन जिलों की सीटें सरकार बनाने में अहम हैं। मुस्लिम वोट यहां से ही रुख तय करता है।

2020 चुनाव का आधार: एनडीए की मजबूत पकड़

2020 में इन 53 सीटों पर एनडीए ने करीब 36 जीतीं। महागठबंधन को 12 मिलीं। एआईएमआईएम को 5 सीटें हाथ लगीं लेकिन बाद में कुछ कट गईं। जीत-हार का अंतर कई जगह बहुत कम था। 24 सीटों पर ये 10,639 वोटों से कम रहा। ये दिखाता है कि थोड़ा सा बदलाव सब उलट सकता है। एनडीए ने मुस्लिम बहुल इलाकों में भी मजबूती दिखाई। महागठबंधन को झटका लगा। अब 2025 में ये संतुलन बिगड़ सकता है। वोटरों का रुझान बदलेगा तो नतीजे चौंकाएंगे।

सीमांचल का निर्णायक रोल (चार जिले)

सीमांचल के चार जिलों – कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज – में 24 विधानसभा सीटें हैं। ये इलाके सरकार बनाने वाले हैं। 2020 में एनडीए ने यहां 18 सीटें लीं। महागठबंधन को 5 और एआईएमआईएम को 1 मिली। वीआईपी पार्टी तब एनडीए के साथ थी। अब वो महागठबंधन में है। ये बदलाव असर डालेगा। सीमांचल के वोट हमेशा गठबंधन को मजबूत बनाते हैं। 2025 में दबाव इन्हीं पर है। मुस्लिम वोट यहां से ही फैसला होगा।

2020 की सीट-विशेष प्रदर्शन और अंतर

कई सीटें बहुत कम वोटों से फैसली हुईं। प्राणपुर में बीजेपी ने जीत हासिल की। हायाघाट में भी बीजेपी आगे रही। कटिहार में 10,000 से ज्यादा वोटों का फासला था लेकिन कई जगह कम। कोचाधामन में बीजेपी जीती। ढाका, परिहार, मधुबन, पिपरा और दरभंगा में भी एनडीए की जीत हुई। मुस्लिम बहुल इलाकों में एनडीए ने एंटी-एनडीए सेंटिमेंट को तोड़ा। जीत का अंतर 11,000 वोटों के आसपास रहा। ये सीटें 2025 में फिर उलट सकती हैं। थोड़ी सीजुटता सब बदल देगी।

एआईएमआईएम और महागठबंधन का 2020 प्रदर्शन

एआईएमआईएम ने 5 सीटें जीतीं। जौकीहाट जैसी जगह पर उनका दबदबा दिखा। महागठबंधन की जीतें सुगौली, कल्याणपुर, बैसी, दरभंगा ग्रामीण और किशनगंज में हुईं। राजद ने अलीनगर, गडापड़ाम जैसी सीटें लीं। वीआईपी के उम्मीदवार एनडीए के साथ लड़े थे। अब उनका साथ महागठबंधन को मिला है। ये शिफ्ट क्लोज कांटेस्ट में फायदा दे सकता है। ओवैसी एक फैक्टर बने थे। मुस्लिम वोटरों ने नया विकल्प चुना। 2020 के नतीजे ने सबको चौंकाया।

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