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Jagdeep Dhankhar हाउस अरेस्ट पर बड़ा खुलासा, “इस्तीफे” का सच सामने आया!
मीडिया और सोशल मीडिया पर एक तूफान सा छा गया। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ मानो गायब हो गए हों। गृह मंत्री अमित शाह की ओर तुरंत सवाल उठने लगे। लोग धनखड़ की सलामती को लेकर चिंतित थे। वह कहाँ थे? क्या वह सुरक्षित थे?
फिर, एक चौंकाने वाली खबर सामने आई। तमिल मीडिया ने एक गुप्त बैठक का दावा किया। यह बैठक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ थी। इस खबर ने आग में घी डालने का काम किया। इसने अमित शाह से ध्यान हटा दिया। अब, सबकी निगाहें प्रधानमंत्री पर थीं।
इस लेख का उद्देश्य धुंध को दूर करना है। हम तथ्यों पर गौर करेंगे। हम धनखड़ के अचानक “इस्तीफे” की पड़ताल करेंगे। हम इस कथित गुप्त बैठक के विवरण उजागर करेंगे। हम इसके राजनीतिक नतीजों की भी जाँच करेंगे। इसमें अमित शाह का अचानक सुर्खियों से गायब होना भी शामिल है।
अचानक “इस्तीफ़ा” और गायब होना
21 जुलाई, 2025 की घटनाएँ अभी भी रहस्यमयी हैं। इसी दिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कथित तौर पर इस्तीफ़ा दे दिया था। उनके स्वास्थ्य को इसका कारण बताया गया था। हालाँकि, कई लोगों को इस स्पष्टीकरण पर विश्वास करना मुश्किल लगा।
सार्वजनिक उपस्थिति के बीच अचानक इस्तीफ़ा
उस दिन पहले, धनखड़ ने संसदीय कार्यवाही में भाग लिया था। वह स्वस्थ और सक्रिय दिखाई दे रहे थे। उन्हें संसद में राज्यसभा की कार्यवाही करते हुए देखा गया था। फिर भी, रात 9:30 बजे तक उनका त्यागपत्र सामने आ गया। इस अचानक घटनाक्रम ने सभी को चौंका दिया।
सूचना का अभाव और सार्वजनिक चिंता
इस्तीफ़े के बाद, धनखड़ सार्वजनिक रूप से गायब हो गए। कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं हुआ। कोई बयान जारी नहीं किया गया। वह संपर्क से बाहर थे। पूरा देश पूछने लगा जगदीप धनखड़ कहाँ हैं?
विपक्षी आवाज़ें चिंताजनक
विपक्ष ने तुरंत चिंता व्यक्त की। वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने इस्तीफे को आश्चर्यजनक बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से धनखड़ से पुनर्विचार करने का आग्रह किया। वकील कपिल सिब्बल ने एक्स (जिसे पहले ट्विटर कहा जाता था) का सहारा लिया। उन्होंने सीधे अमित शाह से धनखड़ के ठिकाने के बारे में पूछा। सिब्बल ने उनकी सुरक्षा और संपर्क क्षमता पर सवाल उठाए। शिवसेना नेता संजय राउत ने भी अटकलों को और हवा दी। उन्होंने अमित शाह को एक पत्र भेजा। राउत ने गुमशुदगी की खबरों पर चिंता जताई।
Jagdeep Dhankhar हाउस अरेस्ट की अफवाहों और राजनीतिक आरोपों का पर्दाफाश
धनखड़ के नज़रों से ओझल रहने के कारण, अफवाहें तेज़ हो गईं। हाउस अरेस्ट की संभावना फैलने लगी। इससे सरकारी साज़िश के आरोप और भड़क गए।
संजय राउत का अमित शाह को लिखा पत्र महत्वपूर्ण था। उन्होंने धनखड़ के लापता होने की परेशान करने वाली खबरों का ज़िक्र किया। राउत ने यह भी दावा किया कि कुछ लोगों का मानना है कि धनखड़ को हाउस अरेस्ट किया गया है। उन्होंने बताया कि कुछ सांसद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने पर विचार कर रहे हैं। यह धनखड़ के ठिकाने का पता लगाने के लिए था।
“सत्ता का अपहरण” का विमर्श
कुछ लोगों ने इन घटनाओं को एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति के रूप में व्याख्यायित किया। उन्होंने इसे “सत्ता का अपहरण” माना। एक उच्च पदस्थ संवैधानिक अधिकारी के अचानक गायब होने से गंभीर सवाल उठे। इसने सत्ताधारी शक्तियों द्वारा संभावित अतिक्रमण की ओर इशारा किया।
तमिल मीडिया का धमाका: प्रधानमंत्री मोदी के साथ एक गुप्त बैठक
जब सबका ध्यान अमित शाह पर था, तभी एक नए खुलासे ने राजनीतिक परिदृश्य को हिलाकर रख दिया। तमिल मीडिया ने एक चौंकाने वाली रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट ने पूरी कहानी ही बदल दी।
सनसनीखेज दावा: धनखड़ ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की
तमिल मीडिया के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धनखड़ से मुलाकात की। यह मुलाकात कथित तौर पर गुप्त रूप से हुई थी। यह लगभग 45 मिनट तक चली। इस दावे को जयराम रमेश ने एक्स पर साझा किया। इस खबर ने कई लोगों को चौंका दिया।
विरोधाभासी आख्यान: लापता बनाम मुलाकात
इस रिपोर्ट ने एक महत्वपूर्ण विरोधाभास पैदा कर दिया। अगर धनखड़ लापता थे या नज़रबंद थे, तो उन्होंने प्रधानमंत्री से कैसे मुलाकात की? इसके विपरीत, अगर उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की, तो वे सार्वजनिक रूप से क्यों नहीं दिखाई दिए? इस विरोधाभास ने और अटकलों को हवा दी।
तमिल मीडिया की भूमिका: दोष मढ़ने में
तमिल मीडिया की रिपोर्ट ने सुर्खियाँ ही बदल दीं। इसने सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी को लपेटे में ले लिया। इससे वे विवाद के केंद्र में आ गए। इससे अमित शाह भी बचाव की मुद्रा में आ गए। दोष का केंद्र बदलने लगा।
रिपोर्टों से पता चला है कि धनखड़ का इस्तीफा सिर्फ़ स्वास्थ्य समस्याओं से ज़्यादा था। सरकार के साथ गहरे मतभेदों ने भी इसमें भूमिका निभाई होगी।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग नोटिस
एक प्रमुख घटना महाभियोग नोटिस से जुड़ी थी। यह नोटिस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ था। इस पर 63 विपक्षी सांसदों के हस्ताक्षर थे। धनखड़ ने कथित तौर पर इस नोटिस को स्वीकार कर लिया। यह कदम सरकार को रास नहीं आया।
कथित असहमति और तीखी बातचीत
सूत्रों ने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी नाखुश थे। धनखड़ ने स्पष्ट रूप से उनसे सलाह लिए बिना एक बड़ा फैसला ले लिया। केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा और किरण रिजिजू ने कथित तौर पर धनखड़ को फोन किया। कथित तौर पर एक तीखी बहस हुई। उन्होंने प्रधानमंत्री की नाराज़गी से अवगत कराया।
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