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Bengal elections से पहले Babri Masjid मुद्दा: कौन हैं हुमायूं कबीर

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बंगाल चुनाव (Bengal elections) से पहले बंगाल में लाखों लोग सिर पर ईंटे रखकर बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) बनाने निकल पड़े और इसे बनाने का आह्वान जिसने किया वह कोई और नहीं पूर्व बीजेपी नेता और टीएमसी से निकाले गए विधायक हुमायूं कबीर हैं। आखिर बंगाल चुनाव से ठीक पहले हुमायूं कबीर को बाबरी की याद क्यों आने लगी और यह नेता हैं कौन जिसने अचानक बंगाल की राजनीति में नया बवाल खड़ा कर दिया है। सबसे पहले यह समझते हैं कि अचानक बंगाल में यूपी के बाबरी मस्जिद का मुद्दा कैसे उठा। दरअसल 22 नवंबर को टीएमसी के विधायक हुमायूं कबीर ने एक ऐलान किया। वह मुर्शिदाबाद के भरतपुर से विधायक हैं। उन्होंने बेलडांगा क्षेत्र में बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का ऐलान किया। कहा कि 6 दिसंबर को इसका शिलान्यास होगा। निर्माण में ₹300 करोड़ लगेंगे और 3 साल में मस्जिद तैयार हो जाएगी।

टीएमसी मंदिर मस्जिद की राजनीति नहीं करती

इसे नाम दिया बाबरी मस्जिद का। कबीर ने दावा किया कि यह कोई अवैध काम नहीं है। कोई मंदिर या चर्च बना सकता है। मैं मस्जिद बनाऊंगा। अब अचानक इस ऐलान से टीएमसी को दिक्कत हुई। टीएमसी मंदिर मस्जिद की राजनीति नहीं करती है। इसलिए कबीर पर कारवाई करते हुए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। कोलकाता मेयर फिराहाद हकीम ने कहा हमारे एक विधायक ने अचानक बाबरी मस्जिद बनाने का ऐलान कर दिया। यह सांप्रदायिक राजनीति है। सांसद कल्याण बनर्जी ने कबीर को बेकार बताया था। पार्टी ने इसे बीजेपी की साजिश बताया। दावा किया कि बीजेपी कबीर को फंडिंग देकर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर रही है।

हुमायूं कबीर है कौन

अब हुमायूं कबीर है कौन? यह भी बताते हैं। हुमायूं कबीर मुर्शिदाबाद जिले के भरतपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं। रेज़ नगर के एक सामान्य परिवार से आने वाले नेता हैं। उनकी राजनीति में एंट्री कांग्रेस के जरिए हुई थी। उन्हें मुर्शिदाबाद की राजनीति का शानदार खिलाड़ी माना जाता है। मुर्शिदाबाद में कांग्रेस के दिग्गज नेता अधीर रंजन चौधरी के करीबी सहयोगी के रूप में उन्होंने राजनीति में कदम रखा था। वह 2009 से कांग्रेस के मुर्शिदाबाद इकाई के महासचिव थे। साल 2011 के विधानसभा चुनाव में हुमायूं कबीर कांग्रेस के टिकट पर रेज़ नगर से पहली बार विधायक चुने गए। साल 2012 में अधीर रंजन चौधरी से मतभेदों की वजह से वो टीएमसी में शामिल हो जाते हैं और विधायक पद से इस्तीफा भी दे देते हैं। 3 साल बाद ममता बनर्जी पर उनके भतीजे अभिषेक को लेकर आरोप लगाने के बाद कबीर को 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया जाता है और इस घटना ने उनकी छवि विरोधी नेता के रूप में स्थापित कर दी थी।

छ साल का निष्कासन खत्म: विवादित बयान

कबीर ने 2016 का विधानसभा चुनाव निर्दलीय के रूप में लड़ा और हार गए। साल 2018 में वो बीजेपी में शामिल हो गए। 2019 में उन्होंने मुर्शिदाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा फिर हार गए। अब छ साल का निष्कासन खत्म हो चुका था। वो 2021 के चुनाव से ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस में वापस आ जाते हैं और भरतपुर सीट से जीत दर्ज कर लेते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने एक विवादित बयान दिया था। 70/30 मुस्लिम हिंदू अनुपात वाले एक जिले में उन्होंने दावा किया था कि वह हिंदुओं को 2 घंटे के भीतर भागीरथी में फेंक सकते हैं। इस टिप्पणी के लिए उन्हें प्रधानमंत्री सहित पूरे देश की आलोचना झेलनी पड़ी थी और पार्टी की ओर से एक कारण बताओ नोटिस भी मिला था। महीनों बाद उन्हें फिर से फटकार लगाई गई और इस बार अभिषेक बनर्जी को उप मुख्यमंत्री बनाने की बात कहने पर।

हुमायूं ने बाबरी का प्लान बनाया

इसके बाद उन्होंने माफी तो मांगी लेकिन अनचाहे मन से तृणमूल से इस निलंबन ने कबीर को भले ही हाशिए पर धकेल दिया हो लेकिन इससे उनके उस रास्ते पर तेजी से बढ़ने की संभावना बढ़ गई जो वह बहुत पहले से तैयार कर चुके थे। हर तरफ से निराश होने के बाद हुमायूं ने बाबरी का प्लान बनाया क्योंकि लाइमलाइट में आने का इससे अच्छा तरीका भला क्या हो सकता है? पिछले एक महीने में उन्होंने एक नए धर्मनिरपेक्ष गठबंधन की बात की थी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी कि माकपा और ऑल इंडिया मजलिस इत्तहादुल मुस्लिमीन यानी कि एआईएमआईएम के साथ सकारात्मक बातचीत के संकेत दिए थे। हुमायूं कबीर ने ऐलान किया कि उनकी नई पार्टी राज्य की 135 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। नई पार्टी की घोषणा 22 दिसंबर को की जाएगी।

एआईएमआईएम के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा

साथ ही उन्होंने एआईएमआईएम के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। अब सवाल यह है कि अगर हुमायूं कबीर को बाबरी से इतना लगाव था तो उन्होंने इससे पहले इसका जिक्र क्यों नहीं किया? यह जिक्र तभी क्यों हुआ जब बंगाल में चुनाव आने वाले हैं। बीजेपी बंगाल में एक्टिव हो चुकी है और कई राजनीतिक विश्लेषक इसी बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि यह सब कुछ बीजेपी के इशारे पर हो रहा है। बीजेपी हिंदू मुस्लिम करती है और इसके जरिए वो ममता बनर्जी के वोट बैंक को कमजोर करेगी। जाहिर सी बात है ममता बनर्जी हुमायूं कबीर को रोकेंगी तो मुस्लिम समाज में उनके मुस्लिम और मस्जिद विरोधी होने का संदेश चला जाएगा और हुमायूं कबीर जो चीजें करेंगे उससे हिंदू समाज में वोटर्स का पोलराइजेशन हो जाएगा। अब क्योंकि कबीर ने पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है तो इसका मतलब है कि वह पूरी कोशिश करेंगे मुस्लिम वोट को बांटने की। तो यहां पर ममता बनर्जी को फंसाने के लिए बीजेपी ने यह चाल चली है। इसी बात की तरफ मौजूदा चीजें इशारा कर रही हैं।

जिस तरह से बाबरी का मुद्दा इतने बड़े लेवल पर उठता है कि 2 लाख से ज्यादा लोग ईंटें लेकर मस्जिद बनाने के लिए चले जाते हैं। तो जाहिर सी बात है कि ये आने वाले वक्त में बंगाल में एक बड़े प्लान की साजिश का ही छोटा सा हिस्सा है। अब यह देखना होगा कि ममता बनर्जी इन सब चीजों को किस तरीके से हैंडल करती हैं और बीजेपी की अगली चाल क्या हो सकती है।

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