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Rahul Gandhi का हल्ला बोल: Bihar में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर BJP-JDU सरकार पर हमला

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क्या आपने कभी सोचा है कि बिहार के युवा क्यों इतने निराश हैं? राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली जो सीधे बीजेपी-जेडीयू सरकार को निशाना बनाती है। उन्होंने बिहार के युवाओं से बातचीत के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की बदहाली पर जोर दिया। ये मुद्दे सिर्फ आंकड़े नहीं हैं। ये बिहार की सच्चाई हैं जो युवाओं के सपनों को कुचल रही हैं। आइए देखें राहुल गांधी के बयान ने क्या हंगामा मचाया है।

बिहार के युवाओं की आवाज बने राहुल गांधी

राहुल गांधी ने कुछ दिनों पहले बिहार के युवाओं से बात की। मुख्य बातें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर रहीं। उन्होंने कहा कि राज्य में इन क्षेत्रों की हालत खराब है। बीजेपी-जेडीयू सरकार ही इसके लिए जिम्मेदार है। ये बयान बिहार चुनाव से पहले आया है। इसलिए इसका राजनीतिक असर बड़ा है। युवा वर्ग राहुल की बात से जुड़ाव महसूस कर रहा है। क्योंकि ये उनकी रोजमर्रा की परेशानियां हैं।

राहुल ने युवाओं की आकांक्षाओं पर फोकस किया। उन्होंने बताया कि कैसे सरकार ने इन्हें दबाया है। बिहार के लोग अब जागरूक हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनके पोस्ट को लाखों ने देखा। ये सिर्फ राजनीति नहीं। ये बिहार के भविष्य का सवाल है।

बीजेपी-जेडीयू सरकार पर सीधा आरोप: 20 साल का हिसाब

राहुल गांधी ने साफ कहा। पिछले 20 सालों में मोदी-नीतीश सरकार ने बिहार को लावारिस छोड़ दिया। युवाओं के सपनों का गला घोंटा है। राज्य हर पैमाने पर नीचे गिरा है। उन्होंने आंकड़े शेयर किए जो ये साबित करते हैं। सरकार के दावे खोखले हैं। युवा जानते हैं सच्चाई क्या है।

ये आरोप गंभीर हैं। सरकार ने विकास का वादा किया था। लेकिन हकीकत अलग है। राहुल का हमला सीधा केंद्र पर भी है। डबल इंजन सरकार की पोल खोल दी। बिहार के लोग अब हिसाब मांग रहे हैं। क्या सरकार जवाब देगी?

बिहार की दुर्दशा: शिक्षा के पैमाने पर गिरावट का विश्लेषण

राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर शिक्षा के आंकड़े पोस्ट किए। इनमें बिहार की रैंकिंग बहुत नीचे दिखाई गई। देश में शिक्षा के मामले में बिहार सबसे पीछे है। स्कूलों की संख्या कम है। गुणवत्ता भी घटिया। युवा पढ़ाई के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर हैं।

ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं। ये हजारों बच्चों का भविष्य बिगाड़ रहे हैं। राहुल ने कहा ये गिरावट पिछले 20 सालों की देन है। सरकार ने निवेश नहीं किया। परिणामस्वरूप बिहार शिक्षा सूचकांक में अंतिम पंक्ति में है।

  • बिहार में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से 10% कम।
  • सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी 30% से ज्यादा।
  • उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को बाहर जाना पड़ता है।
  • सरकारों की नीतिगत विफलताएं और परिणाम

सरकार ने शिक्षा पर बजट कम रखा। बुनियादी ढांचा कमजोर है। कक्षाओं में किताबें तक नहीं पहुंचतीं। ये नीतियां विफल साबित हुईं। युवाओं को मौके नहीं मिले। राहुल गांधी ने इन्हें आईना बताया।

परिणाम देखिए। बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। लड़कियों की शिक्षा सबसे ज्यादा प्रभावित। सरकार के बड़े-बड़े प्लान कागजों में ही रह गए। क्या ये प्रगति है? बिहार को ऊपर उठाने की जरूरत है। लेकिन सरकार सो रही है।

रोजगार का संकट: बिहार के युवाओं का गला घोंटती नीतियां

राहुल ने रोजगार के आंकड़े शेयर किए। बिहार में बेरोजगारी दर 15% से ऊपर है। सरकारी नौकरियां कम हैं। युवा इंतजार कर रहे। लेकिन मौके नहीं आते। ये आंकड़े मोदी-नीतीश सरकार की नाकामी दिखाते हैं।

जमीनी हकीकत और भी खराब। फैक्टरियां बंद पड़ी हैं। नई इंडस्ट्री नहीं लगी। युवा दिल्ली, मुंबई भाग रहे। राहुल ने कहा ये गला घोंटने वाली नीतियां हैं। सरकार के वादे झूठे साबित हुए।

  • बेरोजगारी में बिहार टॉप 5 राज्यों में।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में काम के दिन 100 से कम सालाना।
  • आईटी सेक्टर में बिहार का योगदान न के बराबर।

‘लावारिस’ प्रदेश का आरोप और युवाओं का पलायन

राहुल ने बिहार को लावारिस कहा। क्योंकि रोजगार नहीं है। युवा पलायन कर रहे। परिवार बिखर गए। राज्य खाली हो रहा। ये आरोप सही लगते हैं। सरकार ने प्लानिंग नहीं की। परिणाम युवाओं का दर्द है।

पलायन से अर्थव्यवस्था कमजोर। पैसा बाहर जा रहा। बिहार को रोकना होगा। राहुल की बात युवाओं को छू गई। वे बदलाव चाहते हैं। सरकार सुनेगी तो अच्छा।

स्वास्थ्य सेवा का आईना: आंकड़ों में उजागर होती

स्वास्थ्य के आंकड़े भी राहुल ने पोस्ट किए। बिहार में शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर कम। दवाएं उपलब्ध नहीं। ये रैंकिंग देश में सबसे नीचे। युवा और बच्चे प्रभावित हो रहे।

राहुल ने कहा ये सिर्फ आंकड़े नहीं। ये सच्चाई है। सरकार ने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया। परिणाम विनाशकारी। बिहार स्वास्थ्य सूचकांक में पीछे।

  • शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से दोगुनी।
  • अस्पताल बेड प्रति हजार में सिर्फ 0.5।
  • महामारी में व्यवस्था लड़खड़ा गई।

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