Vimarsh News
Khabro Me Aage, Khabro k Pichhe

Madhya Pradesh कफ सिरप त्रासदी: दिग्विजय सिंह का BJP पर चुनावी चंदे का गंभीर आरोप

madhya pradesh cough syrup tragedy 20251026 151411 0000
0 279

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के परासिया इलाके में एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। यहां 26 मासूम बच्चों की जान चली गई क्योंकि उन्होंने जहरीला कफ सिरप पी लिया। ये सिरप ऐसा था जो बच्चों को ठंड लगने पर दिया जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बीजेपी सरकार पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि सरकार दवा कंपनियों पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही? वजह ये कंपनियां चुनाव में बीजेपी को पैसे देती हैं। ये आरोप सुनकर लोग सवाल उठा रहे हैं। क्या बच्चों की जान से ज्यादा चुनावी चंदा मायने रखता है?

परासिया में मौतों का चौंकाने चौंकाने वाला आंकड़ा और रासायनिक विसंगति

इस त्रासदी ने मध्य प्रदेश को हिलाकर रख दिया। परासिया एक छोटा सा शहर है जहां परिवारों पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। 2 सितंबर से अब तक ये मौतें हुईं। हर मौत एक कहानी है जो दर्द से भरी है।

2 सितंबर से अब तक हुई मौतों का विवरण

सब कुछ 2 सितंबर को शुरू हुआ। एक बच्चा बीमार पड़ा तो उसे कफ सिरप दिया गया। धीरे-धीरे और बच्चे बीमार होने लगे। अब तक 26 बच्चों की जान जा चुकी है। ये संख्या सिर्फ आंकड़े नहीं हैं बल्कि खोई हुई जिंदगियां हैं। परिवार रो रहे हैं। डॉक्टर कहते हैं कि सिरप में कुछ गड़बड़ थी। जांच चल रही है लेकिन समय बीत रहा है।

डायएथिलीन ग्लाइकॉल की खतरनाक मात्रा

कफ सिरप की जांच में बड़ा राज खुला। इसमें डायएथिलीन ग्लाइकॉल नाम का रसायन 48.6 प्रतिशत मिला। ये रसायन जहरीला है। सुरक्षित मात्रा सिर्फ 0.01 प्रतिशत होनी चाहिए। इतना ज्यादा रसायन शरीर को जहर की तरह मारता है। बच्चे कमजोर होते हैं इसलिए असर जल्दी होता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ये ब्रेकफ्लूइड जैसा है जो गाड़ियों में इस्तेमाल होता है।

जानलेवा मिश्रण का संभावित स्रोत

ये सिरप कफ के लिए बनाया गया था। लेकिन कुछ जगहों पर इसे कोल्ड ड्रिंक की तरह भी बेचा गया। दवा कंपनी ने सस्ता रसायन मिला दिया। शायद उत्पादन में लापरवाही हुई। बाजार में ये आसानी से मिल जाता था। दुकानदारों को पता ही नहीं था। अब सवाल ये है कि गुणवत्ता जांच कहां थी?

दिग्विजय सिंह का बीजेपी सरकार पर सीधा हमला: ‘चंदा’ बनाम जनहानि

दिग्विजय सिंह ने भोपाल में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। वहां उन्होंने बीजेपी को कठोर शब्दों में ललकारा। ये सिर्फ राजनीति नहीं बल्कि बच्चों की मौत पर सवाल है। सिंह ने कहा कि सरकार सो रही है।

दवा कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई न करने का आरोप

सिंह का कहना है कि दवा कंपनियां लोगों की जान से खेल रही हैं। फिर भी सरकार चुप है। कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं? कंपनियां फटकार तक नहीं खा रही। ये सिरप बाजार में महीनों रहा। कोई अलर्ट क्यों नहीं? सिंह ने उदाहरण दिया कि पहले भी ऐसे मामले हुए लेकिन कुछ नहीं बदला।

चुनावी चंदा और कथित मिलीभगत का सिद्धांत

सबसे बड़ा आरोप ये है। कंपनियां बीजेपी को चुनावी चंदा देती हैं। इसलिए सरकार आंखें बंद कर लेती है। चंदा आता है तो कार्रवाई रुक जाती है। सिंह ने कहा कि ये मिलीभगत है। जनता का पैसा और जीवन दांव पर है। क्या ये सच है? लोग सोच रहे हैं।

स्वास्थ्य मंत्री से पद छोड़ने की मांग

सिंह ने स्वास्थ्य मंत्री से सीधा सवाल किया। अगर जांच साबित कर दे कि सिरप में जहर था तो क्या आप इस्तीफा देंगे? मंत्री चुप हैं। पद पर बने रहना सही है? ये सवाल पूरे सिस्टम पर है। सिंह ने कहा कि जवाबदेही जरूरी है।

जन स्वास्थ्य सुरक्षा में सरकारी जवाबदेही पर सवाल

सरकार का क्या काम है? लोगों को सुरक्षित रखना। लेकिन यहां विफलता दिखी। दवाओं की जांच कमजोर है। परासिया जैसी घटना क्यों हुई?

दवाओं के गुणवत्ता नियंत्रण (QC) की नियामक विफलताएं

भारत में दवा नियंत्रक (DCGI) है। राज्य स्तर पर भी अधिकारी हैं। लेकिन ये सिरप कैसे पास हो गया? लैब टेस्ट नकली थे शायद। निरीक्षण साल में एक बार होता है। कंपनियां चालाकी कर जाती हैं। बच्चों के लिए दवाओं पर ज्यादा सख्ती होनी चाहिए।

राजनीतिक दबाव बनाम सार्वजनिक हित

राजनीति स्वास्थ्य को दबा रही है। चंदा लेने वाले नेता कार्रवाई टालते हैं। सार्वजनिक हित पीछे छूट जाता है। उदाहरण लो तो पहले भी किडनी दवाओं में जहर मिला था। तब भी वादे हुए लेकिन बदलाव नहीं। अब समय है सोचने का।

आगे की राह: ऐसी त्रासदी को रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए

ये घटना सबक है। अब बदलाव लाना होगा। सिर्फ बातें नहीं बल्कि कदम उठाओ। बच्चे मरने नहीं चाहिए।

दवा निर्माताओं के लिए ऑडिटिंग प्रक्रिया को सख्त बनाना

निर्माताओं की जांच हर तीन महीने करो। अचानक छापे मारो। खासकर बच्चों की दवाओं पर। लैब में सैंपल तुरंत टेस्ट हो। अगर गड़बड़ी तो फैक्ट्री बंद। ये तरीका काम करेगा।

सैंपल लेने की प्रक्रिया तेज करो।
कर्मचारियों को ट्रेनिंग दो।
सजा सख्त बनाओ ताकि डर लगे।
पारदर्शिता और त्वरित न्यायिक जांच की आवश्यकता

स्वतंत्र कमिटी बनाओ। राजनीति से दूर रखो। जांच का डेटा सबको दिखाओ। पीड़ित परिवारों को न्याय दो। कोर्ट में तेज सुनवाई हो।

रिपोर्ट 30 दिनों में तैयार।
दोषियों को सजा।
नए कानून लाओ गुणवत्ता के लिए।

इसे भी पढ़ें – वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास को ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’, पत्रकारिता में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मान

Leave a comment