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Rajnath singh ने Nitish kumar पर साधा निशाना: बिहार चुनाव से पहले भाजपा-जदयू गठबंधन में बढ़ती दरार

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बिहार की राजनीति में तनाव बढ़ रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath singh) ने हाल ही में एक सार्वजनिक मंच से जनता दल यूनाइटेड (जदयू) पर सीधी चोट की। उन्होंने कहा कि जदयू जनता की आंखों में धूल झोंक रही है। यह बयान सुनकर कई लोग हैरान हैं। गठबंधन में रहते हुए भी ऐसा कहना गंभीर है। बिहार के लोग अब सोच रहे हैं कि क्या यह साझेदारी टूटने की कगार पर है?

राजनाथ सिंह का जदयू की विश्वसनीयता पर सीधा हमला

राजनाथ सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जदयू आंखों में धूल झोंक रही है। यह बयान भाजपा के एक बड़े नेता से आया है। गठबंधन साथी पर ऐसा कहना सामान्य नहीं। इससे जदयू की छवि पर सवाल उठते हैं। बिहार के वोटर अब सोचते हैं कि क्या उनके नेता सच्चे हैं? यह आरोप चुनावी माहौल को और गर्म कर रहा है। राजनाथ का यह बयान जदयू को कमजोर दिखा रहा है।

राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ जदयू की तुलना

राजनाथ सिंह ने जदयू को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के बराबर रखा। उन्होंने कहा कि ये सभी पार्टियां जनता को ठगना चाहती हैं। यह रणनीति जदयू की स्थिति को कमजोर करती है। बिहार में जदयू खुद को अलग बताती रही है। अब यह तुलना उनके समर्थकों को परेशान कर रही है। क्या इससे गठबंधन की एकजुटता प्रभावित होगी? राजनाथ का यह कदम विपक्ष को मजबूत बना सकता है।

गठबंधन में तनाव का ऐतिहासिक संदर्भ

पहले भी भाजपा और जदयू के बीच मतभेद रहे हैं। नीतीश कुमार कई बार गठबंधन बदल चुके हैं। राम मंदिर जैसे मुद्दों पर असहमति दिखी है। अब राजनाथ का बयान पुराने घावों को हरा कर रहा है। बिहार के लोग इन झगड़ों से थक चुके हैं। क्या यह तनाव विकास कार्यों को प्रभावित करेगा? इतिहास बताता है कि ऐसे विवाद लंबे चलते हैं।

नीतीश कुमार का मोदी के कार्यक्रमों से दूर रहना

पूरे चुनाव में नीतीश मोदी के किसी कार्यक्रम में नहीं गए। यह दूरी साफ संकेत देती है। गठबंधन में रहते हुए भी ऐसा व्यवहार आश्चर्यजनक है। बिहार के वोटर इसे नोटिस कर रहे हैं। क्या नीतीश खुद को अलग कर रहे हैं? यह कदम गठबंधन की एकता पर सवाल खड़ा करता है। इससे स्थानीय स्तर पर असर पड़ सकता है।

अमित शाह का राम मंदिर मुद्दे पर पहले का आलोचना

अमित शाह ने पहले मंच से कहा था कि जदयू राम मंदिर के विरोध में थी। यह वैचारिक फूट को उजागर करता है। भाजपा के लिए राम मंदिर बड़ा मुद्दा है। जदयू का विरोध गठबंधन को कमजोर बनाता है। बिहार के हिंदू वोटर इस पर ध्यान देंगे। क्या यह पुराना विवाद फिर भड़केगा? शाह का बयान राजनाथ के बाद और मजबूत लगता है।

भाजपा समर्थकों द्वारा जदयू उम्मीदवार के खिलाफ वोट मांगना

विजय चौधरी जैसे नेता जदयू प्रत्याशी के खिलाफ वोट मांग चुके हैं। उन्होंने लालटेन (आरजेडी का प्रतीक) का समर्थन करने को कहा। यह स्थानीय विद्रोह का उदाहरण है। क्या यह केंद्र की नीति है या व्यक्तिगत? बिहार में ऐसे मामले गठबंधन को तोड़ सकते हैं। वोटर अब भ्रमित हैं। इससे चुनावी समीकरण बदल सकते हैं।

भाजपा की रणनीति: क्या नीतीश कुमार को खत्म करने का इरादा है?

भाजपा नीतीश को राजनीतिक रूप से कमजोर करना चाहती है। इसका मकसद भविष्य में नेतृत्व मजबूत करना हो सकता है। बिहार में भाजपा अकेले मजबूत दिखना चाहती है। नीतीश के बिना गठबंधन आसान होगा। क्या यह योजना काम करेगी? बिहार के लोग इस खेल से दुखी हैं। राजनीति में ऐसे कदम आम हैं लेकिन दर्दनाक।

सार्वजनिक असहमति का वोटर धारणा पर असर

इन बयानों से गठबंधन की विश्वसनीयता घट रही है। वोटर सोचते हैं कि नेता एक-दूसरे के खिलाफ हैं। इससे विपक्ष को फायदा होगा। आरजेडी और कांग्रेस मजबूत हो सकती हैं। बिहार के युवा विकास चाहते हैं न कि झगड़े। यह संघर्ष वोटरों का विश्वास तोड़ रहा है। क्या गठबंधन बच पाएगा?

बिहार में भविष्य की सत्ता साझेदारी के संभावित परिदृश्य

अगर भाजपा जदयू को हाशिए पर धकेल दे तो नई साझेदारी बन सकती है। शायद अन्य छोटी पार्टियों से गठबंधन। नीतीश के बिना भाजपा अकेले चुनाव लड़ सकती है। बिहार में सत्ता का संतुलन बदल सकता है। वोटरों को सतर्क रहना चाहिए। क्या यह परिवर्तन राज्य के लिए अच्छा होगा? समय बताएगा लेकिन अनिश्चितता बढ़ रही है।

बंद कमरों में क्या पक रहा है?

भाजपा और जदयू के बीच अंदर खाने कुछ खिचड़ी पक रही है। यह सार्वजनिक झगड़ा रणनीति हो सकता है। या फिर असली टूटन का संकेत। बिहार की राजनीति में ऐसे खेल चलते रहते हैं। क्या नेता वोट बटोरने के लिए ऐसा कर रहे हैं? लोग हैरान हैं लेकिन उम्मीद रखते हैं। गुप्त बातें साफ होनी चाहिए।

गठबंधन प्रबंधन में राज्य स्तर के नेताओं की भूमिका

केंद्रीय नेता जैसे राजनाथ और शाह मजबूत शब्द इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन जमीन पर समन्वय जरूरी है। बिहार के स्थानीय नेता चुनाव और शासन चलाते हैं। अगर वे एकजुट न हों तो समस्या बढ़ेगी। वोटरों को एकता दिखानी चाहिए। क्या राज्य नेता बीच में आकर सुलझा पाएंगे? यह चुनौती है।

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