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Bihar chunav: सवाल के घेरे में Election Commission: NDA दे रहा रिश्वत, आचार संहिता पर सवाल
बिहार (Bihar) में चुनाव (Chunav) का मौसम आ गया है। सरकार ने ठीक इसी वक्त महिलाओं के खातों में ₹10000 डाले हैं। यह कदम विपक्ष को चुभ गया है। वे इसे वोट खरीदने का तरीका बता रहे हैं। क्या यह सही है? आइए देखें पूरी बात।
योजना का विवरण: बिहार सरकार का महिला सशक्तिकरण का दावा
बिहार सरकार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना चला रखी है। यह योजना महिलाओं को आर्थिक मदद देती है। राज्य में लाखों महिलाएं इससे जुड़ी हैं।
सरकार ने 1 करोड़ 51 लाख महिलाओं को ₹10000 दिए हैं। यह रकम छोटी लगती है। लेकिन इतनी महिलाओं के लिए कुल खर्च बड़ा हो जाता है। यह योजना रोजगार बढ़ाने का दावा करती है। महिलाओं को इससे कुछ राहत मिलती है।
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना का आधिकारिक उद्देश्य
योजना का मकसद महिलाओं को मजबूत बनाना है। सरकार कहती है कि यह रोजगार और वित्तीय मदद के लिए है। विपक्ष इसे चुनावी चाल बताता है। योजना पहले से चल रही थी। लेकिन समय पर सवाल उठते हैं।
वितरण की समयरेखा और चुनावी कैलेंडर
पैसे 25 अक्टूबर को डाले गए। चुनाव आचार संहिता लागू है। मतदान भी चल रहा है। यह समय संवेदनशील है। सरकार का कहना है कि यह नियमित भुगतान है। फिर भी विवाद बढ़ा।
प्रशांत भूषण का तीखा हमला: रिश्वतखोरी और चुनाव आयोग की निष्क्रियता के आरोप
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सोशल मीडिया पर हमला बोला। उन्होंने इसे रिश्वत कहा। चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाए। उनकी बात ने हलचल मचा दी।
भूषण ने एक्स पर लिखा। बिहार चुनाव से ठीक पहले 1 करोड़ 51 लाख महिलाओं को ₹10000 दिए गए। आचार संहिता के दौरान मतदान चलते रहेंगे। यह वोटरों को रिश्वत है। भाजपा का पिट्ठू चुनाव आयोग कुछ नहीं करेगा। उनका यह बयान सीधा हमला था।
‘यह हमारा पैसा है?’ – सार्वजनिक धन के दुरुपयोग का प्रश्न
भूषण ने पूछा कि यह हमारा पैसा है? टैक्स पेयर्स का धन चुनावी फायदे के लिए इस्तेमाल हो रहा। यह सामान्य कल्याण नहीं लगता। क्या सरकार सही कर रही? सवाल गंभीर हैं।
भूषण ने आयोग को पक्षपाती बताया। एनडीए के साथ मिला हुआ कहा। यह आयोग की निष्पक्षता पर सवाल है। क्या आयोग चुप रहेगा? जनता इंतजार कर रही।
आदर्श आचार संहिता (MCC) और चुनावी फंडिंग के नियम
चुनाव के नियम सख्त हैं। आचार संहिता सबको बांधती है। पैसे बांटना प्रतिबंधित हो सकता है। आइए नियम समझें।
आचार संहिता लागू होते ही नई योजनाएं रुक जाती हैं। वोट प्रभावित न हों। पैसे बांटना गलत माना जाता है। बिहार में यह हो रहा। आयोग को जांच करनी चाहिए।
‘वित्तीय प्रलोभन’ (Financial Inducement) और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा। वित्तीय लालच वोट खरीदना है। छोटी रकम भी असर डाल सकती। अदालत के फैसले सख्त हैं। सरकार को मानना पड़ता।
पहले भी ऐसे मामले हुए। आयोग ने योजनाएं रोकीं। जैसे तमिलनाडु में फ्रीबीज पर रोक। बिहार में भी कार्रवाई हो सकती है। आयोग ने कई बार हस्तक्षेप किया। यह संभव है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: एनडीए और विपक्षी दलों का रुख
राजनीति में यह मुद्दा गरमाया। एनडीए बचाव में उतरा। विपक्ष हमलावर। दोनों तरफ बहस छिड़ी। एनडीए कहता है योजना पुरानी है। यह नियमित मदद। चुनाव से कोई लेना देना नहीं। महिलाओं का हक है। वे इसे सशक्तिकरण बताते। विवाद को खारिज करते।
विपक्षी दलों द्वारा तत्काल कार्रवाई की मांग
विपक्ष ने आयोग से शिकायत की। भुगतान रोको। जांच करो। आरजेडी और कांग्रेस ने आवाज उठाई। वे इसे घोटाला कहते। तुरंत रोक की मांग।
मतदाताओं पर संभावित प्रभाव का विश्लेषण
₹10000 छोटी रकम है। लेकिन प्रतीकात्मक महत्व। 1.51 करोड़ महिलाएं प्रभावित। क्या वोट बदलेगा? बहस जारी। महिलाओं का वोट अहम।
यह विवाद बिहार चुनाव को प्रभावित कर सकता। आयोग की भूमिका अहम। क्या वे कार्रवाई करेंगे? सबकी नजरें उन पर।
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