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Amit Shah की गुप्त मीटिंग: क्या बिहार में नया CM तय हो चुका है?
बिहार की सियासत फिर से उबाल पर है. सवाल यह है कि क्या बीजेपी ने चुपचाप नए मुख्यमंत्री का चेहरा चुन लिया है, और क्या यह चेहरा खुद नीतीश कुमार के घर से आने वाला है?
Indian Express की एक रिपोर्ट ने इस चर्चा को और तेज कर दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक अमित शाह ने नीतीश के करीबी तीन लोगों से एक अहम मीटिंग की और वहीं से बिहार की सत्ता की अगली कहानी लिखी जाने लगी.
इस पूरी हलचल के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह सब किसी बड़े प्लान का हिस्सा है, जिसमें पहले नीतीश को कमजोर किया जाएगा, फिर उनके बेटे निशांत कुमार को आगे कर, पूरी सरकार पर कंट्रोल लेने की तैयारी होगी.
इस पोस्ट में इसी प्लान की परतें, किरदार और उसके पीछे की राजनीतिक गणित सरल भाषा में समझते हैं.
बीजेपी का नीतीश को किनारे लगाने का मास्टर प्लान
Indian Express की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में अमित शाह की एक अहम बैठक हुई. इस मीटिंग में तीन लोग मौजूद थे
- संजय झा
- ललन सिंह
- बिहार सरकार के एक टॉप ब्यूरोक्रेट
यहीं पर अमित शाह ने वह नाजुक सवाल पूछा जिसने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी. रिपोर्ट में साफ लिखा है कि शाह ने पूछा कि क्या नीतीश कुमार के पास उनकी खराब सेहत को देखते हुए कोई उत्तराधिकार योजना है.
यानी सीधा सवाल था
“क्या नीतीश के बाद कौन मुख्यमंत्री बनेगा, इस पर कोई प्लान तय है?”
यह सवाल सिर्फ सेहत का हाल पूछने के लिए नहीं था. यह इस बात का इशारा था कि दिल्ली में बैठकर अब बिहार में अगला चेहरा खोजा जा रहा है. बीजेपी जानती है कि अगर वह सीधे नीतीश कुमार से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनकर अपना आदमी बिठा देगी, तो जनता में इसका गलत संदेश जा सकता है.
यही वजह है कि पूरा खेल थोड़ा घुमा कर खेला जा रहा है. चेहरा ऐसा ढूंढा जा रहा है, जिसे नीतीश खुद भी मना न कर सकें, और जिसे हटा पाना बाद में बीजेपी के लिए आसान हो.
प्लान की बारीकियां
इस रिपोर्ट के बाद जो कदम दिख रहे हैं, उनसे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि प्लान काफी सोच-समझकर बनाया गया है.
बीजेपी ने ऐसा पासा फेंकने की शुरुआत की है, जिसमें नीतीश फंस भी जाएं और खुलकर विरोध भी न कर सकें. सबसे अहम कड़ी हैं, उनके बेटे निशांत कुमार.
पहला कदम रहा, संजय झा का बयान. अमित शाह की मीटिंग के कुछ समय बाद, संजय झा ने खुलकर निशांत कुमार के राजनीति में आने की वकालत कर दी. उनका बयान खूब चर्चा में रहा.
- पहला स्टेप: पार्टी के मंच से निशांत को राजनीति में लाने की खुली मांग
- दूसरा स्टेप: इसे “पार्टी के लोगों की चाहत” बता कर वैधता देना
संजय झा ने कहा था
“पार्टी के लोग, पार्टी के शुभचिंतक, पार्टी के समर्थक, अब पार्टी के सब लोग चाहते हैं कि अब आ के पार्टी में काम करें. हम सब लोग चाहते हैं, अब इनहीं को फैसला लेना है कि कब यह तय करते हैं और पार्टी में काम करते हैं.”
यानी मैसेज साफ है. निशांत को सामने लाने की जमीन सार्वजनिक रूप से तैयार की जा रही है, और इसे किसी एक नेता की इच्छा नहीं, बल्कि पूरी पार्टी की मांग बताया जा रहा है.
संजय झा कौन और बीजेपी की बिहार में पकड़
संजय झा बिहार की राजनीति में नया नाम नहीं हैं. यह बताने की ज़रूरत भी नहीं कि वो कौन हैं, यही बात खुद वीडियो में कही गई. वह लंबे समय से सत्ता की सियासत के अहम साथी रहे हैं, और इसी कारण उनके बयान को हल्के में नहीं लिया जाता.
यहीं से तस्वीर और साफ होती है कि जो कुछ हो रहा है, वह किसी एक व्यक्ति की निजी राय नहीं, बल्कि बड़े राजनीतिक मंसूबे का हिस्सा लगता है.
उधर बिहार में बीजेपी ने पहले ही सत्ता के अहम पदों पर अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है
- दो डिप्टी मुख्यमंत्री उसके हैं
- विधानसभा स्पीकर उसका है
- गृह विभाग भी बीजेपी के पास है
यानी सरकार में नंबर दो, विधानसभा की कुर्सी और लॉ एंड ऑर्डर, तीनों जगह बीजेपी की मजबूत मौजूदगी है. अब अगला निशाना सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी बचती है.
इसलिए संजय झा के जरिए निशांत का नाम आगे बढ़ना, कई लोगों की नजर में, उसी बड़ी रणनीति का हिस्सा दिखता है जिसमें बीजेपी सीधे टकराव की बजाय “अंदर से कंट्रोल” की राह पकड़ रही है.
निशांत को मुख्यमंत्री बनाने के फायदे
अगर मान लें कि निशांत कुमार को आगे ला कर मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो बीजेपी के लिए इसके कम से कम दो बड़े फायदे दिखाई देते हैं.
- नीतीश की सीमित भूमिका अगर नीतीश खुद बेटे को आगे बढ़ा कर साइड रोल में चले जाते हैं, तो उनके लिए बार-बार “इधर-उधर” करना आसान नहीं रहेगा. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठने के बाद, निर्णय लेने की सीधी ताकत कम हो जाती है.
- जेडीयू को कमजोर करना आसान
अनुभवहीन नेतृत्व के दौर में किसी भी पार्टी में असंतोष जल्दी पनपता है. ऐसे में जेडीयू को तोड़ना, या उसमें फूट करवाना, बीजेपी के लिए पहले से ज्यादा आसान हो सकता है.
इसी संदर्भ में वीडियो में यह तुलना की गई कि बीजेपी एक तरह से निशांत कुमार को “अभिमन्यु” बनाने की कोशिश कर रही है. उन्हें ऐसे चक्रव्यूह में धकेला जाएगा, जिससे निकलना उनके बस में नहीं होगा, और पूरा फायदा दूसरी पार्टी को मिलेगा.
उदाहरण के तौर पर, शिवसेना, एनसीपी और एलजेपी में जो कुछ हुआ, उसका जिक्र किया गया. वहां भी पार्टी के भीतर से ही टूट हुई और नेतृत्व हाथ बदल गया. इशारा साफ है कि जेडीयू के साथ भी वैसा ही स्क्रिप्ट दोहराया जा सकता है.
वायरल तस्वीर, ओवैसी और किलेबंदी
इधर एक और तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से घूम रही है, जिसमें सम्राट चौधरी और अख्तुरुल इमान साथ दिख रहे हैं.
अख्तुरुल इमान, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से जुड़े बड़े चेहरे हैं. कुछ ही दिन पहले ओवैसी, नीतीश कुमार को समर्थन देने की बात कर रहे थे. ऐसे में उनकी पार्टी के एक नेता के साथ सम्राट चौधरी की वायरल फोटो कई तरह के संकेत दे रही है.
वीडियो में दावा किया गया कि जैसे ही ओवैसी की तरफ से नीतीश को समर्थन की बात आई, बीजेपी ने उनकी पार्टी में ही सेंध लगाने की शुरुआत कर दी. इस कदम को भी उसी “किलेबंदी” का हिस्सा बताया गया, जिसका मकसद है कि नीतीश किसी भी वक्त पाला बदलने की स्थिति में न रहें.
कुल मिलाकर, पटकथा दिल्ली में लिखी जा रही है और बिहार में उसके सीन एक-एक कर शूट हो रहे हैं.
बिहार की राजनीतिक गणित और भविष्य की चालें
संख्या के खेल में देखें तो बिहार विधानसभा में इस वक्त बीजेपी के पास सबसे ज्यादा विधायक हैं, लेकिन यह संख्या अभी भी बहुमत से काफी कम है. बहुमत का आंकड़ा 122 का है, और बीजेपी उससे 33 सीटें कम पर है.
यानी अकेले सरकार बनाने की स्थिति में पार्टी नहीं है. इसलिए उसे सहारों की जरूरत है. अभी यह सहारा चार तरफ से आ रहा है
नीतीश कुमार की जेडीयू
चिराग पासवान की पार्टी
जीतन राम मांझी
उपेन्द्र कुशवाहा
इन्हीं सबके साथ मिलकर सरकार खड़ी है.
लेकिन राजनीतिक जानकारों का अनुमान है कि अगले एक साल के भीतर बीजेपी किसी न किसी तरह बिहार में अपना मुख्यमंत्री देखने की पूरी कोशिश करेगी. अमित शाह की मीटिंग में उठा “उत्तराधिकारी” वाला सवाल, उसी कोशिश की शुरुआती घंटी माना जा रहा है.
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