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RSS पर सनसनीखेज आरोप: क्या अमेरिका में संघ के लिए लॉबिंग कर रही है पाकिस्तानी फर्म?
कभी-कभी राजनीति में एक छोटा सा खुलासा बड़ा तूफान ला देता है। कल्पना कीजिए, अगर भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टियों में से एक, कांग्रेस, यह दावा करे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) जैसे बड़े संगठन के लिए पाकिस्तान से जुड़ी कोई फर्म अमेरिका में काम कर रही हो। यह आरोप इतना गंभीर है कि पूरा राजनीतिक माहौल गरमा गया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर इसे उजागर किया, जबकि आरएसएस ने साफ-साफ इनकार कर दिया। आइए, इस विवाद की गहराई में उतरें और देखें कि आखिर यह सब क्या है।
कांग्रेस का सनसनीखेज आरोप: पाकिस्तानी लॉबिंग का केंद्र
कांग्रेस ने आरएसएस पर सीधा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि संघ ने अमेरिका में अपनी पैरवी के लिए एक ऐसी लॉबिंग फर्म हायर की है जो पाकिस्तान से जुड़ी हुई है। यह दावा सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं, बल्कि दस्तावेजों पर आधारित है।
जयराम रमेश का एक्स (ट्विटर) पर खुलासा
जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट शेयर की। इसमें उन्होंने बताया कि आरएसएस ने भारी पैसे खर्च कर अमेरिकी लॉ फर्म को हायर किया। कुछ दिन पहले मोहन भागवत ने खुद माना था कि आरएसएस रजिस्टर्ड नहीं है और टैक्स नहीं देता। रमेश ने यह जोड़ा कि अब यह लॉबिंग का मामला सामने आया है। उन्होंने एक स्क्रीनशॉट भी लगाया, जो अमेरिकी सीनेट की रिपोर्ट दिखाता था। यह पोस्ट तेजी से वायरल हो गई। क्या यह संयोग है या साजिश? सोचने वाली बात है।
अमेरिकी सीनेट की लॉबिंग रिपोर्ट: क्या कहती है आधिकारिक दस्तावेज़?
अमेरिकी सीनेट की यह रिपोर्ट कोई छोटी बात नहीं। इसमें साफ लिखा है कि स्क्वायर पैटर्न बॉक्स नाम की फर्म स्टेट स्ट्रीट स्ट्रैटेजीज़ के जरिए आरएसएस की तरफ से काम कर रही। फर्म ने बताया कि वे संघ के हितों की पैरवी कर रही हैं। रिपोर्ट में फंड्स के फ्लो का जिक्र भी है। कांग्रेस का कहना है कि यह पाकिस्तान से लिंक है। दस्तावेजों से लगता है कि पैसे का बड़ा हिस्सा विदेश से आ रहा। यह रिपोर्ट सार्वजनिक है, तो कोई झूठ नहीं बोल सकता। लेकिन सवाल यह है कि आरएसएस ने इतना खर्च क्यों किया?
स्क्वायर पैटर्न बॉक्स और स्टेट स्ट्रीट स्ट्रैटेजीज़ की भूमिका
स्क्वायर पैटर्न बॉक्स एक अमेरिकी लॉ फर्म है। वे सरकार के सामने क्लाइंट्स के मुद्दे उठाती हैं। स्टेट स्ट्रीट स्ट्रैटेजीज़ उनके पार्टनर की तरह काम करती। दोनों मिलकर आरएसएस के लिए लॉबिंग कर रही बताई जाती हैं। उनका काम है संघ की इमेज को मजबूत बनाना। पाकिस्तान कनेक्शन का दावा कांग्रेस ने किया, जो विवाद को और गहरा बनाता है। क्या ये फर्में सिर्फ पैसे के लिए कुछ भी कर सकती हैं? यह सवाल उठता है। इनकी भूमिका से लगता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव डालने की कोशिश हो रही।
आरएसएस की प्रतिक्रिया: आरोपों का खंडन और अपनी स्थिति स्पष्ट करना
आरएसएस ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया। उन्होंने कहा कि यह सब बकवास है। संगठन ने तुरंत सफाई दी। राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि आरएसएस सिर्फ भारत में काम करता है।
अमेरिका में कोई लॉबिंग फर्म हायर नहीं की। “हमारा फोकस देश की सेवा पर है, विदेशी पैरवी पर नहीं,” उन्होंने जोर दिया। आंबेकर ने कांग्रेस को राजनीतिक चाल का आरोप लगाया। उनका यह खंडन मजबूत लगता है। लेकिन क्या सबूतों का सामना होगा?
लॉबिंग की परिभाषा और आरएसएस के संचालन मॉडल पर विवाद
लॉबिंग का मतलब है सरकार से किसी के हितों की बात करना। अमेरिका में यह कानूनी है, लेकिन पारदर्शी होना चाहिए। आरएसएस कहता है कि वे ऐसा कुछ नहीं करते। उनका मॉडल स्वयंसेवा पर आधारित है। विवाद यह है कि अगर वे रजिस्टर्ड नहीं, तो लॉबिंग कैसे? कांग्रेस इसे कमजोरी बताती है। आरएसएस का संचालन भारत-केंद्रित है। फिर भी, यह बहस जारी है। क्या लॉबिंग और प्रचार में फर्क समझना जरूरी नहीं?
लॉबिंग और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: यह विवाद क्यों मायने रखता है
विदेशी लॉबिंग कोई नई बात नहीं। लेकिन जब पाकिस्तान का नाम आए, तो संवेदनशील हो जाता। भारत में यह राजनीतिक मुद्दा बन जाता।
ये फर्में क्लाइंट्स के लिए संसद में बात करती हैं। अमेरिका में लॉबिंग डिस्क्लोजर एक्ट से नियंत्रण होता। हर डील रिपोर्ट करनी पड़ती। अगर विदेशी कनेक्शन हो, तो FARA कानून लागू। स्क्वायर पैटर्न बॉक्स जैसी फर्में इसी में काम करती। उनका क्षेत्र व्यापक है। लेकिन पारदर्शिता जरूरी। भारत जैसे देशों के लिए यह चिंता की बात। क्या ये फर्में गलत हाथों में पड़ सकती हैं?
राजनीतिक निहितार्थ: भारत-अमेरिका संबंधों पर संभावित प्रभाव
यह विवाद भारत-अमेरिका रिश्तों को हिला सकता। पाकिस्तान का नाम आने से शक बढ़ता। कांग्रेस इसे आरएसएस की कमजोरी बताती। आरएसएस को बदनाम करने की कोशिश लगती। राजनीतिक रूप से, यह चुनावी हथियार बनेगा। अंतरराष्ट्रीय प्रभाव से घरेलू राजनीति प्रभावित होती। क्या यह दोनों देशों के बीच तनाव लाएगा? सोचिए, अगर सच्चाई सामने आई तो।
भागवत ने कहा था कि आरएसएस रजिस्टर्ड नहीं। वे टैक्स नहीं देते। यह बयान हाल ही का था। कांग्रेस ने इसे पकड़ा। अब लॉबिंग से जोड़ दिया। स्वीकारोक्ति से संगठन की स्थिति साफ हुई। लेकिन सवाल उठे। क्या बिना रजिस्ट्रेशन विदेशी काम संभव?
टैक्स और कानूनी अनुपालन पर सवाल
अगर टैक्स नहीं, तो फंड्स कहां से? लॉबिंग पर भारी खर्च का दावा। कानूनी अनुपालन पर उंगली उठी। आरएसएस कहता है सब वैध। लेकिन पारदर्शिता की कमी। यह सवाल संगठन की विश्वसनीयता पर। क्या जांच जरूरी?
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