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Bihar की Politics में भूचाल: Upendra Kushwaha की पार्टी में सामूहिक इस्तीफा, परिवारवाद का बढ़ता संकट
बिहार (Bihar) में नई सरकार बनी ही थी। तभी राजनीति में तूफान आ गया। उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को करारा झटका लगा। कई बड़े नेता एक साथ इस्तीफा दे चुके हैं। वे परिवारवाद के खिलाफ खुलकर बोल पड़े। क्या यह पार्टी का अंत है? बिहार की सियासत अब और गर्म हो गई है। आप सोचिए, जीत की खुशी में ही दरारें पड़ गईं।
आरएलएम में नेतृत्व संकट की जड़ें: एनडीए चुनाव परिणाम और अपेक्षाएं
बिहार विधानसभा चुनावों ने सबको चौंकाया। राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने एनडीए गठबंधन में छह सीटें पाईं। चार पर जीत मिली। यह बड़ी बात थी। उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में पार्टी ने अच्छा स्कोर किया।
उनकी पत्नी श्वेता कुशवाहा सासाराम से जीतीं। लोग तालियां बजा रहे थे। हर तरफ चर्चा थी। पार्टी मजबूत हो गई लग रही थी। लेकिन अंदर ही अंदर खलबली मच गई। कार्यकर्ता सोच रहे थे, अब क्या होगा?
चुनावी सफलता ने उम्मीदें बढ़ाईं। चार विधायक तैयार थे। वे पार्टी के भविष्य के बारे में बातें कर रहे थे। एनडीए की जीत में उनका योगदान था। फिर भी, सब कुछ बदल गया।
मंत्री पद का बंटवारा: उपेंद्र कुशवाहा का विवादास्पद निर्णय
नई सरकार में जगह बनाने की होड़ लगी। कयास लग रहे थे। श्वेता कुशवाहा मंत्री बनेंगी, ऐसा कहा जा रहा था। सासाराम की जीत ने जोश भरा था। एनडीए नेताओं ने भी इशारे दिए।
लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने चौंकाने वाला कदम उठाया। उन्होंने चारों विधायकों को साइड कर दिया। बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री पद दिला दिया। यह फैसला पार्टी में आग लगा गया। विधायक नाराज हो गए।
क्यों ऐसा हुआ? नेताओं ने सवाल उठाए। चार मेहनती लोग थे। उन्होंने चुनाव लड़ा। वोट जुटाए। फिर भी बेटे को तरजीह? असंतोष फैल गया। पार्टी मीटिंग्स में बहस छिड़ गई।
सामूहिक इस्तीफे: पार्टी के ढांचे पर सीधा प्रहार
नई सरकार बनी तो इस्तीफे हो गए। कई नेता एक साथ बाहर। वे पार्टी नेतृत्व पर भारी आरोप लगाए। परिवारवाद को बढ़ावा देने का इल्जाम। आंतरिक लोकतंत्र मरा, ऐसा बोले।
ये नेता महत्वपूर्ण थे। जमीनी स्तर पर सक्रिय। उनके इस्तीफे ने पार्टी हिला दी। समय भी बुरा। सरकार गठन के ठीक बाद। अब कौन बचेगा? कार्यकर्ता परेशान।
उन्होंने खुलेआम कहा। पार्टी की स्थिति खराब है। परिवार के अलावा किसी की नहीं सुनते। सवाल उठे। क्या आरएलएम बच पाएगी? ये इस्तीफे चेतावनी हैं। बड़ा संकट मंडरा रहा।
मुख्य आरोप:
- परिवारवाद का राज।
- विधायकों की उपेक्षा।
- लोकतंत्र की कमी।
राजनीतिक विश्लेषण: परिवारवाद बनाम जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी
बिहार की राजनीति में परिवारवाद पुरानी बीमारी। हर पार्टी में दिखता है। आरएलएम में यह साफ नजर आया। उपेंद्र कुशवाहा ने बेटे को आगे किया। पत्नी भी मैदान में। कार्यकर्ता पीछे छूट गए।
जमीनी लोग गुस्से में। उन्होंने वोट डाले। मेहनत की। अब क्या फायदा? उपेक्षा से नाराजगी बढ़ी। राजनीतिक परिणाम बुरे होंगे। अगले चुनाव में नुकसान।
भविष्य क्या? आरएलएम कमजोर हो सकती है। बिहार के समीकरण बदल सकते हैं। अन्य दल फायदा उठाएंगे। कार्यकर्ता भाग सकते हैं। परिवारवाद रुके तो ही बचेगी। वरना खत्म।
कल्पना कीजिए, एक घर जहां बेटा ही मालिक। बाकी सब नौकर। यही स्थिति। बिहार सियासत में ऐसा चलता रहेगा? नहीं। बदलाव आएगा।
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