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Akhilesh Yadav का बड़ा आरोप: यूपी में 3 करोड़ वोट काटने की तैयारी में BJP और चुनाव आयोग
उत्तर प्रदेश में सियासत गरम हो गई है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने चुनाव आयोग और बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि यूपी में 3 करोड़ वोट काटने की साजिश रची जा रही है। यह दावा सुनकर हर कोई सोच में पड़ गया। क्या लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है? आइए, इन आरोपों की गहराई में उतरें।
मतदाता सूची में गड़बड़ी: 3 करोड़ वोट काटने की साजिश का दावा
अखिलेश यादव ने साफ कहा। चुनाव आयोग और बीजेपी मिलकर यूपी से करीब 3 करोड़ वोट हटाने की तैयारी में हैं। यह संख्या इतनी बड़ी है कि पूरे चुनाव के नतीजे बदल सकते हैं। वोटर लिस्ट रिवीजन के नाम पर यह खेल चल रहा है। क्या आपका वोट भी खतरे में है?
बीएलओ पर अत्यधिक दबाव और संदिग्ध अधिकारी गतिविधियां
बीएलओ यानी बूथ लेवल ऑफिसर पर जबरदस्त दबाव बनाया जा रहा है। अधिकारी खुद फॉर्म भर रहे हैं। इससे प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रह जाती।
- बीएलओ को रात-दिन फोन आ रहे हैं।
- लक्ष्य पूरा न करने पर धमकी मिल रही है।
- कई जगह फर्जी एंट्री के शक की बातें हैं।
यह सब एसवीआर प्रक्रिया में हो रहा। BLO डर के मारे गलतियां कर रहे। यादव ने इसे साफ धांधली बताया।
चुनावी धांधली से चुनावी नतीजों पर संभावित असर
3 करोड़ वोट कटने से यूपी चुनाव अनफेयर हो जाएंगे। खासकर गरीब और मजदूर वोटर प्रभावित होंगे। नतीजे पहले से तय हो जाएंगे।
- ग्रामीण इलाकों में असर ज्यादा पड़ेगा।
- विपक्ष के वोटर सबसे ज्यादा निशाने पर।
- लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होंगी।
यदि यह सच हुआ, तो 2027 के चुनाव बेकार साबित होंगे। क्या चुनाव आयोग जवाब देगा?
संविधान की मूल भावना पर हमला: सेकुलर और सोशलिस्ट शब्द हटाने की आशंका
अखिलेश ने संविधान पर हमले की बात कही। सोशलिस्ट और सेकुलर शब्द हटाने की साजिश चल रही है। ये शब्द भारत की पहचान हैं। इन्हें छूना देश को बांट सकता है। क्या बीजेपी ऐसा करेगी?
बीजेपी की कथित रणनीति: लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करना
यादव का कहना है बीजेपी लोकतंत्र को तोड़ना चाहती है। ये शब्द हटाकर सत्ता हथियाना आसान हो जाएगा।
- संविधान की आत्मा बदल दी जाएगी।
- सभी धर्मों का समान अधिकार खतरे में।
- समाजवाद खत्म होने से गरीब और पीछे।
यह रणनीति लंबे समय की लगती है। विपक्ष इसे रोकने को तैयार है।
ऐतिहासिक संदर्भ और संवैधानिक अखंडता पर बहस
1976 में इन्हें जोड़ा गया था। इमरजेंसी के बाद भी बने रहे।
सोशलिस्ट: गरीबी हटाओ का मंत्र।
सेकुलर: सभी धर्म बराबर। इन्हें हटाना इतिहास बदलना होगा। बहस तेज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट क्या कहेगा?
मानवीय त्रासदी: मतदाता प्रक्रिया के दबाव में दो मौतों का गंभीर आरोप
सबसे दुखी बात दो लोगों की मौत। एसवीआर प्रक्रिया के दबाव में जान गई। यह बेहद गंभीर है। इंसानी जिंदगी से खिलवाड़? सरकार चुप क्यों है?
अधिकारियों पर जवाबदेही तय करने की मांग
अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराओ। दबाव बनाने वालों पर कार्रवाई हो।
- जांच समिति बने।
- परिवारों को न्याय मिले।
- प्रक्रिया रोकी जाए।
यादव ने साफ मांग की। कोई और मौत न हो।
चुनावी प्रक्रियाओं में मानवीय लागत का विश्लेषण
चुनावी काम में दबाव ठीक है, लेकिन मौतें गलत।
- BLO थकान से बीमार हो गए।
- टारगेट पूरा न करने का डर।
- परिवार बर्बाद हो रहे।
यह मानवीय कीमत बहुत ज्यादा है। चुनाव पहले इंसान।
आर्थिक आरोप: उद्योगपतियों को बड़े पैमाने पर ऋण वितरण
सरकार पर 10,000 करोड़ से ज्यादा का लोन देने का इल्जाम। उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाया जा रहा। आम आदमी का पैसा कहां गया?
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