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Election Commission पर सवाल: सरकार की कठपुतली बना चुनाव आयोग?

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भारत के लोकतंत्र में चुनाव आयोग (Election Commission) एक मजबूत स्तंभ है। लेकिन विपक्ष के दावों ने इसे हिला दिया है। क्या यह संस्था अब सत्ता पक्ष की कठपुतली बन गई है? कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने हाल ही में इसे साफ शब्दों में कहा। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग (Election Commission) दबाव में काम कर रहा है। यह सरकार से जुड़ गया है। ये बातें लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। आइए समझते हैं इस विवाद की गहराई।

विपक्ष का रुख: पक्षपाती व्यवहार के आरोप

विपक्षी दल चुनाव आयोग पर भारी हमला बोल रहे हैं। उनका कहना है कि जहां भाजपा इशारा करती है, वहां आयोग चुनाव जिताने में जुट जाता है। यह सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि एक बड़ा मुद्दा है। अगर आयोग निष्पक्ष नहीं रहा, तो चुनावों की सच्चाई पर सवाल उठेगा।

अशोक गहलोत के सीधे आरोप चुनाव आयोग पर

अशोक गहलोत ने साफ कहा। चुनाव आयोग दबाव में है। यह सरकार के साथ मिला हुआ लगता है। उन्होंने दोहराया कि यह लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं। गहलोत ने चेतावनी दी। आयोग को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। राजनीतिक दलों को भरोसा दिलाना जरूरी है।

ये आरोप गंभीर हैं। अगर आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठे, तो वोटरों का विश्वास टूटेगा। गहलोत की बात से साफ है कि विपक्ष को लगता है आयोग पक्षपाती हो गया। यह सिर्फ एक नेता की राय नहीं। पूरा विपक्ष यही सोचता है। उदाहरण के लिए, हाल के चुनावों में कई फैसले विवादास्पद रहे। इससे संदेह बढ़ा।

लोकतांत्रिक मूल्यों और विश्वास पर असर

ये आरोप लोकतंत्र को कमजोर करते हैं। अगर आयोग पर भरोसा न रहा, तो लोग वोटिंग से दूर हो जाएंगे। निष्पक्ष चुनाव ही लोकतंत्र की रीढ़ हैं। गहलोत ने सही कहा। यह अच्छे संकेत नहीं।

विश्वास की कमी से लंबे समय तक नुकसान होगा। राजनीतिक दल एक-दूसरे पर इल्जाम लगाते रहेंगे। वोटर सोचेंगे कि उनका वोट बेकार है। भारत जैसे देश में, जहां करोड़ों वोटर हैं, यह बड़ा खतरा है। आंकड़े बताते हैं। 2019 के चुनावों में 90% से ज्यादा वोट पड़े। लेकिन अब संदेह बढ़ रहा है। अगर आयोग ने सुधार न किया, तो अगले चुनाव कमजोर हो सकते हैं।

विवादित चुनाव आयोग प्रक्रियाएं: आलोचना के केंद्र में

चुनाव आयोग की कई प्रक्रियाओं पर सवाल उठे हैं। खासकर वोटर लिस्ट को साफ करने का तरीका। विपक्ष कहता है कि यह तरीका गलत है। इससे संदेह पैदा होता है। लेकिन सभी दल साफ लिस्ट चाहते हैं। समस्या तरीके में है।

ट्रांसक्रिप्ट में साफ कहा गया। कौन चाहेगा फर्जी वोटिंग? कोई पार्टी नहीं। सभी चाहते हैं कि असली वोटर लिस्ट में रहें। कोई नाम न छूटे। फर्जी नाम न जुड़ें। गहलोत ने जोर दिया। हर दल यही इच्छा रखता है।

लेकिन आयोग ने 12 राज्यों में अचानक काम शुरू कर दिया। बिना सलाह के। इससे लोग शक करते हैं। वोटर लिस्ट साफ रखना अच्छा लक्ष्य है। लेकिन प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए। उदाहरण लीजिए। अगर नाम कट गए या जुड़ गए, तो वोटर परेशान होते हैं। इससे चुनाव प्रभावित होता है। आयोग को सोचना चाहिए। सभी की राय लें।

तरीके की समस्या: संदेह क्यों बढ़ता है

आयोग का तरीका एकतरफा लगता है। बिना चर्चा के फैसले लेना। इससे डाउट क्लियर नहीं होता। गहलोत ने कहा। अगर सबको बुलाकर बात करते, तो कोई ऐतराज न होता। लेकिन ऐसा न हुआ। अब लोग सोचते हैं। क्या यह भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए है?

यह तरीका गलत है। संदेह का माहौल बन जाता है। आयोग को सीखना चाहिए। पारदर्शिता से ही विश्वास बनेगा। बिना सलाह के कदम उठाने से विपक्ष चिल्लाता है। यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। छोटे-छोटे फैसलों से बड़ा विवाद बन जाता है।

निर्णय लेने में पारदर्शिता और समावेशिता की मांग

आयोग को बदलाव लाने चाहिए। सभी को साथ लेकर चलें। खासकर 12 राज्यों के मामले में। सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहे हैं। तब भी जल्दबाजी क्यों?

आयोग ने वहां वोटर लिस्ट की जांच शुरू की। बिना पार्टियों को बुलाए। गहलोत ने सुझाव दिया। सबको बुलाकर सलाह लें। उसके बाद शुरू करें। इससे कोई विरोध न होगा।

यह सही रास्ता है। सभी दल खुश रहेंगे। 12 राज्य महत्वपूर्ण हैं। वहां लाखों वोटर हैं। बिना सहमति के बदलाव से भ्रम फैलता है। आयोग को मीटिंग बुलानी चाहिए। सुझाव सुनें। तब कार्रवाई करें। इससे विश्वास बढ़ेगा। विपक्ष भी समर्थन देगा।

न्यायिक हस्तक्षेप और समीक्षा की तलाश

सुप्रीम कोर्ट में कई केस चल रहे हैं। चुनाव सुधारों पर। गहलोत ने कहा। जुडिशियल तरीके से भी काम शुरू कर दिया। लेकिन कोर्ट का फैसला इंतजार क्यों न किया? न्यायपालिका आखिरी फैसला लेगी।

यह अच्छा कदम होगा। अगर आयोग पर संदेह है, तो कोर्ट मदद करेगी। उदाहरण के लिए, पहले भी कोर्ट ने वोटर लिस्ट पर आदेश दिए। अब भी ऐसा हो सकता है। पार्टियां कोर्ट जा रही हैं। इससे पारदर्शिता आएगी। आयोग को सहयोग करना चाहिए।

चुनावी विश्वसनीयता बनाए रखना: आगे का रास्ता

आयोग को कदम उठाने चाहिए। विश्वास बहाल करें। पारदर्शी तरीके अपनाएं। जिम्मेदारी समझें। तभी लोकतंत्र मजबूत होगा।

आयोग कुछ आसान कदम उठा सकता है। जैसे सार्वजनिक सुनवाई करें। महत्वपूर्ण मीटिंगों की मिनट्स जारी करें। इससे संदेह कम होगा।

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